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Monday 29 July 2013

ये मासूम चंचल बेटियां .......

मानव सभ्यता की नींव हैं बेटियां 
भगवान् की अद्भुत रचना हैं बेटियाँ 
खुशनसीब के घर जन्म लेती हैं बेटियाँ 
जिंदगी के क़र्ज़ से मुक्त करती  हैं बेटियाँ 
एक पिता का गुरुर होती हैं बेटियाँ 
एक माँ का भी प्रतिरूप हैं बेटियाँ 
प्यार और ममता का नाम हैं बेटियाँ 
किसी के भी घर की शान हैं बेटियाँ 
समाज का एक अहम् अंग हैं बेटियाँ 
त्याग और विश्वास का नाम हैं बेटियाँ 
हर रिश्ते का आधार हैं बेटियाँ 
घर को खुशियों से महका देती हैं बेटियाँ 
दुर्गा रूप अवतार भी कहलाती हैं बेटियां 
गंगा  सी पवित्र व उज्जवल होती हैं बेटियाँ 
लक्ष्मीबाई सी साहसी भी होती हैं बेटियाँ 
हर रूप में गुणों की खान होती हैं बेटियाँ 
दुःख में सहारा तो सुख में बढ़ावा देती हैं बेटियाँ 
पर हमारे समाज में आज नहीं सुरक्षित बेटियाँ 
भरे बाज़ारों में आज शर्मसार होती हैं बेटियाँ 
भेडियों का कभी भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
दहेज़ प्रथा की भी शिकार होती हैं  बेटियाँ 
बेटा-बेटी में पक्षपात की भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
रीती रिवाजों का भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
जन्म से पहले ही गर्भ में मार दी जाती हैं बेटियाँ 
बेटी है तो कल है सर्वज्ञ है  फिर भी शिकार हैं बेटियाँ 

@@@@@ प्रवीन मलिक @@@@@


Wednesday 17 July 2013

माँ तुम यूँ न आकर जाया करो ........

जीवन के वो पल जब तुम साथ थी याद करते करते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला और निंदिया ने घेर लिया ... उस नींद के बाद तुम आ गयी सपनो के रथ पर सवार होकर और सब कितना अच्छा लग रहा था ... तुम खाना बना रही थी वहीँ हम सब आसपास बैठकर खा रहे थे ... हंसी मजाक हो रहा था फिर अचानक एक काला सा सींगो वाला शख्श आता है और तुमको कहता है चलो इतनी ही इज़ाज़त दी थी अगर लेट करोगी तो आगे से फिर न आने दूंगा .... जी चाहता था की उस दुष्ट को धक्का देकर गेट बंद कर दूँ लेकिन तभी तुम कहने लगी ठीक है मैं इनसे मिल ली इनको खाना खिला दिया अब मैं चल रही हूँ तुम्हारे साथ .... और तुम चल पड़ी उसके साथ भरी हुयी आँखें लेकर और हम तुमको रोक भी न पाए .... क्यूँ जाना जरुरी था ये कुछ कुछ अहसास था की फिर से लौटकर आने को जा रही थी तुम .... हम चाहते थे की तुम सदा के लिए रुक जाती पर ये भी तो संभव न था ... अचानक आँख खुली और देखा आँखों से सच में आंसू बह रहे थे और एक खवाब टूट गया था ... उस वक्त जो बेचैनी थी उसको ब्यान कर पाना बहुत मुश्किल है .... माँ तुम यूँ न आकर जाया करो ........

प्रवीन मालिक .........

Sunday 14 July 2013

जिन्दगी..........

जिन्दगी .......
खुशियों से नाराज सी जिन्दगी
गम की खान सी ये जिन्दगी
अपनों की भीड़ होते हुये भी
प्यार की मोहताज सी जिन्दगी 
दर्द की किताब सी जिन्दगी
पल-पल इम्तिहान लेती जिन्दगी
कभी पास तो कभी फेल
आगे बढ़ती हुयी जिन्दगी
हम जीते रहे इसके हिसाब से
हर मोड़ पर नयी चुनौती सी जिन्दगी 
थक कर बैठ सकते नहीं दो पल 
क्यूँकि रुकती नहीं कभी जिन्दगी
जी लो कुछ पल अपने लिए भी
क्यूँकि दोबारा मिलती नहीं ये जिन्दगी !

प्रवीन मलिक ........

पधारने के लिए धन्यवाद