tag:blogger.com,1999:blog-8355494405908102442024-02-19T09:14:21.422+05:30दिल की आवाज दिल भी समंदर की तरह गहरा होता है इसमें भावों का समावेश होता है ! कभी इसमें ख़ुशी के भाव होते हैं कभी गम के .. उन सब भावो को अगर शब्द दिए जाये तो एक खूबसूरत सी रचना तैयार हो जाती है ! बस मेरा भी कुछ ऐसा ही प्रयास है कि अपने दिल के भावों को शब्दों का रूप दे सकूँ ..... इसीलिए मुझे अपने ब्लॉग का नाम दिल की आवाज़ सार्थक लगता है ! दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.comBlogger74125tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-85997522684327877922019-03-07T16:21:00.002+05:302019-03-07T16:21:59.100+05:30सच को थामिये <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बात सही हो या गलत हाँ में हाँ ना मिलाया करो<br />
इस तरह से तुम अपनी वफादारी ना जताया करो। <br />
<br />
बेतुकी बातों पर भी जोर-जोर से शोर मचाकर<br />
इस तरह झूठ को ना तुम सच बना दिखाया करो। <br />
<br />
देशभक्ति के सर्टिफ़िकेट बंट रहे हैं थोक के भाव<br />
सवाल-जवाब करके तुम देशद्रोह ना कमाया करो। <br />
<br />
हिंद की जाबांज सेना पर है नाज हम सभी को<br />
मांग विजय के सबूत तुम मनोबल ना गिराया करो।<br />
<br />
सरहद पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते हैं हमारे वीर<br />
सोशल मिडिया पर तुम खाली गाल न बजाया करो।<br />
<br />
देश की आन बान शान के लिए मर-मिटने को तैयार<br />
भारत माँ के वीर सैनिकों पर राजनीति न चमकाया करो।<br />
<br />
पार्टियाँ आती-जाती रहेगीं पर देश हमेशा खड़ा रहेगा<br />
गलत की बाँह थामकर तुम देश की आन न झुकाया करो ।<br />
<br />
प्रवीन मलिक</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-81858634505242807772016-08-15T09:39:00.000+05:302016-08-15T09:39:06.867+05:30आज़ादी जिम्मेदारी भी है ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज़ादी सभी को चाहिए पर आज़ादी के साथ कर्तव्य और जिम्मेदारियां भी होती हैं अपने देश के लिए समाज के लिए । हर चीज़ का दोष प्रशासन पर न मढ़कर हर किसी को अपने स्तर पर देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहिए ताकि हम अपनी आज़ादी पर गर्व कर सकें और हमारे देश के लिए शहीद हुए वीर जवानों को सच्ची श्रंद्धांजलि दे सकें।<br />
<br />
देश हमारा<br />
जिम्मेदारियां भी हमारी<br />
कर्तव्य भी हमारे<br />
सिर्फ लेने का नाम ही नही<br />
देश को कुछ देना भी पड़ता है<br />
आज़ादी के लिए<br />
मर मिटे थे कितने वीर सपूत<br />
उस आज़ादी का मान<br />
रखना भी हमारी जिम्मेदारी है ।<br />
<br />
आन तिरंगा मान तिरंगा<br />
तिरंगे की शान बढ़ाना है<br />
देकर सबक गद्दारों को<br />
वीरता का परचम लहराना है<br />
लड़ाई अपनों से नहीं<br />
दुश्मनों को मार भगाना है<br />
हो रहे नैतिक पतन को<br />
नैतिकता का पाठ पढ़ाना है<br />
लालच की जंजीरे काट<br />
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना है<br />
नारियों को देकर सम्मान<br />
वेद-पुराणों की शान बढ़ाना है<br />
देश हमारा अपना है<br />
हमें इसका का गौरव बढ़ाना है ।।<br />
<br />
भारत माता की जय<br />
वंदे मातरम् जय हिन्द।।<br />
<br />
प्रवीन मलिक</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-17756899646632050602016-07-27T23:30:00.002+05:302016-07-27T23:30:58.968+05:30अधूरा प्यार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अधूरा प्यार....<br />
श्रुति बहुत ही खुशमिजाज लड़की थी, हर पल को बखूबी जीने वाली, इस तरह मानो कल आएगा ही नही जो है बस अभी है ! वह खुशमिजाज तो थी ही साथ ही साथ पढ़ने-लिखने में भी बहुत अच्छी थी। श्रुति जैसे ही बाहरवीं कक्षा में आई हर तरफ से उसको नसीहतें मिलने लगीं कि बस यही एक साल रह गया है जो आगे तेरा भविष्य निर्धारित करेगा ! श्रुति यूँ तो टेंशन लेने वाली लड़की नही थी, उसको मालूम था कि वो जो चाहे कर सकती है फिर ये बाहरवीं क्या चीज है, अब तो उसने और भी जी-जान लगा कर पढाई करनी शुरू कर दी थी ! यही वो समय था जिसने श्रुति के जीवन को बदल कर रख दिया ....<br />
श्रुति की माँ ने श्रुति से कहा – “क्या सारा दिन तुम किताबों में घुसी रहती हो, अंकित(श्रुति का भाई) भी घर पर नहीं है जाओ जरा विमला भाभी के घर से दूध ले आओ ...<br />
श्रुति: क्या मम्मी मुझे नही पता, मुझे बहुत काम है पढाई का, और मम्मी जरा अंकित को बोलिये घर पर टिके थोड़ी पढाई करे, हमारे मैथ के सर हमेशा मुझसे उसकी शिकायत करते हैं कि उसका पढाई में बिलकुल ध्यान नहीं है ....<br />
श्रुति की मम्मी: तो बेटा तुम ही उसको थोडा पढ़ा दिया करो ना, अब जाओ पहले जाकर दूध ले आओ अंकित की खबर बाद में ले लेना, जाओ ले आओ मेरा बच्चा तुम तो मेरी सुपर हीरो हो ना, कहते हुए माँ श्रुति के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरनी लगी ......<br />
श्रुति ने चुटकी लेते हुए कहा - अहा बटरिंग मम्मी, ये सही है काम निकलवाने के लिए, ठीक है कहते हुए वह अपनी किताबें समेटने लगी ...<br />
श्रुति: माँ लाओ डिब्बा दे दो, माँ से डिब्बा लेकर श्रुति विमला भाभी के घर चली गयी, जो श्रुति के घर के सामने ही है, विमला भाभी ने 2 भैंस और 2 गाय रखी हुई हैं, रमेश (विमला के पति) और विमला दूध बेचकर अपना काम चलाते हैं। विमला का देवर नरेश जो कि कॉलेज में अपनी पढाई करते हुए बच्चों को ट्यूशन भी देता है जिससे कि उसकी पढाई का खर्च चलता है ....<br />
श्रुति ने विमला के आँगन में जैसे ही कदम रखा उसे विमला की तेज़ आवाज सुनाई दी, वह थोडा और अंदर गयी तो उसने देखा कि विमला नरेश को उल्टा सीधा सुना रही थी और कह रही थी कि सारा दिन इधर-उधर भटकते रहते हो, घर में आते ही ये बच्चों की फौज बुला लेते हो, थोडा घर में हमारी मदद भी कर दो तो और 4 पैसे ज्यादा आ जायेंगे, पढ़ लिखकर कौन-सा तुम कलेक्टर हो जाओगे ! नरेश कह रहा था भाभी बाद में बात करें अभी बच्चे पढाई कर रहे हैं कहते-2 उसकी नज़र श्रुति पर पड़ी और वो बोला जाइये आपसे कोई मिलने आया है ....<br />
श्रुति: भाभी दूध<br />
विमला: अरे श्रुति तुम आज कैसे? तुम्हारी माँ बता रही थी कि तुम तो सारा दिन अपने कमरे में ही बंद रहती हो ....<br />
श्रुति: जी भाभी ऐसा कुछ नहीं है, ऐसा कहते हुए उसने चोर नज़र से नरेश को देखा जो कि उसे देख ही रहा था, दोनों की नज़र मिली और नरेश ने सकपकाकर मुंह फेर लिया, इन दो पलों में जाने कौन-सी पहचान हो गयी दो दिलों के बीच कि दोनों ही एक दूसरे की तिरछी नज़र के शिकार हो गए, दूध लेकर श्रुति घर आ गयी और सोचने लगी- “नरेश इतना अच्छा है पढाई में फिर क्यों भाभी उसको ताने देती रहती हैं”, उसने अपनी माँ को भी वो सब बताया जो उसने विमला के घर देखा-सुना, माँ भी कहने लगी एक तो गरीबी और एक नरेश गोद लिया हुआ बेटा, माँ-बाप तो गुजर गए अब भाभी की नज़र में कांच सा चुभता है, माँ की बात सुनकर श्रुति और ज्यादा नरेश से जुड़ सी गयी, उसका दुःख-दर्द श्रुति को अपना सा लगने लगा, तभी अंकित आ गया और माँ उसे डांटने लगी ....<br />
माँ: क्यों रे तू कहाँ घूम रहा था? स्कूल से शिकायतें आ रही हैं पढाई-लिखाई में ध्यान नही तुम्हारा? अंकित: (चिढ़ते हुए) क्या माँ ये मोटी कुछ भी कहती है, ऐसा नही है पर हाँ मैथ में थोडा गड़बड़ है .....<br />
श्रुति: (अचानक ही) माँ क्यों न अंकित को पढ़ाने के लिए नरेश को बुला लें उसको भी पैसे की हेल्प हो जायेगी और ये निकम्मा भी कुछ पढ़ लेगा ....<br />
माँ: हाँ ठीक कहा, आज ही पूछूंगी नरेश से ....<br />
श्रुति मन ही मन खुश होते हुए अपने कमरे में चली गयी, वहां जाकर वो बस नरेश के बारे में ही सोच रही थी, “कितनी मासूमियत से भाभी की बात सुनता रहा, कितना सीधा है एक शब्द भी पलटकर नही कहा, पर मुझे देखकर चोंक गया, भाभी को ऐसे नहीं कहना चाहिए था कितना बुरा लगा होगा उसको, मुझे नरेश को सिम्पैथी देना चाहिए पर कैसे, मेरे पास तो उसका नंबर ही नही है”, श्रुति ने फिर अचानक चहकते हुए फ़ोन उठाया और मन ही मन बोली ये फेसबुक कब काम आएगा, श्रुति झट से फेसबुक ऑन करती है और कुछ भी न देखते हुए बस सर्च में टाइप करती है नरेश सिंह, नरेश सिंह के नाम से एक लंबी सी लिस्ट सामने आ गयी, जिसमे नरेश को सर्च करते हुए उसे नरेश की प्रोफाइल मिल ही जाती है कुछ देर बाद वह नरेश को रिक्वेस्ट भेज देती है, श्रुति रिक्वेस्ट भेजकर ऐसे खुश हो रही थी मानो कोई किला जीत लिया हो और फिर पढ़ने बैठ गयी, लेकिन अब भी ध्यान उसका फोन में ही था कि कब रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हो और वो फटाफट उसको मेसेज करके कहे की उसने कुछ नही सुना, फिर खुद ही अपनी बेवकूफी पर हँस पड़ी कि डायरेक्ट ऐसा कहूँगी तो उसको तो पता ही चल जायेगा कि मैंने सब सुन लिया है, पर ये क्या रिक्वेस्ट गए 3 घंटे हो गए पर कोई नोटिफिकेशन नहीं आई, उसने फ़ोन चेक किया कि नेटवर्क प्रॉपर है कि नहीं पर नेटवर्क तो एकदम ठीक था, माँ के कहने पर श्रुति खाना खाने निकली पर उसको भूख ही नही थी बस दिमाग में नरेश का मासूम सा चेहरा घूम रहा था ....<br />
2 दिन बीत गए पर श्रुति को कोई नोटिफिकेशन नही मिली नरेश की तरफ से, उधर श्रुति को लग रहा कि काश वह नरेश से अभी बात कर पाये, श्रुति ने माँ से पूछा कि नरेश से आपने अंकित के लिए बात की या नही, माँ ने कहा – हाँ हो गयी है, आज आयेगा वो अंकित को 7 बजे पढ़ाने, उससे पहले तो कुछ बच्चे उसके घर आते हैं पढ़ने, उनके बाद ही अंकित को पढ़ायेगा, माँ की बात सुनकर श्रुति फिर से उछ्ल पड़ी और एक्साइटमेंट में उसके मुंह से निकल पड़ा "WOW" ......<br />
माँ: श्रुति तुझे क्या हुआ तुम क्यों उछल रही हो?<br />
श्रुति: सकपकाते हुए.. अरे माँ मेरा ध्यान कहीं और था, झूठ बोलकर श्रुति ने अपनी एक्साइटमेंट को छुपा लिया .....<br />
सात बज चुके थे, डोर बेल बजी, माँ ने दरवाजा खोला तो नरेश था, माँ ने नरेश को ड्राइंग रूम में बिठाया और बोली अंकित को बुलाती हूँ, डोर बेल की आवाज़ सुनकर श्रुति भी देखने आ गयी कि कौन है और नरेश को देखकर हाथ हिलाकर “हाय” कहा ....<br />
नरेश: हेल्लो .....<br />
श्रुति: हाउ आर यू<br />
नरेश: फाइन<br />
आगे नरेश ने कुछ न कहकर चुप रहना ही ठीक समझा, अंकित भी मैथ की किताब लेकर आ गया और नरेश उसको पढ़ाने लगा, श्रुति अपने कमरे में चली गयी और सोचने लगी यूँ तो कितना मासूम है और देखो अकड़ू कितना है ये भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूँ....हुंह, 3 दिन बाद जब श्रुति ने देखा की नरेश ने अब भी उसकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं की थी तो उसने सोच लिया आज उसके आते ही पूछ लुंगी इतना भाव क्यों खा रहा है, 5 दिन से रिक्वेस्ट भेज रखी है 3 दिन से अंकित को पढ़ाने भी आ रहा पर रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नही किया अब तक । जैसे ही डोर बेल बजी श्रुति ने कहा मम्मी मैं देखती हूँ, श्रुति को पता था नरेश ही होगा 7 बज गए हैं, दरवाजा खुला तो नरेश ही था .....<br />
श्रुति : हाय ...<br />
नरेश : हेल्लो ...<br />
श्रुति: कैसे हैं आप ....<br />
नरेश : ठीक हूँ ..... और कुछ देर बाद .. आप कैसी हैं ....<br />
श्रुति: मुस्कुराते हुए .. मैं भी ठीक हूँ और अब तो बहुत ज्यादा ठीक ...<br />
नरेश: मैं समझा नहीं ....<br />
श्रुति: जी कुछ नहीं, मैं कुछ और कह रही थी ....<br />
नरेश: कोई बात नहीं, पढाई कैसी चल रही है आपकी?<br />
श्रुति कुछ बोलती कि अंकित आते ही- अरे भैया इसकी पढाई पूछो मत, किताबें घोट कर पी जाती है और मुझे डाँट पड़वाती रहती है .....<br />
श्रुति ने अंकित को आँख दिखाई घूरते हुए ...<br />
नरेश ने वैरी गुड कहा और अंकित को पढ़ाने लगा, श्रुति आज वहीँ घूम रही थी कभी किचन में, कभी माँ के रूम में, कभी अपने रूम में, माँ फ़ोन पर मासी से बात कर रही थी इसीलिए माँ ने श्रुति से कहा- “बेटा जरा नरेश को चाय पानी पूछ लो”, श्रुति तो मानो यही चाहती हो, वो पानी लेकर नरेश को दे आई, नरेश ने थैंक यू बोला ....<br />
अंकित का टेस्ट चल रहा है इसका एक चैप्टर पूरा हो गया है- नरेश ने कहा .....<br />
श्रुति: अच्छा, और तुरंत बोल पड़ी- आपने मेरी फेसबुक पर रिक्वेस्ट एक्सेप्ट क्यों नही की?<br />
नरेश: हैरान होकर.. क्या? फेसबुक पर रिक्वेस्ट?<br />
श्रुति: जी<br />
नरेश: पर मुझे फेसबुक खोले कई महीने हो गए हैं, टाइम ही नहीं मिलता है ! घर, कॉलेज और ट्यूशन के बाद अपनी पढाई भी करनी पड़ती है, नरेश एक ही झटके में सब बोल गया ....<br />
श्रुति: ओह्ह<br />
नरेश: आप भी अपनी पढाई पर ध्यान दो, ये सब फ्री टाइम के काम हैं .....<br />
श्रुति: हाँ, पर एक्सेप्ट तो कर लो ....<br />
नरेश: ठीक है ...<br />
श्रुति अपने कमरे में चली गयी, नरेश सोचता रहा .... <br />
रात के 11 बजे श्रुति का फ़ोन बीप किया, श्रुति ने झट से चेक किया और देखा नरेश की नोटिफिकेशन है, इसके तुरंत बाद ही एक और बीप के साथ मेसेज "Welcome to the वेळा हाट"<br />
दिखाई दिया .....<br />
श्रुति ने मेसेज देख लिया था नोटिफिकेशन विंडो में और हंस दी " वेळा हाट" मिस्टर अकड़ू, सोच रही अभी रिप्लाई करूँ क्या..... अरे नहीं सोचेगा इंतज़ार ही कर रही थी सुबह करुँगी...... सुबह करुँगी तो सोचेगा सुबह-सुबह फेसबुक पर..... नहीं-नहीं कल शाम को करुँगी.... उसने 5-6 दिन लगा दिए तो मुझे भी 1-2 दिन बाद ही रिप्लाई करना चाहिए, पर ये दिमाग का फैसला था, दिल तो कह रहा था अभी जवाब दो.... लेकिन जब दिल और दिमाग की जंग छिड़ी हो तो जीत दिमाग की ही होती है...आख़िरकार श्रुति ने जवाब नहीं दिया ....<br />
अगले दिन नरेश ने फिर मेसेज किया" क्या बात है अब रिप्लाई करने का टाइम भी नहीं है" श्रुति को मेसेज मिला तो चहक उठी मन ही मन और कहने लगी खुद से – अब तुम वेट करो बच्चू ... और हंस दी ...<br />
रात को श्रुति सोच ही रही थी रिप्लाई करू क्या नरेश को कि फिर से एक और मेसेज मिला "मेरा नेट का खर्च करवा दिया और अब जवाब भी नहीं" ....<br />
ये पढ़कर तो श्रुति हैरान रह गयी, मतलब सही कह रहा था नरेश कि कई महीनो से नहीं खोला फेसबुक, शायद मेरे कहने पर ही रिचार्ज करवाया होगा नेट ...<br />
श्रुति ने फेसबुक खोला और नरेश जी मेसेज विंडो तभी एक और मेसेज मिला "वेलकम जी"....<br />
श्रुति: थैंक्स फॉर एक्सेप्टिंग माय फ्रेंड रिक्वेस्ट (<br />
नरेश: माय प्लेजर जी ...<br />
श्रुति: हाउस योर स्टडीज गोइंग?<br />
नरेश: एकदम ठीक, हाउस अबाउट यू?<br />
श्रुति: वैरी गुड ....<br />
श्रुति और नरेश ने देर तक बात की और फिर “सी यू टुमारो” से बात खत्म करते हुए गुड नाईट किया .... <br />
ये सिलसिला अब रोज आगे बढ़ने लगा था, अब सिर्फ कैज़ुअल बातचीत ही नहीं बल्कि एक दूसरे की प्रोब्लेम्स, उनसे जुड़े इमोशनस हर चीज शेयर होने लगी थी, रूटीन बन गया था ये उनका रोज का, लेकिन पढाई पर न तो श्रुति ने असर होने और न ही नरेश ने, चैटिंग के दौरान भी पढाई को लेकर उनमें खूब बाते होती थी, कुछ भी पूछना होता तो श्रुति नरेश को हक़ से कहती थी आज मुझे ये टॉपिक समझ देना और नरेश भी खूब अच्छे से समझाता था, दोनों की दोस्ती ने कब अपनी हदें तोड़कर प्यार की सल्तनत में कदम रख दिया ये उनको खुद भी मालूम नही था, रात के एक घंटे में उनका रूठना-मनाना, चिढ़ना-चिड़ाना, सब चलता था। ठीक 11 बजे दोनों ही फटाक से फेसबुक पर आ जाते थे और फिर पुरे दिन का लेखा-जोखा एक दूसरे से कहते-सुनते थे ....<br />
आज जैसे ही 11 बजे श्रुति ने फेसबुक लोगिन किया तो देखा नरेश अभी नहीं आया है ऑनलाइन, वो उसका इंतज़ार करने लगी, 12 बज गए पर नरेश नहीं आया, श्रुति को बहुत चिंता हुई पर इंतज़ार के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था, उसने सोचा फोन कर लिया जाये पर फिर कुछ सोचकर उसने फोन करना ठीक नहीं समझा, अगले दिन नरेश अंकित को ट्यूशन देने भी नहीं आया तो श्रुति ने माँ से पूछा कि नरेश नही आएगा क्या आज? श्रुति की माँ ने कहा पता नहीं आज सुबह से उनका दरवाजा बंद है शायद कही बाहर गए हैं, अंकित पढाई ख़त्म करके बोला माँ डिब्बा दे दो दूध ले आता हूँ और नरेश भैया से मिल भी आता हूँ अभी उनका गेट खुला है ! माँ ने डिब्बा दे दिया, अंकित नरेश के घर गया तो विमला भाभी ने बताया कि नरेश का एक्सीडेंट हो गया है हम तो सुबह से ही हॉस्पिटल में थे अभी आई हूँ तुम बाद में ले के जाना दूध। अंकित विमला भाभी की बात सुनके एकदम डर सा गया और बोला भाभी ऐसे कैसे, क्या हुआ नरेश भैया को?<br />
विमला भाभी ने बताया कि उसकी बाइक और ट्रक के बीच में टक्कर हो गयी और नरेश को काफी चोट लगी है, उसे अभी तक होश भी नही आया है पैर की हड्डियां टूट गयी हैं ....<br />
अंकित ने घर जाकर ये सब माँ और श्रुति को बताया, श्रुति चुपचाप बिना कोई प्रतिक्रिया दिए अपने रूम में चली गयी, श्रुति को विश्वाश ही नहीं हो रहा था, उसकी घबराहट एकदम बढ़ गयी, उसको अभी देखना है नरेश को पर कैसे? माँ को क्या कहेगी? और देखने भी जायेंगे तो मम्मी- पापा ही जायेंगे उसको कौन लेकर जायेगा, पता नही कितनी चोट लगी है ठीक भी है या नहीं? ये सब सोचते हुए श्रुति अपने रूम में यहाँ से वहां चक्कर काटने लगी, उसकी आँखों में आंसू थे, काफी देर बाद माँ ने आवाज़ दी की खाना खा लो तो श्रुति बाहर आई ....<br />
माँ: अरे श्रुति ये क्या तुम्हारी आँखें सूजी हुई क्यों हैं बेटा ? क्या तुम रो रही थी?<br />
श्रुति कुछ नहीं बोली और दौड़कर माँ के गले लग गयी और जोर-2 से रोने लगी, रट-2 पूछ रही - माँ नरेश बच तो जायेगा ना? वो ठीक तो हो जायेगा? माँ मुझे देखने जाना है नरेश को, माँ श्रुति को इस हाल में देखकर अचंभित रह गयी, ये इस लड़की को हो क्या गया है, हरदम दांत निकालने वाली आज इस तरह से नरेश की खबर से इतनी परेशां कैसे है ......<br />
माँ: हाँ मेरा बच्चा, कुछ नही होगा नरेश को और हम जायेंगे कल तुम फ़िक्र नही करो, वो ठीक हो जायेगा, तुम खाना खाओ और सो जाओ पढाई कल कर लेना ....<br />
ऐसा कहकर माँ खाना परोसने लगी पर श्रुति ने खाना खाने से मना कर दिया और अपने रूम में चली गयी ये बोलकर कि मुझे सोना है ....<br />
माँ सोचने लगी कितना नरम दिल है मेरी बेटी का, किसी का भी दुःख-दर्द इसे विचलित कर देता है, कितनी ज्यादा भावुक है मेरी बेटी ....<br />
श्रुति सोने का कहकर आ गयी थी रूम में पर उसको सोना नहीं था, वो तो नरेश के आसपास रहना चाहती थी उससे बात करना चाहती थी, पर नरेश तो हॉस्पिटल में बेहोश पड़ा था, उसने फेसबुक खोला और मेसेज पढ़ने लगी, नरेश की भेजी हुयी तस्वीरें देखने लगी, पुरानी सारी चैट पढ़ने लगी, उसको महसूस होने लगा कि वो अभी भी उससे बात कर रही है, पढ़ते-2 नरेश के जन्मदिन वाले दिन की चैट आ गयी थी, उसी दिन उसने नरेश को उसके बर्थडे गिफ्ट में दिया था अपना दिल, और उसी दिन नरेश ने भी अपने प्यार का इजहार किया था, कुछ इस तरह ...<br />
श्रुति: कैसे हो बर्थडे बॉय?<br />
नरेश: मैं ठीक नहीं हूँ?<br />
श्रुति: पर क्यों?<br />
नरेश: क्योंकि कोई है जिसने मुझे अभी तक बर्थडे गिफ्ट नहीं दिया है और ऐसा कहकर एंग्री इमोजी भी चिपका दिया ....<br />
श्रुति: हा हा हा ...,ये तो वाकई में बहुत ट्रेजेडी है, पर है कौन वो जिसने तुम्हें गिफ्ट नहीं दिया?<br />
नरेश: वही खूबसूरत लड़की जो मेरी ट्रेजेडी पर दांत फाड़कर हंस रही है ....<br />
श्रुति: अरे! मैं तो मजाक कर रही थी (<br />
नरेश: पर मैं तुम्हारी बात कहाँ कर रहा हूँ, मैं तो खूबसूरत लड़की की बात कर रहा हूँ ...(<br />
श्रुति: ओके गुस्से वाले इमोजी के साथ ....<br />
नरेश: पर तुम गिफ्ट दे दो तो वो खूबसूरत लड़की बन सकती हो (<br />
श्रुति: अच्छा, क्या गिफ्ट चाहिए?<br />
नरेश: जो जिंदगी भर मेरे साथ मेरे दिल में रहे, तुम्हारा यस और तुम्हारा दिल ....<br />
श्रुति: सोच लो, मुझे झेलना थोडा मुश्किल होगा ....<br />
नरेश: जब विमला भाभी के ताने झेल सकता हूँ तो तुम्हारा प्यार क्यों नहीं :p<br />
श्रुति: हा हा हा हा हा .... सो फनी ...<br />
नरेश: इट्स नॉट फनी, आई ऍम सीरियस ....<br />
श्रुति: अच्छा सीरियस हो तो हॉस्पिटल में होना चाहिए था, तुम तो अच्छे-भले चैट कर रहे.... नरेश: स्टॉप इट श्रुति, आई ऍम रियली सीरियस, मुझे जवाब चाहिए तुम्हारा, क्या तुम्हें मेरा दिल मेरा प्यार मंजूर है? नहीं भी है तो कोई बात नहीं तुम ना कह सकती हो ....<br />
श्रुति: क्या तुम्हे जवाब अब तक नही पता? हर रोज 11 से 12 जो हम बात करते हैं तो ठीक 12 बजे बाद ही मेरा इंतज़ार शुरू हो जाता है अगले दिन के लिए और आजकल में दूध लेने जाती हूँ तुम्हारे घर पहले कभी देखा था क्या क्योंकि मुझे तुम्हे देखने का मन होता है, तुम्हारे चक्कर में मैंने किचन का रास्ता देख लिया और चाय बनानी सीख ली, तुम्हे याद तो होगी ना पहले दिन की चाय मेरे हाथ की जिसमें चीनी जी जगह नमक था, फिर मैंने सीखी सिर्फ तुम्हारे लिए... नरेश: हां, पर एक बार कह दो, मैं कब से सुनना चाहता हूँ ....<br />
श्रुति: क्या कह दूँ, कितना तो कह दिया ....<br />
नरेश: यही कि "You love me" ...<br />
श्रुति: Ok.... You love me...<br />
नरेश : Yes .. I love you so much. Do you?<br />
श्रुति: Yes... Me too love you so much!!<br />
नरेश: It’s awesome day of my life shruti.... thank you so much ....<br />
ये सब पढ़ते-2 श्रुति को महसूस हो रहा था कि नरेश उसके पास ही है, उसके साथ है, वो पल वो जी रही है, श्रुति आँखें बंद करके सारी कन्वर्सेशन को फिर से मन ही मन देखने लगी, उसमें अब श्रुति नही बल्कि नरेश रहने लगा था, तभी उसको लगा की नरेश उसके पास बैठा है, नरेश ने श्रुति का हाथ अपने हाथ में लिया और पूछा- तुमने खाना क्यों नहीं खाया आज?<br />
श्रुति: तुम कहाँ चले गए थे .. मैं कितना डर गयी थी ....<br />
नरेश: पर मैं तो यहीं था तुम्हारे पास, तुझमे रहता हूँ मैं, तुमसे दूर अब कहाँ रह पाता हूँ ...<br />
श्रुति: तुम्हे ज्यादा चोट लगी है क्या?<br />
नरेश: नहीं, जिस दिन तुम्हे देखा था उस दिन ज्यादा लगी थी, जब तक तुमने नहीं अपनाया था दर्द उठता था ये तो मामूली चोट है, ये सब छोडो और खाना खाओ, नरेश श्रुति को जो टिफिन वो लाया था उससे अपने साथ खाना खिलाने लगा, श्रुति भी खा रही है कभी नरेश को खिला रही है .....<br />
फिर नरेश कहता है देखो मुझे तुम्हारा रिजल्ट 99% चाहिए और फिर तुम डॉक्टरी पढ़ना, मेरे ये घाव हैं न ये तुम ही ठीक करना, तब तक मैं यूँ ही तड़पता रहूँगा, और वादा करो मुझे भूल नही जाओगी न, श्रुति ने नरेश के हाथ में अपना हाथ रखते हुए कहा -पक्का वादा, नरेश उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- फिर ठीक है, अब मैं चलता हूँ, मैं इंतज़ार करूँगा तुम्हारा, तुम मुझसे मिलने आना डॉक्टर की ड्रेस में, बस तुम जी-जान लगाकर पढ़ना, मुझे बिलकुल याद मत करना, मिलेंगे हम एक दिन, ऐसा कहकर नरेश चल पड़ा और श्रुति रोती रह गयी, तभी सुबह 6 बजे का अलार्म बज उठा और श्रुति की आँख खुली गयी, उसने आसपास देखा, अपने रूम में इधर-उधर देखा पर नरेश कहीं नहीं था, ओह्ह ये तो सपना था, नरेश कैसे आएगा मिलने वो तो हॉस्पिटल में है, श्रुति को अब सपने में कही नरेश की एक-एक बात याद आ रही थी, मुझे मिस नहीं करना, जी-जान लगाकर पढ़ना और डॉक्टर बनना, और उसके आखिरी शब्द" हम मिलेंगे एक दिन" ....<br />
तभी माँ की आवाज़ आई- श्रुति उठ गयी क्या बेटा, हड़बड़ाते हुए श्रुति बाहर निकली तो माँ ने कहा बेटा मैं विमला के घर जा रही हूँ नरेश नहीं रहा, रात को ही उसकी डैथ हो गयी, बस बॉडी को लेकर कभी भी आते ही होंगे, श्रुति फटी आँखों से पत्थर की बुत बनी मम्मी की बात सुन रही थी, श्रुति... श्रुति... श्रुति तुम सुन रही हो ना माँ ने झकझोरते हुए कहा तो बस श्रुति कुछ कह न सकी और बस वो अपने सपने को ही याद करती अपने कमरे में चली गयी ......!!!!<br />
<div>
समाप्त।।।.........प्रवीन मलिक </div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-59614693063311904782014-09-26T21:50:00.000+05:302014-09-26T21:58:56.844+05:30सुन ले माँ मेरी भी पुकार .... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-iMXVI57FRag/VCWUMg8v5KI/AAAAAAAAF28/-lSdpiMeahc/s1600/IMG-20140925-WA0012.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-iMXVI57FRag/VCWUMg8v5KI/AAAAAAAAF28/-lSdpiMeahc/s1600/IMG-20140925-WA0012.jpg" /></a></div>
<br />
<br />
हे माँ सुन ले मेरी भी पुकार<br />
कर दे मेरे जीवन का तू उद्धार !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
दिल से मेरे नफरत मिटा दे<br />
प्यार-प्रेम के बस फूल तू खिला दे !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
पापों से मुझको मुक्त कर दे<br />
आचरण को मेरे तू शुद्ध कर दे !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
किसी के कुछ काम आ सकूँ<br />
ऐसी मुझ में माँ तू शक्ति भर दे !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हैं लाख बुराईयाँ मुझमें ऐ माँ<br />
हाथ रख सर पे तू मुझे निर्मल कर दे !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
मिट जाये अज्ञान का ये तम घनेरा<br />
जो अपने चरणों में तू मुझे शरण दे दे !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
जय माँ अम्बे हे माँ जगदम्बे जय भवानी<br />
देकर आशीष मुझे तू धन्य कर मेरी जिंदगानी !!</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: 'Open sans', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
……. प्रवीन मलिक……</div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-67811434770469748812014-09-12T14:46:00.000+05:302014-09-12T14:46:17.305+05:30आखिर क्या है कविता ???<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
मुझे नहीं पता <br />
आखिर क्या है कविता !</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
शायद प्रकृति का <br />
अवर्णनीय सौंदर्य है कविता ! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
शायद किसी प्रेमिका के <br />
अप्रतिम रूप का बखान है कविता ! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
शायद निश्चल प्रेम की <br />
विस्तृत परिभाषा है कविता ! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
शायद दर्दे-दिल का <br />
उमड़ता हुआ सैलाब है कविता ! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
या फिर शायद कवि की <br />
कोरी कल्पनाओं का प्रतिबिम्ब है कविता ! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
जो भी हो इसकी परिभाषा <br />
मेरे लिए तो दिल का सुकून है बस कविता !! </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
(प्रवीन मलिक) </div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-68909543019347734132014-09-10T20:24:00.004+05:302014-09-10T20:24:46.417+05:30पितृपक्ष श्रधा है या फिर ढोंग ..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
परसों से श्राद्ध लगे हैं जिसका पता मुझे कल ही चला और आज सासु माँ का
श्राद्ध था तो जितना बताया गया बड़ों द्वारा उतना श्रद्धापूर्ण तरीके से कर
दिया ! मेरी सासु माँ भी श्राद्ध नहीं निकालती थी किसी का लेकिन मम्मी
निकालती थी तो देखा था और शादी के बाद जेठानी जी भी अमावस्या के दिन
निकालती थी पूछने पर पता चला कि ससुराल में नहीं निकालते हैं किसी का पता
भी नहीं है तो बस अमावस्या को इसलिए निकाल देते कि उस दिन सब भूले-बिसरों
का कनागत निकाला जाता है ! पिछली बार एक कनागत निकाला था ससुर जी के भाई का
और आज सासु जी का निकाला है ! इस विषय में न कोई पूर्ण जानकारी है और शायद
इसीलिए दिल इन सब चीजों को मानता भी नहीं ....<br />
जो है जबतक जिंदा हैं तबतक ही है मरने के बाद किसने खाया किसने नहीं कुछ
पता नहीं बस रिवाज है चली आ रही हैं और हम भी बस निभाते चले जा रहे हैं !<br />
जीते जी जो शाँति न दे सकें मरने के बाद क्या ..... जीते जी लोग खबर नहीं
लेते और मरने पर पंडित को ५६ भोग कराकर क्या और कैसी शाँति देते हैं मुझे
नहीं मालूम ! एक उम्र के बाद इँसान बोझ बन जाता है आजकल के परिवेश में और
कुछेक घरों में नहीं अक्सर ज्यादातर का यही हाल है क्यूँकि हम सिर्फ बड़ी
बातें करने में विस्वास रखते ... करनी और कथनी में भेद रखते हैं ! सास-ससुर
को मेहमान समझते हैं और मेहमान तो भई .. बचपन में एक छोटू चाचा होते थो
अक्सर एक बात कहा करते थे और हम खूब हँसा करते थे<br />
पहले दिन का मेहमान<br />
दूसरे दिन का साहेबान<br />
तीसरे दिन का कद्रदान<br />
और चौथे दिन का बेईमान ...<br />
तो क्या अब वृद्ध जन भी उसी कैटेगरी में आते हैं ??? अपने ही घर में मेहमान
हैं ??? अपने ही बच्चों जिनको बचपन में कंधे पर बिठाकर घुमाया करते थे
उनके लिए बोझ हैं ??? जिनको पढ़ा-लिखाकर साहब बना दिया उनके मुँह से ये
सुनने को मिलता है तुम्हें समझ नहीं ...... जो अपनी रातों की नींद इसीलिए
कुर्बान कर देते थे कि बच्चों को किसी चीज की कमी न हो .. माँ-बाप खुद जो
कमी सहे हों वो कभी नहीं चाहते की उनके बच्चे उन कमियों और मजबूरियों के
साथ समझौता करें उसके लिए वो अपनी जान, जवानी, चैन, आराम, भूख-प्यास , नींद
खुशियाँ सब त्याग देते हैं पर कितने बच्चे ऐसा कर पाते हैं जब वही माँ-बाप
अपनी वृद्धावस्था में एक गिलास पानी या दो वक्त की रोटी के मोहताज हो जाते
हैं ?????<br />
जिंदा रहते दो टूक को तरसे और मरने पर देसी घी का भोग ..... अरे जब इतना ही
उनकी आत्मा की शाँति का ख्याल है तो ये सब जीते जी करो .... जिंदा थे तो
जी का जंजाल बने थे तुम्हारे मरते ही पूज्यवान हो गये ????<br />
बात सच है इसलिए थोड़ी कड़वी भी है पर क्या करें शहद में लपेटकर हमें कुछ
कहना नहीं आता जो दिल में है वही जबान पर है किसी को कड़वा लगे तो लगे .
.. जीते जी जो कष्ट दिया है वो पितृपक्ष में दान-दक्षिणा देकर उसकी भरपाई
नहीं की जा सकती .....<br />
कितने लोग वृद्धाश्रम में रोज बाट जोहते हैं कि कब उनका खून आकर कहे चलो
माँ चलो पिता जी घर चलते हैं पर कौन कहेगा किसको खबर है सुध लेने की ऐसा
होता तो वो उन्हें छोड़कर जाते ही क्यूँ वहाँ ..........<br />
खैर पितृपक्ष के विषय में कुछ भी मेरी कड़वी जबान कह गई हो अनाप-शनाप तो
नादान समझकर माफ कर देना पर जो कहा है वो सत्य ही है इससे आप सहमत होगें
पता है हमें ... क्यूँकि हर दूसरे तीसरे बुजुर्ग की यी कहानी है .... </div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-77554190603378599092014-08-29T10:39:00.003+05:302014-08-29T10:39:17.316+05:30भूख ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-small; line-height: normal;"><span style="color: blue;"><strong><em><span style="font-size: small;">श्वेता
जो की अमीर बाप की बेटी है जिसने घर में किसी चीज़ की कभी कोई कमी नहीं
देखी ! उसका जन्मदिन था और उसने अपने सभी फ्रेंड्स को पार्टी के लिए घर पर
बुलाया और घर की बावर्चिन को खाने का मेनू पकड़ाते हुए कहा की आज ये सब खाने
में बनना चाहिए और खाना बहुत ही स्वादिष्ट होना चाहिए किसी भी चीज़ की कोई
कमी नहीं होनी चाहिए मेरे सब फ्रेंड्स आ रहे हैं तो कोई तमाशा नहीं होना
चाहिए !</span></em></strong></span></span><br />
<div style="font-size: small; line-height: normal;">
<span style="color: blue;"><strong><em><span style="font-size: small;">कमला
(बावर्चिन का नाम ) श्वेता के स्वभाव से परिचित थी की श्वेता तो हर बात
में नुक्स निकालती है उसको खुश करना टेढ़ी खीर है लेकिन अब जब उसने आर्डर दे
ही दिया है तो कमला को तो सब तैयारी करनी ही थी ! कमला ने जी तोड़ मेहनत
करके खाना तैयार किया ! शाम हो चुकी थी कमला की धड़कने बढ़ रही थी पता नहीं
मेमसाहब को खाना पसंद आयेगा भी या नहीं या फिर आज मेरा नौकरी का अंतिम दिन
होगा ! अगर ऐसा हुआ कि मुझे नौकरी छोड़ कर जाना पड़ा तो मेरा और मेरे बच्चों
का गुजारा कैसे होगा ! मुश्किल से ये नौकरी करके कमला अपना और अपने तीन
बच्चों का पेट पाल रही थी !</span></em></strong></span></div>
<div style="font-size: small; line-height: normal;">
<span style="color: blue;"><strong><em><span style="font-size: small;">पार्टी
शुरू हो गयी ! कमला भी अपने बच्चों को साथ लायी थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं
थी कि उनको अन्दर आने को कहती इसीलिए उसने उनको घर के पिछवाड़े के आँगन में
बैठा दिया ! केक काटने के बाद खाना लगाने को कहा … कमला ने डरते हुए खाना
लगाया ! श्वेता ने पहला ही कौर मुह में लिया और थूक दिया ये क्या वाहियात
खाना बनाया है …. इसमें नमक है ही नहीं और मिर्ची इतनी की मुंह में छले पड़
जाये ! हटाओ इस बकवास खाने को और ऐसा कहकर श्वेता ने प्लेट फेंक दी !
श्वेता की मम्मी ने कमला को डांटते हुए कहा की बेबी का मूड ख़राब कर दिया आज
उसका जन्मदिन है !</span></em></strong></span></div>
<div style="font-size: small; line-height: normal;">
<span style="color: blue;"><strong><em><span style="font-size: small;">बेबी
यानि श्वेता जो की बीस साल की हो गयी थी आज ! गुस्से में अपने फ्रेंड्स को
लेकर चल पड़ी की चलो कहीं अच्छी जगह जाकर खाना खायेंगे ! जाते जाते श्वेता
आर्डर दे गयी की इस खाने को फेंक देना ! कमला ने खाना चखा लेकिन खाना तो
बहुत अच्छा बना था पर कमला पलटकर जवाब थोडा दे सकती थी ! उसने खाना उठाया
और बांधकर चल पड़ी बच्चों को लेकर बस्ती की तरफ उदास मन से की जिसको खाने की
भूख ही न हो उसको खाने का स्वाद कैसे पता चलेगा ! उसने खाना अपनी बस्ती के
सारे बच्चों में बांटा ! सारे बच्चे खाने को देखकर टूट पड़े क्यूंकि उनको
ऐसे लज़ीज़ पकवान कभी नसीब कहाँ हुए थे वो तो आज श्वेता के ज्यादा नखरे के
कारन मिल गया ! सब बच्चे खाना खाकर इतना खुश थे अब कमला भी थोड़ी अपने को
हल्का महसूस कर रही थी की चलो किसी का तो पेट भरा !</span></em></strong></span></div>
<div style="font-size: small; line-height: normal;">
<span style="color: blue;"><strong><em><span style="font-size: small;">दोस्तों
ये बात सही है कि जब भूख ही न हो तो खाना कैसा भी हो बेस्वाद ही लगेगा और
भूख में तो कुछ भी हो खाने को वो बहुत स्वाद लगेगा ! भूख भूख होती है गरीब
या अमीर की नहीं होती ! अमीर लोग अपने पैसे के बल पर खाना वेस्ट करते हैं !
जब भूख की मार पड़ती है तो इंसान कुछ भी खाने को मजबूर हो जाता है ! ये भूख
ही है जो इंसान को इंसान का दुश्मन बना बैठी है ! ये भूख ही है जो सरेआम
लड़कियों के साथ दुष्कर्म हो जाते हैं ! ये भूख ही जिसके लिए लोगो ने अपना
ईमान तक बेच दिया है ! ये भूख ही है जिसके लिए इंसान इतना निचे गिर जाते
हैं ! भूख का कोई चेहरा नहीं होता कोई रूप नहीं होता ! भूख अमीर गरीब को
नहीं पहचानती !</span></em></strong></span></div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-17937999712802053972014-08-07T09:09:00.001+05:302014-08-07T09:09:16.750+05:30राखी पर लें प्रण .....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">" यही प्रण लेना और देना , <br /> राखी का मान-सम्मान बढ़ाना"<br /> <br /> प्रेम के धागे <br /> शायद कच्चे हो गये <br /> या फिर अपना <br /> महत्व खोने लगे हैं<br /> एक डोरी में बंधा <br /> प्रेम-विश्वास, दुआयें और सम्मान<br /> कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है <span class="text_exposed_show"><br /> वरना हर दिन यूँ <br /> बहने डर डरके न जीती <br /> एक तरफ श्रीकृष्ण ने <br /> द्रौपदी की लाज बचायी <br /> एक कच्चे धागे से ही <br /> खत्म न होने वाला चीर बनाया<br /> तब तो दुशासन एक था <br /> आज हर गली हर नुक्कड़ पर <br /> दुशासनों का डेरा है <br /> और कोई कृष्णा भी तो नहीं <br /> अब बहनों को भाई से <br /> खुद की रक्षा की नहीं बल्कि <br /> संपूर्ण नारी-जाति के<br /> सम्मान की रक्षा का प्रण लेना होगा <br /> वचन लेना होगा कि <br /> कभी किसी पर कुदृष्टि न डालें <br /> वरना बेइज्जत वो पीडित नहीं<br /> बल्कि मेरी राखी और मेरा विस्वास होगा !!<br /> <br /> प्रवीन मलिक ••••••@•••••</span></span></div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-64764001583170271522014-08-04T12:32:00.001+05:302014-08-04T12:32:31.045+05:30दो आंसू ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुनीता बहुत खुश थी आखिर 2 साल बाद उसको अपनी सहेली संजना से मिलने का
मौका मिला है ! कितना कुछ है जो उसको संजना से पूछना है उसको बताना है !
आखिर उसकी सबसे अच्छी सहेली जो है संजना ! सुनीता के पाँव जमीन पर नहीं
पड़ रहे हैं ... खुशी के मारे वो छीलने के लिए मटर ससुर जी को पकड़ा रही
है तो अखबार सासू जी को ... उफ्फ इतनी खुशी ... वो अपने दिल में नहीं समा
पा रही है !<br />
खुशी हो भी क्यूँ न .. रमेश ने पहली बार उसे कहीं जाने
की इजाजत जो दी है ! वो भी कितनी मिन्नतों के बाद कि संजना की शादी हो
जाएगी फिर क्या पता कभी मिल पायें या नहीं .. कितनी बार कहने पर रमेश ने
कहा था कि ठीक है लेकिन सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना .. यूँ तो सुनीता एक
दिन पहले जाना चाहती थी एक आखिरी रात संजना के साथ बिताना चाहती थी
क्यूँकि शादी वाले दिन उन दोनों को कहाँ कुछ टाइम मिलेगा अपनी कहने सुनने
का ... पर रमेश से वो बहस नहीं करना चाहती थी जितनी इजाजत मिली है उतने
में ही खुद को खुश कर लिया है !<br />
सारे काम वो फटाफट निपटा रही है कि
कल जल्दी उठना है ! तभी अचानक उनकी सास के कमरे से चीखने की आवाज आती है !
सुनीता दौड़कर कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी सास पेट पकड़े जमीन
पर बैठी है और रो रही है . . दर्द ज्यादा होने के कारण तुरंत हॉस्पीटल
लेकर गये रमेश और सुनीता माँ जी को ... ससुर जी घर पर ही यश के साथ रुके
.. दर्द के मारे माँ जी की हालत बहुत खराब थी लेकिन हॉस्पीटल जाकर डॉक्टर
के चैकअप के बाद पता चला कि गैस की वजह से दर्द था ! कुछ ही देर में दवाई
के बाद उनको आराम हो गया और डॉक्टर ने घर जाने की आज्ञा दे दी ! इसी बीच
रात के बारह बज गये ! माँ जी ने घर जाकर कहा कि सुनीता बेटा मैं अब बिलकुल
ठीक हूँ तुम जाकर सो जाओ .... कल तुम्हें अपनी सहेली की शादी में जाना है
!<br />
तभी रमेश ने तुनक कर कहा ... माँ इसकी सहेली की शादी कोई जरुरी
नहीं है ! सुनीता कल कहीं नहीं जा रही है फिर से आपकी तबियत अगर खराब हुयी
तो ....<br />
माँ जी ने कहा- नहीं बेटा मैं बिलकुल ठीक हूँ और डॉक्टर ने
कहा ना कि मामूली गैस थी अब सब ठीक है .. सुनीता जा आयेगी उसका बहुत मन है
अपनी सहेली से मिलने का ...<br />
रमेश- माँ ... क्या आप बच्चों सी बात
कर रही हैं ! ये नहीं गई तो क्या इसकी सहेली की शादी नहीं होगी ! वैसे भी
औरतों की क्या दोस्ती यारी .. आज कहाँ है कल पता नहीं कहाँ होंगीं !
सुनीता का संजना की शादी में जाना इतना जरुरी नहीं जितना आपकी सेहत है
.... तभी मोबाइल बजा और रमेश फोन पर बात करने लगा ... फोन की बातचीत से
पता चला कि रमेश का दोस्त अमन बहुत दिन बाद विदेश से आया है और कल सब
दोस्तों ने मिलने का प्लान किया है ... और रमेश हँसते हुये कहता है - हाँ
यार कल मिलते हैं मैं बिलकुल फ्री हूँ ....<br />
सुनीता मन ही मन सोचती है
क्या मुझे अपनी सहेली से मिलने का हक नहीं क्यूँकि मैं एक औरत हूँ ...
अगर रमेश चाहते तो मैं मिल सकती थी संजना से ... पर नहीं ..... मैं तो
रमेश के हाथों की शायद कठपुतली हूँ जो वो चाहेगें वही मुझे करना है ...
मैं खुद से कोई फैसला नहीं ले सकती हूँ ..... यही सोचते हुये दो आँसू
उसकी आँखों के कोर से छलकते हैं और सुनीता मुँह फेरकर छुपा लेती है और दिल
के दर्द को छुपाकर अपनी दिनचर्या में लग जाती है .....<br />
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-2793579179645623062014-08-03T08:46:00.002+05:302014-08-03T08:46:29.672+05:30ये रिश्ता ....(दोस्ती का)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यूँ तो सब रिश्ते<br />
खुदा की देन हैं<br />
एक दोस्त ही हम<br />
अपने अनुरुप चुनते हैं<br />
जो हमारे जैसा हो ,<br />
जिसके विचार और सोच<br />
हमसे मिलती हो<br />
तभी दोस्ती का काँरवा<br />
आगे बढ़ता है<br />
विस्वास के धागे का<br />
इसमें विशेष महत्व है<br />
ये धागा जितना मजबूत<br />
तो रिश्ता भी उतना ही<br />
दृढ़ , मजबूत होता है<br />
न इसमें हिसाब रखा<br />
जाता लेन-देन का<br />
जो दिया दिल से दिया<br />
कोई अहसान नहीं किया<br />
उपकार या अहसान<br />
जैसे शब्द तो इसमें<br />
कदापि नहीं आते<br />
एक दूसरे की समझ<br />
इसे और ज्यादा<br />
मजबूती देती है<br />
इसमें सारे गम अपने<br />
सारी खुशियाँ तुम्हारी<br />
न वक़्त का कोई पहरा<br />
न ही मजबूरियों का<br />
कोई बंधन<br />
जैसे हो वैसे ही मंजूर<br />
न कोई बदलाव की चाह<br />
आइने की तरह साफ<br />
छल कपट और बैर से<br />
कोसों दूर होता है<br />
ऐसा ही होता है ये रिश्ता ........(प्रवीन मलिक)</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-69017699045273509372014-08-02T10:01:00.000+05:302014-08-02T10:01:57.637+05:30सुनो ना ... क्यूँ हो इतनी कठोर ??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यूँ तो तुम बहुत अच्छी हो <br /> मन की सुन्दर हो <br /> व्यवहार की भी बहुत अच्छी हो <br /> सबसे मिलनसार हो <br /> बस मुझसे ही बेरुखी पाली है तुमने <span class="text_exposed_show"><br /> जाने क्यूँ इतनी सरहदें <br /> बनाकर रखी हैं तुमने तेरे-मेरे दरमियान <br /> न तुम खुद उस पार आती हो <br /> न ही मुझे इस पार आने देती हो <br /> नदी के दो किनारों सा रखना है तुमने <br /> हमारे इस रिश्ते को जो कभी नहीं मिलते <br /> बस साथ साथ चलते हैं अनंत तक <br /> पर बीच में हमारे ये जो स्नेह का <br /> मीठे जज्बातों का दरिया बहता है <br /> तुम इसमें भीगना भी नहीं चाहती हो <br /> लेकिन ये कभी-कभी बहुत ज्यादा <br /> तेज़ बहाव से बहने लगता है <br /> तोडना चाहता है किनारों को <br /> आना चाहता है उस पार तुम्हारे करीब <br /> पर तुम रोक देती हो आखिर क्यूँ <br /> मैं चाहता हूँ तेरे मेरे दरमियाँ एक पुल <br /> जिसे पार कर आ सकूँ तुमसे मिलने <br /> पर तुम्हारी ये रोक-टोक बहुत खटकती है <br /> बहुत रुला देती है मुझे <br /> खुद पर ही शक होने लगता है कि<br /> शायद मैं तुम्हारा भरोसा ही नहीं जीत पाया <br /> क्यूँ भरोसा नहीं कर पाती हो आखिर <br /> आजमाकर तो देखो हमें एकबार <br /> जो विस्वास दिखाया है उसे कभी टूटने नहीं देंगे <br /> भले ही उसके लिए हमें खुद टूट जाना पड़े <br /> इतनी भोली और मासूम सूरत है तुम्हारी <br /> फिर दिल क्यूँ इतना कठोर बनाया हुआ है <br /> चट्टान के माफिक ... <br /> कभी तो अपने दिल की भी सुन लिया करो <br /> क्यूँ रखती हो हर वक़्त उसे बेड़ियों में जकड़कर <br /> उसको भी कभी तो जीने दो जैसे वो चाहता है जीना <br /> उसको भी करने दो अपनी कुछ ख्वाहिशें पूरी <br /> थोडा तो रहम करो उसपर आखिर है तो एक दिल ही न <br /> मुझ से तो नाइंसाफी करती ही हो <br /> अपने दिल से तो कभी इन्साफ कर लो <br /> सुनो ना ... बताओ तो आखिर तुम्हे <br /> क्या डर है , क्यूँ तुम अपने दिल की नहीं सुनती हो <br /> मेरा दर्द तो खैर तुम कहाँ समझोगी <br /> तुमने तो अपने दिल को ही कैद में रखा है !!......................( प्रवीन मलिक )</span></div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-44374484785077738332014-07-30T13:10:00.001+05:302014-07-30T13:10:23.816+05:30बिन बेटियाँ कहाँ बढ़ेगी वंशबेल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
सावित्री अचानक चक्र खाकर गिर पड़ी !
धनपति भागकर बहु को उठाती है और डॉ को बुलाने को दौडती है ! घर के बाहर ही
धनपति को इमरती देवी मिल जाती है जो की धनपति की अच्छी सहेली होने के साथ
साथ दाई भी है ! गाँव में ऐसा कौन जिसने इमरती देवी के हाथो जन्म न लिया हो
! सभी गाँव वाले उसको इमरती काकी कहकर बुलाते हैं ! धनपति को दौड़ते हुए
देखकर इमरती काकी पूछ बेठी अरे धन्नो कहाँ भागी जा रही है न राम राम न
श्याम श्याम .......<br />
धनपति देवी : अरे काकी क्या बताऊ बहु अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ी बस डॉ को ही बुलाने जा रही थी जल्दी जल्दी में आपको देखा ही नहीं !!<br />
इमरति
काकी : अरे रुक ... चल मैं देखती हूँ क्या हुआ है बहु को ... तुम्हे तो
पता है न की तो नाडी देखकर ही बता दूंगी क्या हुआ होगा बहु को .. चल घर चल
...<br />
( दोनों घर के अन्दर तेजी से प्रवेश करती हैं )<br />
इमरती काकी
सावित्री की नब्ज देखती है और फिर पेट हाथ लगाकर देखती है और बोलती है अरे
धन्नो ऐसे चक्कर तो सबको आयें .. जा जल्दी से कुछ मीठा ले आ तू तो दादी
बनने वाली है ... तेरी बहु तो पेट से है ...<br />
धनपति की ख़ुशी का ठिकाना
न रहा और रसोई से गुड लाकर सबका मुंह मीठा कराती है ये कहते हुए कि अभी तो
गुड से काम चलाओ वेदपाल आयेगा तो लड्डू मंगवा कर बाटूंगी ....(इमरती कुछ
देर बैठकर निकल जाती है बहु को कुछ जरुरी बाते बता कर क्या करना है कैसे
चलना है कैसे उठाना बैठना है आई आदि )<br />
धनपति : बहु अब तुम बहुत ख्याल रखना अपने खाने पीने का मुझे मेरा पोता एकदम चाँद सा सुन्दर चाहिए ...<br />
सावित्री : पर माता जी क्या पता पोता होगा या पोती .... जो भी बस चाँद का टुकड़ा होना चाहिए !<br />
धनपति
: (गुस्से में) ... बहु पोता ही चाहिए मुझे ... कुछ दिन बाद जाकर चेक करा
लेंगे मुझे बस पोता ही चाहिए जो मेरे वंश को आगे बढ़ाएगा ... पराये धन का
क्या करना है खिला पिलाकर हम बड़ा करेंगे और कमाएगी किसी और के घर जाकर ....<br />
सावित्री
चुप हो गयी क्यूंकि धनपति के सामने कुछ भी कह नहीं पाती थी आखिर धनपति
धाकड़ बुढिया थी जिस से सावित्री तो क्या वेदपाल और यहाँ तक भोला सिंह भी
डरते थे !<br />
समय बीत गया और आखिर साढ़े-तीन महीने हो गए थे सावित्री को ...<br />
धनपति
: ओ बहु सुन .. आज हस्पताल जाना है जल्दी से काम निबटा ले ... बात कर ली
है मैंने घर में सबसे ... बेटी हुयी तो क्यों फालतू का झंझट मोल लिया ...
बेटा हुआ तो रखेंगे ..<br />
सावित्री की तो मानो सांसे ही रुक गयी हों
.... उसका दिल जोर जोर से धडकने लगा की पता नहीं क्या होगा ... क्या मैं
अपने बच्चे को जन्म दे पाऊँगी या नहीं ... बेटियां क्या इतनी बुरी होती हैं
जिनके पैदा होने पहले ही इतनी चिंता होने लगती है ... पर अम्मा जी कहाँ
मेरी सुनेंगी<br />
दोनों हस्पताल पहुँच जाती हैं और डॉ से मिलती हैं<br />
धनपति
: डॉ साहब ये मेरी बहु है .. साधे तीन महीने पेट से हैं बस अब जल्दी से
बता दो की बीटा है या बेटी ... मैं आपका दराज पैसो से बहर दूंगी ...<br />
डॉक्टर
: ठीक है ताई ..पर जन्म से पहले बच्चे के लिंग का पता लगाना कानूनन जुर्म
है ! हम सिर्फ बच्चा ठीक है स्वस्थ है यही बता पाएंगे .... बाकी ...<br />
धनपति
: अरे डोक्टर फ़िक्र क्यूँ करे है ... बस तू दाम बता और फेर हम तो किसी को
बताएँगे नहीं और आपने बताने की के जरुरत है ... कानून ने कोणी पता चाले के
बताया के नहीं ...<br />
डोक्टर : ठीक से ताई .. पर चोखी रकम देनी पड़ेगी फेर ही कुछ कर पाउँगा .. न ते तन्ने पता है कि कितना रिस्क भरा काम है ...<br />
धनपति : अच्छा ठीक है जो तू बोले .... बस म्हारा काम कर दे बाकि चिंता न कर ...<br />
सावित्री
को जिसका डर था आखिर वहि हुआ ... डोक्टर ने कहा कि लड़की ही है ... ये
सुनते ही धनपति ने कहा की ख़त्म कर दो नहीं चाहिए ... मुझे तो बस लड़का ही
चाहिए ... सावित्री रोती रही हाथ पैर जोडती रही की मेरी बेटी को मत मारो
जीने दो उसको .. उसको भी देखने दो दुनिया .. पर कहाँ चलने वाली थी !<br />
धनपति
ने एक तरफ पोती से पीछा छुड़ाकर राहत की सांस ली वहीँ दूसरी तरफ सावित्री
को अब वो पहले की तरह प्यार से नहीं ट्रीट करती थी जब देखो ताने देती रहती
की एक वारिस भी न दे सकी हमारे परिवार को ... इन सबके चलते सावित्री अन्दर
ही अन्दर घुटती रहती .... वेदपाल को कुछ कहती तो वो भी आग बबूला हो
सावित्री आर ही बरस पड़ता ....<br />
आखिर कुछ दिन बाद सावित्री को पता चला
कि वो फिर से पेट से है लेकिन उसने सोचा कि अब अगर वो बताएगी तो फिर से वही
होगा .. तो उसने कुछ दिन चुप रहने का ही सोचा लेकिन एक तो सावित्री कमजोर
थी ऊपर से पेट से .. उसकी तेज सास को पता लगाने से भला कौन रोक सकता था !
अंततः धनपति को पता चल ही गया की सावित्री फिर से पेट से है और धनपति ने
उसी डोक्टर से मिलने की बात की ..... फिर वही हुआ जो धनपति चाहती थी और
सावित्री को डर था .. सावित्री की एक और संतान लड़के की चाह में मिट गयी
...... ऐसा एक बार नहीं हुआ कई बार हुआ और सावित्री कुछ न कर सकी सिर्फ दुआ
के कि अबकी बार देना हो तो बेटा दे ताकि वो अपनी संतान को जन्म दे सके
वरना कुछ न दे .....<br />
कुछ दिन बाद सावित्री फिर से पेट से थी शायद
पांचवी बार ... पहले चारो बार उसका गर्भपात करा दिया गया था और इस बार
रामजाने क्या होगा ... लेकिन इस बार शायद सावित्री की दुयाएँ कबूल हो गयी
थी और जाँच में पता चला की सावित्री दो जुड़वाँ बेटो की माँ बन ने वाली है
... धनपति ने लड्डू बंटवाएँ .. सावित्री भी खुश थी की अब वो माँ बन पायेगी
सही मायने में .... और 9 महीनो बाद सावित्री ने दो चाँद से बेटो को जन्म
दिया ! देसी घी का खाना किया गया पुरे गाँव और उसके आसपास के लोगो का ...
मंदिरों में दान दिया गया ....<br />
धीरे धीरे दोनों बेटे बड़े होने लगे
पढाई में चतुर थे दोनों ही और सबकी आशाओं पर खरे उतर रहे थे ! पढ़ लिखकर
नौकरी लग गए लेकिन जैसा की आप जानते हैं हमारे हरियाणा में लडको के अनुपात
में लड़कियां काफी कम हैं ! बहुत से कुवारें लड़के घूम रहे हैं ! ऊपर से जात
बिरादरी का भेद अलग से ! अब उनके ही बेटो की शादियाँ हो रही हैं जिनके खुद
एक बेटी है ... बेटी दो बहु लो यही प्रथा चल पड़ी है ! धनपति को रातदिन
चिंता सता रही है पोतो की शादी की लेकिन कुछ बात नहीं बन रही ... एक दिन
धनपति एक पड़ोस के दीनू काका से जिक्र करती है की काका कैसे भी करके मेरे
पोतो की शादी करा दो ... सारा खर्चा हम करेंगे बस लड़कियां ढूँढकर ला दो ...
काका भी हाजिर जवाबी थे बोले धनपति तुमने इतने पाप किये हैं हमसे क्या
छुपे हैं .. तुमने खुद की कितनी पोतियाँ कुर्बान की हैं सिर्फ पोते की
लालसा में ... तेरी पोती होती तो कबकी तेरे भी पोतो की शादी हो चुकी होती
तुम तो जानती हो न की आजकल बदला चल रहा है एक हाथ दो दुसरे हाथ लो ! पर
तुम कहाँ से बदला करोगी ! अब चलाओ अपना वंश पोतो से ही .....</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-81826292418221228292014-07-13T10:11:00.002+05:302014-07-13T10:11:49.700+05:30बरसो ना मेघा ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तने खड़े हैं<br />
गुमसुम बादल<br />
क्यूँ न बरसें<br />
<br />
गर्मी से तप्त<br />
भू पर जीव-जंतु<br />
आस लगाये<br />
<br />
जमीं का प्यार<br />
समझें न बादल<br />
हुए निष्ठुर<br />
<br />
रोते किसान<br />
बिन पानी फसल<br />
न हो बुआई<br />
<br />
बच्चे व्याकुल<br />
गर्मी करे बेचैन<br />
खुले हैं स्कूल<br />
<br />
*********प्रवीन मलिक**********</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-69267453325876111582014-07-06T19:06:00.002+05:302014-07-06T19:06:49.523+05:30तुम क्या जानो ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुम क्या जानो .......<br />
<br />
कुछ भी लिखना<br />
कहाँ है आसान<br />
कलम तो चाहती है<br />
हर वक्त मचलना<br />
शब्दों में भी तो<br />
तड़प होनी चाहिए<br />
बँधने की एक सूत्र में<br />
अहसासों को भी<br />
कुछ तो चाहत हो<br />
बरस जाने की<br />
जज्बात भी तो<br />
चाहें वजूद अपना<br />
किसी कोरे कागज पर<br />
उतारना , तभी तो<br />
कलम का चलना<br />
होगा सार्थक और<br />
बन पड़ेगा कुछ<br />
रोचक सा जिसे<br />
ये दिल चाहता हो<br />
बयान करना तुमसे<br />
और तुम कह देते हो<br />
इसको वाहियात<br />
समय की बर्बादी<br />
तुम क्या जानो<br />
ये तो अब शामिल है<br />
मेरे उन अजीजों में<br />
जो मुझे हरवक्त देते हैं<br />
अहसास मेरे जिंदा होने का<br />
तुम क्या जानो ये सब !!</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-9693273116237974602014-07-02T19:31:00.000+05:302014-07-02T19:31:01.187+05:30हकीकत हो या सपना ... पीड़ा वही होती है !!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मन अति व्याकुल ... विचारों का गहन मंथन हो रहा अंतर्मन में ... सारे अच्छे बुरे पल चलचित्र की भाँति घूम रहे दिमाग में ... नैन अश्रुपूर्ण और हृदय में अजीब सी पीड़ा ... बाहर से सब सामान्य दिख रहा पर अंतर्मन में भयंकर तुफान ... तभी दूर धुयें से बनती एक परछाई पास और पास और पास आती दिखाई दे रही .. अब इतनी पास कि शक्ल साफ दिख रही है .... ये तो माँ है ... माँ ....माँ .... चिल्लाती उस दिशा में दौड़ती पर माँ जैसे पहले समीप आ रही थी अब उसी तरह धीरे-२ वापस दूर जा रही है ... पकड़ने में असमर्थ पीछे दौड़ती हुई .. हृदय की पीड़ा कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है और एक तेज चीख निकलती है .. माँ ... रुको ना...... तभी आँख खुल जाती है !<br />
उफ्फ सपना था ये ..... पर हकीकत के कितने करीब लग रहा था... दिल में वही उथल-पुथल.. वही अश्रुपूरित नैन .. हृदय में वही तीक्ष्ण पीड़ा .... वही खोने का अहसास .....</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-23015444740762907062014-06-26T18:30:00.001+05:302014-06-26T18:30:22.664+05:30मन ... "बेताज बादशाह"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
ये चंचल मन </div>
<div style="text-align: center;">
बिन पंखों के </div>
<div style="text-align: center;">
ख्वाबों की दुनिया में </div>
<div style="text-align: center;">
विचरता रहता है </div>
<div style="text-align: center;">
हकीकत से दूर </div>
<div style="text-align: center;">
ख्वाहिशों की </div>
<div style="text-align: center;">
ट्रेन पकड़कर</div>
<div style="text-align: center;">
जाने कहाँ-कहाँ </div>
<div style="text-align: center;">
भटकता रहता </div>
<div style="text-align: center;">
इसके लिए कोई </div>
<div style="text-align: center;">
बंधन मायने नहीं रखता </div>
<div style="text-align: center;">
ये हर बॉर्डर को </div>
<div style="text-align: center;">
क्षण भर में ही </div>
<div style="text-align: center;">
बेखौफ पार कर जाता </div>
<div style="text-align: center;">
नामुमकिन जैसे शब्द </div>
<div style="text-align: center;">
शायद इसने कभी </div>
<div style="text-align: center;">
पढ़े नहीं तो , नहीं है कुछ भी </div>
<div style="text-align: center;">
नामुमकिन इसके लिए </div>
<div style="text-align: center;">
ये तो अपनी ही </div>
<div style="text-align: center;">
खूबसूरत रंग-बिरंगीं </div>
<div style="text-align: center;">
दुनिया का बेताज बादशाह है !!</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
प्रवीन मलिक </div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-81502554168960341832014-05-10T19:11:00.000+05:302014-05-10T19:11:59.094+05:30माँ ही नहीं है पर यादें तो हैं !! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhquMAaxng5tfDRU_4hFHpC9GyercObOQkPAM3Tdqvo49MlvFxjR6k7Gtd8wVGFF81Pv6jF3ju0UM1un-xHsKWuE1NjX3Xpy4QjAio5e9txUJMnALeAsiv3w87wMdXkHsuRRvPPO6KSMRM/s1600/PhotoGrid_1399707305175.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhquMAaxng5tfDRU_4hFHpC9GyercObOQkPAM3Tdqvo49MlvFxjR6k7Gtd8wVGFF81Pv6jF3ju0UM1un-xHsKWuE1NjX3Xpy4QjAio5e9txUJMnALeAsiv3w87wMdXkHsuRRvPPO6KSMRM/s1600/PhotoGrid_1399707305175.jpg" height="320" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">माँ की परछाई </td></tr>
</tbody></table>
<br />
<br />
<br />
माँ शब्द को परिभाषित करना मतलब सारी भावनाओं को , सारे अहसासों को , सारी संवेदनाओं को , सारी दुआओं को , सारे त्याग को , अनंत प्रेम को विस्तार में कहना ! माँ के लिए लिखने पर शब्द खत्म हो सकते हैं पर माँ का प्यार अनंत बाहें फैलाकर शब्दों में समाना ही नहीं चाहता ! माँ तो वो है जो हमारे जन्म से पहले से ही हमारे लिए त्याग करना शुरु कर देती है , हमारी सेहत के लिए अपने पसंद के भोजन तक को बदल देती है , अपनी सारी रातें हमारे नाम कर देती है , अपने सपने सब हमपर कुर्बान कर देती है , खुद की जान पर खेलकर हमें इस दुनिया में लाती है , हमारी पहली गुरु बन कर हमारी शिक्षा की नींव रखती है , गलत सही के बीच भेद बतलाती है , अच्छे बुरे का फर्क समझाती है , हमारी छोटी- छोटी खुशियों में ही वो खिलखिलाकर मुस्काती है , दर्द हमें हो तो आँसू वो बहाती है , हमारी हर बात को बिन कहे समझ जाती है .... माँ के लिए जितना कहा जाये कम ही पड़ता है !<br />
कुछ कभी जब भी माँ की याद आये तो शब्दों में ढ़ालना चाहा ...<br />
<br />
जिंदगी की राह में जाने कितने मोड़ आते हैं<br />
कुछ अजनबी मिल जाते तो कुछ अपने छूट जाते हैं<br />
सफर ये रुकता नहीं है किसी के छूट जाने से भी लेकिन<br />
हाँ वक्त वक्त पर छूटे हुये अपनेे याद बहुत आते हैं .....<br />
<br />
माँ के हाथ के खाने में जाने क्या स्वाद था ,<br />
रुखी-सूखी खाकर भी दिल तृप्त हो जाता था !<br />
खुद के बनाये लजीज खाने में भी अब ,<br />
न वो स्वाद है और ना ही दिल को तृप्ति होती है !!......<br />
<br />
माँ का आँचल कितना भी झीना क्यूँ न हो<br />
औलाद को हर अल्ली-झल्ली से बचा लेता है !!....<br />
<br />
माँ की दुआएँ ढ़ाल बन जाती हैं<br />
जब भी मेरी जिंदगीं में मुश्किलात आती हैं !!<br />
<br />
यूँ तो अपने बहुत हैं कहने को माँ ,<br />
पर तुमसा अपनापन किसी में नहीं है !!<br />
<br />
तुम्हारी डांट में भी कितना प्यार छुपा था माँ ,<br />
माँ बनकर ही तेरा वो प्यार अब समझ आया !!<br />
<br />
बात बात पर रूठ जाया करते और तुम पल में मना लिया करती ,<br />
वो रुठना मनाना आज फिर से बहुत याद आया माँ !!<br />
<br />
सारे भाव अलग अलग परिस्थितियों में माँ की अहमियत का अहसास कराते हैं और माँ की यादों को अनमोल बनाते हैं !<br />
माँ जैसी ही बनना है मुझे पर उसके जितनी ममता कहाँ से लाऊँ .....<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-61042876418283188772014-05-06T10:44:00.000+05:302014-05-06T10:44:35.201+05:30हाइकु-- मासूम चंचल बेटियाँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ हाइकु मासूम चंचल बेटियों के लिए ...<br />
<br />
*******************************<br />
<br />
सुन नादान<br />
ईश्वर वरदान<br />
बेटी संतान<br />
<br />
**<br />
<br />
छू लें आसमाँ<br />
करें नाम रौशन<br />
दें, जो हौसला<br />
<br />
**<br />
<br />
एक ही चाह<br />
नापे धरा गगन<br />
बेटी शगुन<br />
<br />
**<br />
<br />
नाजों से पली<br />
चढ़ी दहेज बलि<br />
मासूम कलि<br />
<br />
**<br />
<br />
नाजुक कंधें<br />
ढ़ेर जिम्मेदारियाँ<br />
ढ़ोती बेटियाँ<br />
<br />
***********************************<br />
<br />
प्रवीन मलिक <br />
***********</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-85115048413895221972014-05-01T09:14:00.000+05:302014-05-01T09:14:56.918+05:30सम्मान के हकदार श्रमिक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर कोई अपने स्तर पर श्रमिक है और पसीना बहाना श्रमिक की पहचान है पर हर स्तर पर श्रमिक को सम्मान नहीं मिलता यदि आप अपने उच्च अधिकारी से सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो आपका भी फर्ज है अपने निम्न स्तर के श्रमिकों को उचित सम्मान देना .... आखिर खून पसीना बहाते हैं भले ही अपने पेट के लिए पर उनका सहयोग हर स्तर पर मायने रखता है और विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है !<br />
***<br />
<br />
कर्कश वाणी<br />
सहना मजबूरी<br />
सब हैं जाणी<br />
***<br />
पेट की आग<br />
जलाए हरपल<br />
कैसे अभाग<br />
***<br />
सूखा शरीर<br />
श्रम है मजबूरी<br />
न हो अधीर<br />
***<br />
थोड़ा सम्मान<br />
श्रमिक हकदार<br />
जरा ले जान<br />
***<br />
नन्हें श्रमिक<br />
खो रहे बचपन<br />
सुनो धनिक<br />
***<br />
रद्दी बीनता<br />
वो बाल मजदूर<br />
पेट की चिन्ता<br />
***<br />
<br />
<br />
प्रवीन मलिक </div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-64045399569835135672014-04-30T09:18:00.002+05:302014-04-30T09:18:17.792+05:30वृधावस्था पर कुछ हाइकू <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<i><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNsL2X08_XXnCRyWO8sbXQ9o9Oz9JZPZlwiTcrihFuYA_kKqbBUivAkADsHqaHOzp9aNon483CtV_0yKf0Co1hB1mlsOtcmGPDISksWMw-XFVyFpoPjk2CC3gZvRpWz77um1T6wBD472o/s1600/loneliness.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNsL2X08_XXnCRyWO8sbXQ9o9Oz9JZPZlwiTcrihFuYA_kKqbBUivAkADsHqaHOzp9aNon483CtV_0yKf0Co1hB1mlsOtcmGPDISksWMw-XFVyFpoPjk2CC3gZvRpWz77um1T6wBD472o/s1600/loneliness.jpg" height="189" width="320" /></a></b></i></div>
<br />
<br />
<i><b>बुढ़ापा आया / कष्ट साथ में लाया / कैसी विपदा<br />
<br />
द्रवित मन<br />
टूट चुके हौसले<br />
जर्जर तन<br />
<br />
आखिरी क्षण<br />
इकलौती चाहत<br />
बेटे की गोद<br />
<br />
टूटा है दिल<br />
अवहेलना पाई<br />
बच्चों से मिल<br />
<br />
लुटा जीवन<br />
संवारा है भविष्य<br />
प्रिय संतान<br />
<br />
मोह ममता<br />
अपने ही खून से<br />
पड़ी मंहगी<br />
<br />
घर का कोना<br />
मिलना है दूभर<br />
उठा बिछौना<br />
<br />
छलकी आँखें<br />
कचोट रहा मन<br />
बुढ़ापा बैरी<br />
<br />
नींद लुटाई<br />
लाडले का भविष्य<br />
सवांरने को<br />
<br />
बुढ़ापा आया<br />
कष्ट साथ में लाया<br />
कैसी विपदा<br />
<br />
सारी जिंदगी<br />
प्यार-प्रेम लुटाया<br />
कुछ न पाया<br />
<br />
हमारा कल<br />
त्याग का है गवाह<br />
सुन ले आज</b></i><br />
<br />
<br />
<u><i><b>प्रवीन मलिक </b></i></u><br />
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-50895012867863672072014-03-29T13:54:00.001+05:302014-03-29T13:54:09.076+05:30बेटी भी बहू होती है ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b>अजय रोज ही शराब पीकर आता और आते ही सुधा पर हाथ छोड़ने लगता किसी न किसी बहाने से ! सुधा रोज रोज के इस अत्याचार से तंग आकर मायके चली गई लेक्न सास ससुर ने कोई आवश्यक कदम नहीं उठाया इस विषय पर ! सुधा के पिता जी ने उसके सास ससुर को समझाया भी कि आप अपने बेटे को समझाएं वरना हमों समझाना होगा ... बेहतर यही होगा कि आप बात करें ! सास ससुर ने सुधा के पिता जी को चटक से कह दिया कि कहासुनी किसके घर नहीं होती और गुस्से में अजय ने हाथ उठा भी दिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा .. सुधा को भी तो समझना चाहिए ! सुधा के पिताजी तुनक कर रह गये पर बेटी के ससुराल का मामला था तो ज्यादा कुछ न कहते हुये बोले कि अगर सुधा की कोई गल्ती हो तो समझ आता है पर इस व्षय पर आप थोड़ा संयम और निष्पक्ष होकर सोचें तो शायद आप समझे आखिर आप भी एक बेटी की माँ हैं ! काफी दिन बीत गये पर सुधा की ससुराल से कोई नहीं आया सुधा की खबर लेने और अजय ने भी पीना कम नहीं किया बल्कि ज्यादा ही कर दिया ! एक दिन रात के तीन बजे सुधा की ननद रोती हुई मायके आ पहुंची ! इतनी रात को आरती(सुधा की ननद) को देखते इस हाल में देखकर अजय और उसके मम्मी पापा के पैरों तले जमीन निकल गई ! उसी वक्त गाड़ी निकालकर आरती की ससुराल पहुँच गये और उसके पत् व सास ससुर को बहुत बुरा भला कहने लगे ! विकास(आरती का पति) आगे आया और बोला साले साहब इतना कष्ट हो रहा है अपनी बहन की आंखों में आंसू देखकर .... सुधा की भी ऐसी ही हालत करके भेजा था तब आपको कोई तकलीफ नहीं हुई ! इतना सुनना था कि अजय और उसके माता पिता पर मानों घड़ों पानी फिर गया और बोले बेटा हम अभी सुधा को लेने जा रहे हैं तुम बस आरती का ख्याल रखना ! आरती आगे बढ़ी और बोली माँ ये सब आप लोगों को समझाने के लिए था .. कल हम सुधा भाभी से मिलने गये तो पता चला सब ... माँ सुधा भाभी भी आपकी बेटी हैं उनको तकलीफ में देखकर उनके बूढ़े माँ बाप को भी इसी तरह तकलीफ होती है जिस तरह आपको मुझे इस हाल में देखकर हुई ! बस अब सुधा के सास ससुर देर नहीं करनै चाहतेे थे और बहू को लेकर आ गये !</b><br />
<br />
प्रवीन मलिक </div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-54820546024314308102014-03-15T21:16:00.000+05:302014-03-15T21:16:31.104+05:30होली का ये पावन त्यौहार ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdxO9AV0lqaZluvKmcqNSkrjf6jyzhOoHHNURjbrVMGVW5adhUP8_pIOamWdBYQjRcNQm_iGvx3BIh4ORG3sfHh3IYyCKXASEgxwNMH4o-P73HRe7qcSd-vFZP6XBZa1UKSabsGXZql4c/s1600/holi2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdxO9AV0lqaZluvKmcqNSkrjf6jyzhOoHHNURjbrVMGVW5adhUP8_pIOamWdBYQjRcNQm_iGvx3BIh4ORG3sfHh3IYyCKXASEgxwNMH4o-P73HRe7qcSd-vFZP6XBZa1UKSabsGXZql4c/s1600/holi2.jpg" /></a></div>
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<b><i><span style="font-size: large;">होली का ये पावन त्यौहार ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">फैलाता है चहुँ ओर प्यार !!</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<b><i><span style="font-size: large;">हर रंग से सजा है ये त्यौहार ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">ले आता है जीवन में ये बहार !!</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<br />
<b><i><span style="font-size: large;">प्रेम और भाईचारे का रंग ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">खेले होली हर कोई संग-संग !!</span></i></b><br />
<br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<b><i><span style="font-size: large;">गुंजिया-सी मिठास फैलाना ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">नफरतें दिलों से तुम मिटाना !!</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<br />
<b><i><span style="font-size: large;">गिले शिकवे दिल से मिटाना ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">प्यार -प्रेम का तुम रंग फैलाना !!</span></i></b><br />
<div>
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b></div>
<br />
<br />
<b><i><span style="font-size: large;">होली पर करना तुम ऐसा धमाल ,</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;">लगाना एक दूजे को रंग और गुलाल !!</span></i></b><br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<span style="font-size: large;"><b><i>आपको एवं आपके परिवार को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें !!!</i></b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><i>सादर धन्यवाद....</i></b></span><br />
<b><i><span style="font-size: large;"><br /></span></i></b>
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-82559612751178870352013-11-30T20:15:00.001+05:302013-11-30T20:15:36.915+05:30फरेबी ज़ज्बात ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="margin: 0px;">
<img alt="what was my fault" src="http://mparveen.jagranjunction.com/files/2012/01/what-was-my-fault.jpg" /></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>रिश्ता जोड़ा हमने दिल की सांसों से ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>तुम खेलते रहे मेरे मधुर अहसासों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>तुम करते रहे फरेब पाक ज़ज्बातों से ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>हम डूबते चले गए मन की गहराइयों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>तुम्हारी तो ये आदत है खेल खेलने की ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>हम टूट कर बिखर गए कांच के आइनों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>कभी सुबह-शाम की अजान से रहे तुम ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>अब अता होते हो तो मातमी अल्फाजों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>दिल सजाए बैठा है ख्वाब जाने कितने ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>तुम गुजरते चले गए वक़्त के हाशियों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>निकल पड़े हो ढूँढने कोई और खिलौना ,</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i>दिल भरा नहीं अभी क्या मेरी बर्बादियों से !</i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div style="margin: 0px;">
<b><i><br /></i></b></div>
<b><em></em></b><br />
<br />
<b><em></em></b><br />
<em><b><span style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;"></span><div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
</div>
</b></em><br />
<div style="margin: 0px;">
<b><i>************प्रवीन मलिक****************</i></b></div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-77567599997912879002013-11-16T10:22:00.000+05:302013-11-16T10:22:18.206+05:30इतना क्यूँ तुम मुस्करा रही हो ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7vWARZs_QSkvkeaa3KKksMLv9z90G7l05K76twUuYxw_weluZ3xmjOZM0ftMh9-uDqU8T0ewBme_zGxFQ0FeVifCtD8WJiQPUK60RHXytsVr6iv7bVcvjE_vtSEUMz6sPByIiyYJZxbI/s1600/IMG_161016672636546.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="243" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7vWARZs_QSkvkeaa3KKksMLv9z90G7l05K76twUuYxw_weluZ3xmjOZM0ftMh9-uDqU8T0ewBme_zGxFQ0FeVifCtD8WJiQPUK60RHXytsVr6iv7bVcvjE_vtSEUMz6sPByIiyYJZxbI/s320/IMG_161016672636546.jpeg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
बहुत दिन से कुछ लिख नहीं पायी आज कोशिश की है कुछ लिखने की .... देखिये जरा !!<br />
<br />
<br />
बेखबर सी तुम जो मुस्करा रही हो ,<br />
जाने इतना तुम क्यूँ शरमा रही हो !<br />
क्या राज छुपा रखा है इन आँखों में ,<br />
जो इस तरह नजरें तुम झुका रही हो !!<br />
<br />
किसकी यादों को दिल में छुपा रही हो ,<br />
किसके सपने आँखों मे सजा रही हो !<br />
कौन है वो खुशनसीब सा इस जहाँ में ,<br />
जिसके लिए मंद-मंद मुस्करा रही हो !!<br />
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
**********प्रवीन मलिक**********</div>
</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-835549440590810244.post-11461592987538490502013-10-22T13:22:00.000+05:302013-10-22T13:22:19.454+05:30करवा चौथ ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPrKnrpqrxlR4YWoZiub2bMb-uofV41Re776XnNb5Dv3e-0L7Q636uIeFwlsOKLgebUQWHNbLi4h6-eT0yF81JVXh9muQ9J4CYy16BC5ng3A1oSmaT8GAGx0TYlvWxbwbifSxndy_nlqs/s1600/IMG-20131022-WA0002.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="127" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPrKnrpqrxlR4YWoZiub2bMb-uofV41Re776XnNb5Dv3e-0L7Q636uIeFwlsOKLgebUQWHNbLi4h6-eT0yF81JVXh9muQ9J4CYy16BC5ng3A1oSmaT8GAGx0TYlvWxbwbifSxndy_nlqs/s320/IMG-20131022-WA0002.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
कुछ हाइकु संग सभी बहनों और भाभियों को करवाचौथ की हार्दिक बधाई ... आपका सुहाग और प्रेम चाँद की तरह हमेशा हमेशा चमकता रहे और प्रेम की चाँदनी जीवन को शीतलता प्रदान करे ...<br />
*********************************<br />
चाँद है गुम<br />
भूखे व्याकुल हम<br />
प्रेम से शक्ति !!<br />
***<br />
सजी मेंहदी<br />
खनक रही चूड़ी<br />
सुहागन स्त्री !!<br />
***<br />
करवा चौथ<br />
दिर्घायु हो सुहाग<br />
चाँद को अर्घ !!<br />
***<br />
प्रेम हमारा<br />
चन्द्रमा सा चमके<br />
जीवन भर !!<br />
***<br />
माँग सिन्दूरी<br />
लाल हरी चूड़ियाँ<br />
सौभाग्य वती !!<br />
<br />
**************प्रवीन मलिक **********</div>
दिल की आवाज़http://www.blogger.com/profile/03374854482209439075noreply@blogger.com4