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देश हमारा था सबसे न्यारा
देश हमारा था सबसे न्यारा
न्यारी थी संस्कृति यहाँ की
प्रेम भाई-चारा भी था न्यारा
न्यारी थी वेश भूषा यहाँ की
वेदों का उच्चारण था गूंजता
महकता फिजा में हवन का धुंआ
अब देश हुआ नकलची हमारा
पश्चिमी सभ्यता का मारा
गिटपिट-गिटपिट अंग्रेजी बोले
मातृभाषा का यूँ अपमान हुआ
प्रेम भाई-चारा भी रहा नहीं
भाई-भाई का दुश्मन हुआ
चोर-लुटेरे देश के नेता हुए
आम आदमी बेचारा हुआ
नोट-वोट का खेल खेलते
झूटे वादों से फरेब हुआ
हर मोड़ पर भेड़िये बैठे
नारी का आचँल तारतार हुआ
इमानदारी कहीं रही नहीं
भ्रस्टाचार का बोल-बाला हुआ
देश हो गया है अब खोखला
बूढों के लिए घर में जगह नहीं
वृधा-आश्रम वृद्धों का सहारा हुआ
वीर भगत सिंह , आज़ाद जैसे
आदर्शवादी अब आदर्श नहीं
फिल्म अभिनेता और क्रिकेटर
युवाओं के अब आदर्श हुए
रक्षक ही अब भक्षक हो गए
पैसों से सस्ता अब ईमान हुआ
इंसान ही इंसान का खरीददार हुआ
बेचकर अपना ही ईमान-धर्म
इंसान आज सबसे धनवान हुआ
प्रवीन मलिक............
waaaaaaaaaaaaah bhot khub ae aaj ki bhetrin poost padhi mene bhot khub
ReplyDeleteBehatareen ,paise se sasta bhagwan ho gya !
ReplyDeleteभोगवाद की संस्कृति हावी होती जा रही है देश में .. तभी ऐसे भोगी आज के आदर्श बन गए हैं ...
ReplyDeleteये दर्द तो हमेशा रहेगा..
ReplyDeleteदिगंबर नासवा जी के टिप्पणी से सहमत हूँ.
ReplyDeleteसही चित्रण ! पैसा बाप से बड़ा हो गया !
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नमस्कार !
ReplyDelete..........सुन्दर रचना
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
सच में स्थिति बहुत ही चिंताजनक हो गयी है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
सादर!
सच मेँ देश की दशा बहुत ही चिन्ताजनक हो गयी है और होती जा रही है। आपने ठीक वर्णन किया है। बधाई।
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