आइये आपका स्वागत है

Saturday, 30 November 2013

फरेबी ज़ज्बात ....

what was my fault

रिश्ता जोड़ा हमने दिल की सांसों से ,
तुम खेलते रहे मेरे मधुर अहसासों से !

तुम करते रहे फरेब पाक ज़ज्बातों से ,
हम डूबते चले गए मन की गहराइयों से !

तुम्हारी तो ये आदत है खेल खेलने की ,
हम टूट कर बिखर गए कांच के आइनों से !

कभी सुबह-शाम की अजान से रहे तुम ,
अब अता होते हो तो मातमी अल्फाजों से !

दिल सजाए बैठा है ख्वाब जाने कितने ,
तुम गुजरते चले गए वक़्त के हाशियों से !

निकल पड़े हो ढूँढने कोई और खिलौना ,
दिल भरा नहीं अभी क्या मेरी बर्बादियों से !






************प्रवीन मलिक****************

Saturday, 16 November 2013

इतना क्यूँ तुम मुस्करा रही हो ......



बहुत दिन से कुछ लिख नहीं पायी आज कोशिश की है कुछ लिखने की .... देखिये जरा !!


बेखबर सी तुम जो मुस्करा रही हो ,
जाने इतना तुम क्यूँ शरमा रही हो !
क्या राज छुपा रखा है इन आँखों में ,
जो इस तरह नजरें तुम झुका रही हो !!

किसकी यादों को दिल में छुपा रही हो ,
किसके सपने आँखों मे सजा रही हो !
कौन है वो खुशनसीब सा इस जहाँ में ,
जिसके लिए मंद-मंद मुस्करा रही हो !!


**********प्रवीन मलिक**********

Tuesday, 22 October 2013

करवा चौथ ...




कुछ हाइकु संग सभी बहनों और भाभियों को करवाचौथ की हार्दिक बधाई ... आपका सुहाग और प्रेम चाँद की तरह हमेशा हमेशा चमकता रहे और प्रेम की चाँदनी जीवन को शीतलता प्रदान करे ...
*********************************
चाँद है गुम
भूखे व्याकुल हम
प्रेम से शक्ति !!
   ***
सजी मेंहदी
खनक रही चूड़ी
सुहागन स्त्री  !!
   ***
करवा चौथ
दिर्घायु हो सुहाग
चाँद को अर्घ  !!
   ***
प्रेम हमारा
चन्द्रमा सा चमके
जीवन भर  !!
   ***
माँग सिन्दूरी
लाल हरी चूड़ियाँ
सौभाग्य वती  !!

**************प्रवीन मलिक **********

Saturday, 12 October 2013

हमारे अन्दर के रावण ...

आज दशहरा है और सब लोग बड़े उत्साह के साथ इस त्यौहार को मानते हैं . दशहरा क्यों मनाया जाता है हम सब जानते हैं . दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत , असत्य पर सत्य की जीत आदि की खुशी के कारण हम इस त्यौहार को मानते हैं . इस दिन बुराई रुपी रावण का अंत अच्छाई  रुपी राम के द्वारा किया गया था तो हम इस दिन को विजय दशमी के रूप में मानते हैं . रावण अत्यंत ही विद्वान पंडित था लेकिन अपने अहंकार के कारन उसको आज भी बुराई के रूप में ही याद किया जाता हैं कोई उसकी पूजा नहीं करता सब उसकी भर्त्सना ही करते हैं क्यूंकि अपने अहंकार के कारण उसने ज्ञान रुपी सीता माता का अपहरण किया और अपने हठ के कारण राम के द्वारा मारा गया …..
उस रावण का अंत तो हो गया और उसकी खुशी में हम ये त्यौहार मनाने लग गए. लेकिन वो सब बुराइयाँ आज भी विदमान हैं . आज भी उन बुराइयों को देखा जा सकता है .जो की हम सब में कहीं न कहीं पाई जाती हैं . अगर हम इस त्यौहार को मानते हैं तो हमें अपने अंदर की इस बुराइयों को भी समाप्त कर देना चाहिए तभी इस त्यौहार का महत्व सफल होगा ……..
१.अहंकार :- मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका अपना अहंकार होता है.. स्वाभिमान होना अच्छी बात है पर अगर अहंकारी हैं तो बहुत ही बड़ी कमजोरी बन जाती है. अतः हमें अहंकार रुपी बुराई का परित्याग करके एक अच्छा इन्सान बनने की कोशिस करनी चाहिए…..
२. क्रोध :- मनुष्य के अंदर दूसरा बड़ा रावण है उसका अपना क्रोध .. क्रोध इंसान को जला देता है . क्रोध के कारण हम सही और गलत का फैसला नहीं कर पाते हैं जिसके कारण गलतियों पे गलतियाँ करते जाते हैं अतः रावण रुपी क्रोध को भी आज के दिन खत्म करने का प्रयास करना चाहिए …..
३ . दुर्व्यसन :- मनुष्य के अंदर बहुत सरे दुर्व्यसन होते हैं जैसे की धुम्रपान करना , झूठ बोलना, शराब पीना, मारना- पीटना  , आदि आदि … अगर हम इन सब दुर्व्यसनो से दूर रहे तो काफी हद तक अछे इंसान कहला सकते हैं अतः आज के दिन हम सबको ये शपथ लेनी चाहिए की हम इन सब दुर्व्यसनो से दूर रहेंगे और अपने आस पास के लोगो को भी दूर रहने की सलाह देंगे ….
४ .आलस्य :- मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है . आलस्य से दूर रहकर भरपूर मेहनत करनी चाहिए इससे समाज में रुतबा भी होगा और सुख सुविधाए भी . मेहनत करके खायेंगे तो किसी की कभी नहीं सुननी पड़ेगी . स्वाभिमान बरक़रार रहेगा.
५.कटु वचन:- मनुष्य जब क्रोधित होता है तो न जाने क्या-२ बोल जाता है . तब उसको अहसास नहीं होता की उसके द्वारा बोले गए कटु वचन किसी को कितना आहत कर जाते हैं और उसकी अपनी इमेज भी ख़राब हो जाती है ..अतः किसी को कभी भी कटु वचन नहीं बोलने चाहिए…
६.विवेकहीनता :- मनुष्य कभी -२ अपना विवेक खो देता है जिसके कारन वो बहुत सी भूल कर जाता है हम सब को इन्सान रुपी जन्म मिला है ताकि हम सब सोच सके और फिर कोई निर्णय ले किसी भी परिस्थिति में … अतः विवेक को बनाये रखे …
७.अज्ञान :- अज्ञान एक ऐसी बुराई है की उसके कारन ही हम वो कर जाते हैं जो की आगे चलकर हमें नुक्सान देता है .. अतः हमें अपनी अज्ञानता को दूर करना चाहिए … ज्ञान अर्जित करने कि कोई उम्र नहीं होती मनुष्य हर पल ज्ञान अर्जित करता है और मृत्यु पर्यंत करता रहता है .. अतः ज्ञानशील बने ..
८.जलन:-  आज सब एक ही वजह से दुखी रहते हैं की मेरा पडोसी, मेरा रिश्तेदार आदि  इतना सुखी क्यूँ है .. अरे आप अपने सुखो को देखिये..  दुसरो के सुखो से अपने को दुखी कर लेते हैं किसके कारन जलन के कारन … अतः जलन को अपने करीब भी नहीं आने देना चाहिए ….
९.डर :- डर एक ऐसी बुराई है जो अगर आप पर हावी हो गयी तो आपके लिए सही नहीं है . किसी भी प्रकार के डर को अपने पर हावी नहीं होने देना चाहिए .. क्यूंकि कहा गया है कि डर के आगे जीत है …..
१०. असफलता :-  सफलता असफलता तो इंसान के साथ जुडी हुयी होती हैं  कभी कोई काम सफल हो जाता है तो कभी कोई असफल भी हो जाता है लेकिन असफलता को अपने पर हावी ना होने दे … क्यूंकि अगर आप  काम कर रहे हैं तो कभी – २ किसी छोटी मोती गलती के कारन असफल हो जाता है लेकिन फिर से प्रयतन करके सफल भी तो किया जा सकता है …..

ये सब कुछ कमियां कहिये या फिर बुराइयाँ .. होती हैं हम सबके अंदर . अगर हम इन सब से दूर होकर एक अच्छा इन्सान बनने कि कोशिश  करे तो असम्भव कुछ भी नहीं है .. अतः आज दशहरे  के पवन  अवसर पर आओ अपनी इन सब बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों कि तरफ अग्रसर हो जाये. और दशहरे  के त्यौहार को और भी महत्वपूर्ण बना दे … हमारे अंदर काफी बुराइयाँ पर इन दस बुराइयों पर आज दशहरे के दिन विजय पा लें …..
धयवाद …

Saturday, 28 September 2013

खुद से पराये हो गये .....








तुमसे मिले और खुद से पराये हो गये
तुम्हारे अलावा बाकी सब कुछ भूल गये !!

आइने में भी अक्स तेरा ही देखने लगे
जागती आँखों से हसीन ख्वाब बुनने लगे !!

सबके बीच रहकर भी सबसे बेखबर हो गये
तेरी यादों और दिलकश बातों में खोकर रह गये !!

कभी बहुत बकबक किया करते थे बेवजह ही
अब अचानक ही जाने क्यूँ गुमसुम से हो गये !!

तुम्हारे बिना सतरंगी रंग फीके से लगने  लगे
महफिलों से हम अपनी नजरें बचाकर चलने लगे !!

नींद , चैन , भूख , प्यास से बेखबर होकर
तेरे ही मीठे ख्वाबों में दिन-रात हम रहने लगे !!

                    प्रवीन मलिक

Monday, 23 September 2013

सपना... सुखद अहसास

सीमा चली जा रही थी खोई खोई सी ! अचानक उसका ध्यान भंग हुआ तो देखा ... अरे ये तो मैं अपने स्कूल आ गयी हूँ ! पर स्कूल में कोई नहीं है क्यूँकि छुट्टी हो गयी है ! सीमा चुपचाप बरामदे में चली जा रही है इस स्कूल में सिर्फ पाँच कमरे थे ! ये माध्यमिक स्कूल था ! स्कूल के तीन साल यहाँ बिताये थे ! आज फिर खुद को अनायास यहाँ पाकर उसके दिल को कितनी राहत मिल रही थी ! कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था लेकिन अहसास बहुत खास था ! हालांकि अब स्कूल बढिया बन गया है वह स्कूल को ठहर कर चारों तरफ नजर घुमाकर देखती है ! लेकिन वो पुराने पाँच कमरे सिर्फ मरम्मत करके छोड़े हैं ! वो कोने का आखिरी कमरा वहीं तो मेरी कक्षा होती थी याद आते ही कदम अनायास ही बढ़ने लगे ! खिड़की के पास से गुजर ही रही थी कि उसके कान में सीमा चली जा रही थी खोई खोई सी ! अचानक उसका ध्यान भंग हुआ तो देखा ... अरे ये तो मैं अपने स्कूल आ गयी हूँ ! पर स्कूल में कोई नहीं है क्यूँकि छुट्टी हो गयी है ! सीमा चुपचाप बरामदे में चली जा रही है इस स्कूल में सिर्फ पाँच कमरे थे ! ये माध्यमिक स्कूल था ! स्कूल के तीन साल यहाँ बिताये थे ! आज फिर खुद को अनायास यहाँ पाकर उसके दिल को कितनी राहत मिल रही थी ! कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था लेकिन अहसास बहुत खास था ! हालांकि अब स्कूल बढिया बन गया है वह स्कूल को ठहर कर चारों तरफ नजर घुमाकर देखती है ! लेकिन वो पुराने पाँच कमरे सिर्फ मरम्मत करके छोड़े हैं ! वो कोने का आखिरी कमरा वहीं तो मेरी कक्षा होती थी याद आते ही कदम अनायास ही बढ़ने लगे ! खिड़की के पास से गुजर ही रही थी कि उसके कान में आवाज पड़ी " गुड ईवनिंग मैडम" ... आवाज कुछ जानी पहचानी थी ... वापस थोड़ा पिछे लौटी और खिड़की से अन्दर झांका तो देखकर हैरान हो गयी ... उसकी खुशी का ठिकाना न था ! ओह माई गोड .... रवि सर आप ! स्कूल की तो छुट्टी हो गयी है आप यहाँ कैसे ? ... और आपने मुझे मैडम कहा ..... रवि सर उसे देखकर मुस्करा रहे थे ! सीमा हैरान अत्यन्त खुशी महसूस कर रही थी ! रवि सर कोई उसके खास नहीं थे पर दिल में अजीब सा सुकून था मिलकर ..... 

रवि सर ने चुप्पी तोड़ी ... हाँ सीमा मैं ! एक्सट्रा क्लास लेने की आदत गयी नहीं मेरी अभी तक ! घर जाकर भी क्या करूँ यहाँ इन बच्चों के साथ समय बिताना ही अच्छा लगता है और इन्हें भी पढाई में मदद मिल जाती है ! तुम तो ऐसी गयी कभी वापस आने का नाम नहीं लिया ! (रवि सर सीमा के सर अवश्य थे पर उम्र में कोई ज्यादा बड़े नहीं थे और न ही सीमा के माध्यमिक स्कूल के सर थे बल्कि वो तो सीमा को कॉलेज टाईम में कम्प्यूटर पढाते थे .... सीमा और रवि सर की अच्छी दोस्ती थी ! कितनी बार रवि ने कहा था कि ये तुम सर लगाकर मुझे बहुत बड़ा बना देती हो ... कम से कम कक्षा के बाहर तो रवि सर न कहकर रवि बुलाया करो ... पर सीमा कहती कि मुझे रवि सर कहना ही अच्छा लगता है .... बहुत अच्छा लगता है ! .... लेकिन रवि सर यहाँ माध्यमिक स्कूल में क्या कर रहे हैं ? बतायेगें पर बाद में ... )
सीमा जितनी खुश थी रवि से मिलकर उससे कहीं ज्यादा खुश रवि लग रहा था ! .... सीमा तुम यहाँ कैसे ? ..... सीमा चौंकी ... अरे हाँ मैं यहाँ कैसे पता नहीं कैसे ... बस चलती चली आयी और कब यहाँ पहुँच गयी पता नहीं ! .... 
रवि ने कहा ... क्या करती हो आजकल ? बहुत अच्छी थी तुम पढाई में ... मुझे हमेशा लगता था तुम कुछ न कुछ जरुर करोगी ! पर यहाँ लोग जाने क्या क्या बोलते हैं तुम्हारे बारे में .... मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई तुम्हारे बारे में कुछ उल्टा सीधा बोलता है तो ! 
सीमा ... सर मैंनें कुछ गलत नहीं किया ... उस मासूम लड़की की मदद की जिसे सबने दुत्कार दिया था ... सब उसे दोष देते जबकि वो बिल्कुल दोषी नहीं ... उसने तो प्यार किया था सच्चे दिल से बस गल्ती की तो इतनी की उस लड़के पर खुद से ज्यादा विश्वास कर लिया और वो उसे बीच राह में छोड़कर चला गया ! प्यार करना कोई जुर्म तो नहीं है फिर क्यूँ उसके माँ-बाप तक ने उसे इस हालत में घर से बाहर निकाल दिया ... माँ बनने वाली है वो ... कहाँ जाती ... मुझसे नहीं देखा गया और उसको मैंनें पनाह दी उसकी थोड़ी मदद की और दुनिया ने मुझे कसूरवार ठहरा दिया ... क्या स्वेदंनशील होना गुनाह है ! और मेरे घरवाले भी मुझे दोषी समझते हैं कि उसे घर में क्यूँ रखा है ! 
रवि .... तुमने कुछ गलत नहीं किया ... जितनी हो सके किसी असहाय की मदद करनी चाहिए ...
दुनिया क्या कहती है .. कहने दो ! वही करो जिससे तुम्हारे दिल को तसल्ली मिले ! 
पर मैं उसकी मदद करके भी खुश नहीं हूँ ... अपनों की बेरुखी दिल पर बोझ बन गयी है ! आपसे मिलकर मुझे आज बहुत ही अद्भुत खुशी हो रही है ... कैसे बताऊँ ... कितना सुखद लग रहा है ! बस ये पल ये समय काश यहीं रुक जाये ... 
सीमा समय तो नहीं रुका चलता चला गया पर रवि जरुर तुम्हारा इन्तजार करते हुये वहीं का वहीं रुका हुआ है आज भी .... कभी वापस पलटकर आती तो देखती ... पर तुम तो ..... कहकर रवि चुप हो गया ! 
सीमा अवाक सी देखती रही .... सोचने लगी कि इतना प्रेम था तो कहा क्यूँ नहीं ... मैं भी कभी कहीं और शादी नहीं करती .... पर सर अब मेरी दुनिया बहुत अलग है .. मेरा एक हँसता खेलता संसार है .... और आप उसमें कहीं नहीं है ! 
रवि ... अहसास में भी नहीं ... तुम खुश रहो बस मैं इतना ही चाहता हूँ .... ऐसा कहकर रवि आगे बढ़ गया ... सीमा रोकना चाहती थी पर तभी अलार्म बज पड़ा और वह उठी ... उफ्फ सपना था ...
सपना था तभी रविसर को माध्यमिक स्कूल में पाया ... बहुत मन है कि रविसर से बात करुँ पर कैसे ..... मेरे पास कोई माध्यम नहीं उनसे बात करने का .... 
कभी कभी सपने कहाँ कहाँ की सैर करा देते हैं किस किस से मिला देते हैं कितना खुशी का अहसास करा देते हैं .... सपनों की भी अपनी एक अलग ही दुनिया रंगबिरंगी सी ...   पड़ी " गुड ईवनिंग मैडम" ... आवाज कुछ जानी पहचानी थी ... वापस थोड़ा पिछे लौटी और खिड़की से अन्दर झांका तो देखकर हैरान हो गयी ... उसकी खुशी का ठिकाना न था ! ओह माई गोड .... रवि सर आप ! स्कूल की तो छुट्टी हो गयी है आप यहाँ कैसे ? ... और आपने मुझे मैडम कहा ..... रवि सर उसे देखकर मुस्करा रहे थे ! सीमा हैरान अत्यन्त खुशी महसूस कर रही थी ! रवि सर कोई उसके खास नहीं थे पर दिल में अजीब सा सुकून था मिलकर ..... 

रवि सर ने चुप्पी तोड़ी ... हाँ सीमा मैं ! एक्सट्रा क्लास लेने की आदत गयी नहीं मेरी अभी तक ! घर जाकर भी क्या करूँ यहाँ इन बच्चों के साथ समय बिताना ही अच्छा लगता है और इन्हें भी पढाई में मदद मिल जाती है ! तुम तो ऐसी गयी कभी वापस आने का नाम नहीं लिया ! (रवि सर सीमा के सर अवश्य थे पर उम्र में कोई ज्यादा बड़े नहीं थे और न ही सीमा के माध्यमिक स्कूल के सर थे बल्कि वो तो सीमा को कॉलेज टाईम में कम्प्यूटर पढाते थे .... सीमा और रवि सर की अच्छी दोस्ती थी ! कितनी बार रवि ने कहा था कि ये तुम सर लगाकर मुझे बहुत बड़ा बना देती हो ... कम से कम कक्षा के बाहर तो रवि सर न कहकर रवि बुलाया करो ... पर सीमा कहती कि मुझे रवि सर कहना ही अच्छा लगता है .... बहुत अच्छा लगता है ! .... लेकिन रवि सर यहाँ माध्यमिक स्कूल में क्या कर रहे हैं ? बतायेगें पर बाद में ... )
सीमा जितनी खुश थी रवि से मिलकर उससे कहीं ज्यादा खुश रवि लग रहा था ! .... सीमा तुम यहाँ कैसे ? ..... सीमा चौंकी ... अरे हाँ मैं यहाँ कैसे पता नहीं कैसे ... बस चलती चली आयी और कब यहाँ पहुँच गयी पता नहीं ! .... 
रवि ने कहा ... क्या करती हो आजकल ? बहुत अच्छी थी तुम पढाई में ... मुझे हमेशा लगता था तुम कुछ न कुछ जरुर करोगी ! पर यहाँ लोग जाने क्या क्या बोलते हैं तुम्हारे बारे में .... मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई तुम्हारे बारे में कुछ उल्टा सीधा बोलता है तो ! 
सीमा ... सर मैंनें कुछ गलत नहीं किया ... उस मासूम लड़की की मदद की जिसे सबने दुत्कार दिया था ... सब उसे दोष देते जबकि वो बिल्कुल दोषी नहीं ... उसने तो प्यार किया था सच्चे दिल से बस गल्ती की तो इतनी की उस लड़के पर खुद से ज्यादा विश्वास कर लिया और वो उसे बीच राह में छोड़कर चला गया ! प्यार करना कोई जुर्म तो नहीं है फिर क्यूँ उसके माँ-बाप तक ने उसे इस हालत में घर से बाहर निकाल दिया ... माँ बनने वाली है वो ... कहाँ जाती ... मुझसे नहीं देखा गया और उसको मैंनें पनाह दी उसकी थोड़ी मदद की और दुनिया ने मुझे कसूरवार ठहरा दिया ... क्या स्वेदंनशील होना गुनाह है ! और मेरे घरवाले भी मुझे दोषी समझते हैं कि उसे घर में क्यूँ रखा है ! 
रवि .... तुमने कुछ गलत नहीं किया ... जितनी हो सके किसी असहाय की मदद करनी चाहिए ...
दुनिया क्या कहती है .. कहने दो ! वही करो जिससे तुम्हारे दिल को तसल्ली मिले ! 
पर मैं उसकी मदद करके भी खुश नहीं हूँ ... अपनों की बेरुखी दिल पर बोझ बन गयी है ! आपसे मिलकर मुझे आज बहुत ही अद्भुत खुशी हो रही है ... कैसे बताऊँ ... कितना सुखद लग रहा है ! बस ये पल ये समय काश यहीं रुक जाये ... 
सीमा समय तो नहीं रुका चलता चला गया पर रवि जरुर तुम्हारा इन्तजार करते हुये वहीं का वहीं रुका हुआ है आज भी .... कभी वापस पलटकर आती तो देखती ... पर तुम तो ..... कहकर रवि चुप हो गया ! 
सीमा अवाक सी देखती रही .... सोचने लगी कि इतना प्रेम था तो कहा क्यूँ नहीं ... मैं भी कभी कहीं और शादी नहीं करती .... पर सर अब मेरी दुनिया बहुत अलग है .. मेरा एक हँसता खेलता संसार है .... और आप उसमें कहीं नहीं है ! 
रवि ... अहसास में भी नहीं ... तुम खुश रहो बस मैं इतना ही चाहता हूँ .... ऐसा कहकर रवि आगे बढ़ गया ... सीमा रोकना चाहती थी पर तभी अलार्म बज पड़ा और वह उठी ... उफ्फ सपना था ...
सपना था तभी रविसर को माध्यमिक स्कूल में पाया ... बहुत मन है कि रविसर से बात करुँ पर कैसे ..... मेरे पास कोई माध्यम नहीं उनसे बात करने का .... 
कभी कभी सपने कहाँ कहाँ की सैर करा देते हैं किस किस से मिला देते हैं कितना खुशी का अहसास करा देते हैं .... सपनों की भी अपनी एक अलग ही दुनिया रंगबिरंगी सी ...  

Friday, 20 September 2013

कौन खेवैया ..... हाइकु

गिरा रुपैया
बढती मँहगाई
कौन खेवैया  !..........१

भ्रष्ट समाज
कलुषित सी सोच
बेमानी आज. !..........२

शिशु मुस्कान
खिले अन्तकरण
फूल समान  !.............३

अक्स तुम्हारा
चमकता चन्द्रमा
सबका प्यारा  !............४

भगवा वस्त्र
ठगी है मानवता
उठाओ शस्त्र  ! ...........५

विषाक्त मन
निकालो समाधान
व्याकुल हम  !.............६

सोचो तो जरा
सुरक्षित कहाँ धी
बेमौत मरा   ! ..............७



प्रवीन मलिक................

Tuesday, 17 September 2013

बेबसी.....

रमा आज बहुत खुश थी हो भी क्यूँ न .... आज उसके पोते का जन्मदिन और उसकी सालगिरह है ! उसके पति हर साल इस दिन को धूमधाम से मनाते रहे हैं और इस दिन कुछ दान दक्षिणा भी करते हैं आखिर दादी पोते का जन्मदिन साथ-साथ जो आता है !
पिछले गुजरे सालों में बिताये गये इस दिन को याद करते-करते अचानक उसकी आँखें भर आयी ! कितने अच्छे दिन गुजारे हैं राजन और रमा ने साथ-साथ.......
रमा सुबह ही नहा-धोकर तैयार हो गयी और राजन को भी तैयार होने को कहा कि जल्दी तैयार हो जाओ फिर हम सब मन्दिर जायेंगें !
दोनों तैयार होकर बाहर आये  तो देखा ..... कि बहू बेटा और उसका पोता तैयार खड़े हैं ! बहू बोली ... माँ जी हम धीरज के जन्मदिन को मनाने के लिए बाहर जा रहे हैं .... परसों तक लौट आयेंगें !
रमा अवाक रह गयी सुनकर .... हिम्मत जुटाते हुये बोली ... बहू जन्मदिन तो हम हर साल की तरह घर में ही मनायेंगें ! बाहर क्यूँ ??
बहू गुस्से से झल्लाती हुयी ... नहीं इस बार हम बाहर जा रहें हैं ! कितनी बोरियत से जन्मदिन मनता है ! आस-पड़ौस के लोगों को बुलाकर आप लोग सारा बेझ हम पर डाल देते हैं और ऊपर से आप लोगों की दान-दक्षिणा .... मेरा ते सारा दिन किचन और आप लोगों की आवभगत में निकल जाता है ... और उसके बाद जो घर फैलता है ... बाप रे बाप ... मुझसे नहीं होता ! हम बाहर जा रहे हैं ! आपको जो बनाकर खाना हो खा लिजियेगा ! ऐसा कहकर वो लोग निकल जाते हैं .... धीरज ने आशिर्वाद तक नहीं लिया दादा-दादी से .. ......

रमा राजन मजबूर से देखते रहे .... कुछ कह भी नहीं पाये ! तभी राजन बोला क्यूँ परेशान होती हो चलो मन्दिर चलते हैं .. भगवान के दर्शन करेंगें और धीरज की लम्बी उम्र की प्रार्थना करेंगें ...... राजन ने जेब में हाथ डाला तो सौ रुपये के अलावा कुछ न मिला .....

और फिर राजन को याद आया कि अबकि पैंशन तो उसने बेटे को दे दी थी ये कहकर कि मुझे जरुरत हुयी तो ले लूंगा ... अब मन्दिर में दान-दक्षिणा कैसे होगी ....
रमा ने कहा कि चलिये .. और राजन बिना रमा को कुछ कहे चल पड़े .... मन्दिर जाकर उसने भगवान को प्रसाद चढ़ाकर अपने ब्टे बहू और पोते के लिए दुआ मांगी ...
तभी कुछ बच्चे आये और रमा को जन्मदिन की बधाई देने लगे ! रमा सिर्फ उन्हे आशिर्वाद देकर चल पड़ी ... तभी एक मासूम बच्चा .. दादी जी क्या आज आप लोग हमें कुछ उपहार नहीं देंगें .... रमा उसकी बात सुनकर थोड़ा ठिठकी और बोली अब तो हम सिर्फ आशिर्वाद देने के काबिल ही रह गये हैं बच्चे ...
राजन और रमा पहली बार कुछ दान दक्षिणा न कर पाये ... बहुत शर्म और बेबस सा महसूस कर रहे थे ! वापिस घर आकर रमा बोली बताइये क्या खायेंगें बना देती हूँ .... पर राजन कुछ न बोले और कमरे में जाकर लेट गये ...
रमा जानती थी कि राजन से बिना पूछे कभी कुछ नहीं होता था घर में ... लेकिन आज उसकी औकात क्या रह गयी है ... बात राजन के दिल को छू गयी थी कि कल तक जो घर का मालिक हुआ करता आज वो कितना बेबस है ...... पहली बार आज रमा को कुछ उपहार न दे सका ... पहली बार गरीब बच्चों का खाना न खिला सका ... पहला बार आज वो खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था ...
रमा सब समझ गयी थी जो राजन के मन में चल रहा था ... पास आकर बोली नियति का नियम है ये .... और क्या हुआ जो जन्मदिन मनाने वो लोग बाहर चले गये ... वैसे भी इस उम्र में किसको जन्मदिन मनाना होता है वो तो धीरज की वजह से सब कर लेते  थे ...
दोनों गुमसुम थे ... 

Monday, 16 September 2013

सोचो जरा .....

दहेज प्रथा

सामाजिक पतन

कैसी ये व्यथा !!



भ्रूण संहार

अंसतुलित हम

गिरता स्तर !!



घना कोहरा

छायी उदासीनता

न हो सवेरा !!




उम्र नादान

विलक्षण प्रतिभा

छू आसमान !!



कड़वा सच

गिरती नैतिकता

देख दर्पण !!



प्रवीन मलिक .......

Friday, 13 September 2013

मेरी नजर से हाइकु....



भाव दिल के
क्रमबद्ध सजाये
बनी कविता !!

***********

तुकान्त लय
समान मात्रा गणना
बने मुुक्तक !!

***********

तीन पंक्तियां
पंच सप्तम पंच
हाइकु शैली !!

************

विस्तृत भाव
भूमिकाबद्ध व्याख्या
बने कहानी !!

************

कम शब्दों में
दे सार्थक सन्देश
लघु कहानी !!

*************



                             प्रवीन मलिक ......
                     

Tuesday, 10 September 2013

जिम्मेदार कौन (हाइकु)......

जल-प्रलय
कुदरती कहर
नष्ट जीवन  !!

कटते वन
प्रदूषित नदियाँ
विनाशलीला  !!

लालची जन
प्राकृतिक आपदा
दोषी है कौन  !!


दंगा-फसाद
मजहबी दीवार
यही है धर्म  !!

कौम से प्यार
मानवता समाप्त
खून सवार  !!

कुर्सी का खेल
देशभक्ति विलुप्त
दोषी को बेल   !!

प्रवीन मलिक ......

Sunday, 8 September 2013

मैंनें देखा है इक सपना......

देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

दुख का न कोई साया हो
अपनों में न कोई पराया हो
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

मँहगांई की न कहीं मार हो
देश मेरा मुक्त भ्रस्टाचार हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

बेटियों का सदैव सम्मान हो
बेइज्जत न कोई सरेआम हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

निरक्षरता का न कहीं साया हो
भूख-गरीबी की न कहीं छाया हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

देश पहले सा स्वर्णिम हो
खुशहाली महकती चँहुओर हो
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

                 (प्रवीन मलिक)

Saturday, 7 September 2013

हाइकु प्रयास

अंधेरी रात
सुनसान गलियाँ
कुकुर ध्वनी !

गरीब बच्चा
ज्वर में तड़पता
लाचार है माँ !

चुनावी वादे
तोहफों की बहार
गधा भी बाप !

खिलती कली
अनायास कुचली
घिनौना कर्म !

झूठा संसार
मोहमाया का जाल
अटल सत्य  !

पहली बार लिखा है पता नहीं कोई सही भी है या नहीं 
कृपया बताइये क्या संशोधन की आवश्यकता है ताकि कुछ सीखने में मदद मिले ... धन्यवाद !

प्रवीन मलिक .....


Wednesday, 4 September 2013

. बस इतना ही तो चाहा था !.......

ऐसा तो कुछ न माँगा था जो देना मुश्किल था
एक सुनहरी शाम बालकनी में हम दोंनों कॉफी पीते हुयेऔर दूर पहाड़ियों की तरफ ढलते सूरज को अलविदा कहते हुये साथ साथ वो सुनहरी शाम ही तो मांगी थी .....
तुम्हारे साथ रहकर कुछ पल साथ होने का अहसास ही तो चाहा था ! अपने दिल का दर्द छुपाकर कुछ खुशी ही तो बाँटनी चाही थी ! जिन्दगी की हर कशमश को भूलकर तेरे आगोश में दो पल का चैन ही तो चाहा था .....
दिल में उठते दर्द के सैलाब को रोकना ही तो चाहा था ! पूरी जिन्दगी के बदले एक रूमानी सी शाम ही तो चाही थी पर तुमसे इतना भी न बन पड़ा ! क्या इतना ज्यादा माँगा था ?? इतनी बेइन्तहा मोहब्बत के बाद इतना ज्यादा तो न चाहा था ! .......
हम तुम्हारे लिए कुछ मायने न रखते हों पर हमने तुम्हारे अलावा जिन्दगी से कुछ और न चाहा था ! जो कभी न किसी के सामने झुका वो तेरे सामने यूँ गिड़गिड़ाया था सिर्फ और सिर्फ तेरे दो पल के साथ को ......
फिर भी दिल से यही दुआ निकलती है खुशी हो तुम्हारी हर राह में , दिल न कभी उदास हो , किसी न बुराई का सामना हो, तरक्की की राह हो , खिलखिलाती तेरी सुबह शाम हो , गम न कोई बादल आये .........
बस इतना ही चाहा .........

प्रवीन मलिक.....

Sunday, 1 September 2013

मुक्तक लिखने का प्रयास......

कुछ ख्वाब देखे थे अधूरे रह गये 
अरमान भी दिल के अश्क से बह गये 
न मिला कोई मनचाहा साथी हमें 
सो दर्द दिल का हंसकर ही सह गये !!


दिल में अगर हो चाह कुछ पाने की 
परवाह न कर फिर ठोकर खाने की 
यूँ ही मंजिलें मिलती नहीं ऐ दोस्त
जरुरत पड़ती है फना हो जाने की !!


न करो गुरुर इतना कि वो चूर चूर हो जाये 
हद में रहो उतना जितना बर्दास्त हो जाये 
वक्त बदलने में देर नहीं लगती ऐ दोस्तो
जाने कब इन्सान राजा से रंक हो जाये !!


मासूमों पर निरा हो रहा अत्याचार है 
देश पर अब हावी हो रहा भ्रस्टाचार है
हर तरफ फैले हैं घोटाले ही घोटाले 
देश आज दुनिया में हो रहा शर्मसार है !!


प्रवीन मलिक..............


Wednesday, 28 August 2013

मेरा बाल-गोपाला .....



माथे पे जिसके मोर पंख सजे
होंठों पर जिसके सजती है मुरलिया
उंगली पर जिसके चक्र है घूमता
कोई और नहीं वो है मेरा साँवरिया.....

राधा जिसकी हुई प्रेम दिवानी 
मुरली सुन दौड़ी आती थी गोपियाँ
प्रेम में उसके मीरा पी गई विष-प्याला
कोई और नहीं वो है मेरा मुरलीवाला ......

मटकियाँ तोड़ता माखन है चोरता 
मैया जो डाँटे फिर लुकछुप है दौड़ता
सुदामा संग खेलता नटखट गोपाला
कोई और नहीं वो है मेरा कृष्ण काला......

गीता का जिसने उपदेश दिया था
कंस मामा का उसने वध किया था 
राक्षसी पूतना भी जिसने थी मारी
कोई और नहीं वो है मेरा बांके बिहारी ........

प्रवीन मलिक .... सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !!!!!

Monday, 19 August 2013

भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना .......


भईया मेरे राखी के बन्धन को निभाना
अपनी बहना को कभी भूल न जाना 
तू दूर रहे या पास, दिल से दूर न जाना
जब भी पुकारुँ दिल से, दौड़े चले आना ......


साथ में अपने वो बचपन की यादें ले आना

वो लड़ना-झगड़ना और वो रुठना-मनाना 
खाना खाते हुये तुम्हारा दही का गिराना
कभी मेरी ही प्लेट उठाकर भाग जाना
गुस्से में मेरा फिर तुमसे नाराज हो जाना 
तुम्हारा फिर भी मुझको बहुत चिढ़ाना 
अगले दिन फिर से साथ में ही खाना खाना...



मम्मी का वो बार-बार हम दोनों को डाँटना

अगले ही पल हमारा उससे बेखबर हो जाना
बचपन की यादों का वो क्या खूबसूरत जमाना
भईया के लिये कभी-कभी खुद ही पिटाई खाना
अपने हिस्से की खुशियाँ भी उस पर लुटाना
अगले ही पल उनका अहसान भी जताना .....


भईया मेरे राखी के बन्धन को निभाना

यूहीं मुझ पर सदा अपना प्यार लुटाना
नाराजगी कभी हो भी जाये तो दिल से लगाना
मनाने से मान जाना या फिर हमें मना लेना
प्यार और विस्वास को अपने यूहीं कायम रखना.......


राखी पर कभी बुला लेना तो कभी खुद आ जाना

कभी न मुझे इस दिन तुम इन्तजार करवाना 
भईया मेरे राखी के बन्धन को ऐसे ही सदा निभाना
आशिर्वाद है जीवन में यूहीं तरक्की करते जाना
अपना हर कर्तव्य सदा यूहीं निभाते जाना
सदकर्मों से अपने खानदान का नाम चमकाना........


राखी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!!!!



प्रवीन मलिक ........



राखी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!!!!!

Sunday, 18 August 2013

राखी का त्यौहार..... भाई-बहन का अनमोल प्यार !!!!

जिसका था हमें कब से इन्तजार
आ गया है देखो राखी का पावन त्यौहार
क्या हीरे-मोती का मोल क्या सोने-चाँदी का
इक धागे से बंधा भाई-बहन का अनमोल प्यार
कच्चे धागे की इस डोर से बंधा हर भाई 
बहन की रक्षा के लिए न्यौछावर करदे अपनी जान 
ऐसे रिश्ते ही हैं भारतीय संस्कृति की पहचान
कृष्ण ने भी इसी रिश्ते की खातिर चीर बढाकर
कौरवौं की सभा में रखा था द्रौपदी का मान 
मुस्लिम हुमायूँ ने भी मेवाड़ की रक्षा कर फर्ज निभाया
मेवाड़ की हिन्दू रानी कर्मवती ने जो उसे अपना भाई बनाया 
हिन्दू- मुस्लिम का ख्याल किये बिना हुमायूँ चला आया 
मेवाड़ के मुस्किल वक्त में कर्मवती के प्रति अपना भाई धर्म निभाया 
ऐसे प्रसंगों ने इस रिश्ते का और भी मान बढाया 
बहन-भाई के प्यार और सम्मान को दुगना कर दिखाया 
हर बहन अपने भाई की दुआ सलामती माँगें जहाँ 
भाई ने भी वहाँ जान पर खेलकर राखी का कर्ज निभाया 

प्रवीन मलिक ...........

Monday, 12 August 2013

हम सोचते हैं की हमारा भारत कुछ ऐसा होना चाहिए .........



मेरा भारत कुछ ऐसा हो ..... !


हर तरफ सुख शांति का पहरा हो !


कहीं भी न कोई झगडा हो !


हर तरफ इमानदारी का पहरा हो !


कहीं न कोई बेईमानी का पुतला हो !


हर तरफ बेटियों का पूजन हो !


कहीं न कोई नारी अपमानित हो !


हर तरफ हरी भरी हरियाली हो !


कोई न आँगन खुशियों से खाली हो !


हर तरफ प्यार और भाईचारा हो !


कहीं न कोई किसी का दुश्मन हो !


हर तरफ तरक्की ही तरक्की हो !


कहीं न कोई भूख से मरता हो !


हर तरफ मानवता की पूजा हो !


कहीं न धर्म सम्बंधित झगडा हो !


मेरा भारत सबसे न्यारा हो !


खुशहाली का चारो तरफ बसेरा हो !



प्रवीन मलिक

Wednesday, 7 August 2013

भ्रष्टाचार.......

चाहे हम दूर करना भ्रष्टाचार
पर आदतों से हम सब लाचार
दोषी नहीं है केवल सरकार
हम भी उतने ही जिम्मेदार.....  

पैसे की भूख का बोलबाला
जिससे इमान इन्सान का डोला
इमानदारी को राख कर डाला
देश को खोखला कर डाला..... 

हर कोई करता यहाँ घोटाला
कहीं चारा तो कहीं कोयला 
मिड डे मील भी बना विषैला
कितने मासूमों को मार डाला.......

प्राइवेट दफ्तर हो या सरकारी
हर जगह लेन-देन की मारामारी
दिखती नहीं कहीं भी इमानदारी
इस तरह फैल चुकी है ये महामारी......

न खत्म होगा ये किसी कानून से
करना होगा दहन इसका खुदी से
आज नहीं तो कल होगा इमानदारी से
कर लो मुक्त खुद को इस बिमारी से ......

प्रवीन मलिक........

Saturday, 3 August 2013

माँ कहती थी .....



कभी न किसी का दिल दुखाना 
भले हीउसके लिए तुम खुद टूट जाना 

हर रिश्ते को दिल से निभाना 
फिर चाहे दिल पर कितनी भी चोट खाना 

हर किसी का मान रखना 
पर कभी न अपना आत्मसम्मान गवाना 

दुखों में भी तुम मुस्कुराना 
ग़मों का न तुम बाज़ार-ऐ-दिल  सजाना 

कभी न किसी के दिल से उतरना 
हर किसी के दिल में तुम उतर जाना 


******प्रवीन मलिक ******

Monday, 29 July 2013

ये मासूम चंचल बेटियां .......

मानव सभ्यता की नींव हैं बेटियां 
भगवान् की अद्भुत रचना हैं बेटियाँ 
खुशनसीब के घर जन्म लेती हैं बेटियाँ 
जिंदगी के क़र्ज़ से मुक्त करती  हैं बेटियाँ 
एक पिता का गुरुर होती हैं बेटियाँ 
एक माँ का भी प्रतिरूप हैं बेटियाँ 
प्यार और ममता का नाम हैं बेटियाँ 
किसी के भी घर की शान हैं बेटियाँ 
समाज का एक अहम् अंग हैं बेटियाँ 
त्याग और विश्वास का नाम हैं बेटियाँ 
हर रिश्ते का आधार हैं बेटियाँ 
घर को खुशियों से महका देती हैं बेटियाँ 
दुर्गा रूप अवतार भी कहलाती हैं बेटियां 
गंगा  सी पवित्र व उज्जवल होती हैं बेटियाँ 
लक्ष्मीबाई सी साहसी भी होती हैं बेटियाँ 
हर रूप में गुणों की खान होती हैं बेटियाँ 
दुःख में सहारा तो सुख में बढ़ावा देती हैं बेटियाँ 
पर हमारे समाज में आज नहीं सुरक्षित बेटियाँ 
भरे बाज़ारों में आज शर्मसार होती हैं बेटियाँ 
भेडियों का कभी भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
दहेज़ प्रथा की भी शिकार होती हैं  बेटियाँ 
बेटा-बेटी में पक्षपात की भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
रीती रिवाजों का भी शिकार होती हैं बेटियाँ 
जन्म से पहले ही गर्भ में मार दी जाती हैं बेटियाँ 
बेटी है तो कल है सर्वज्ञ है  फिर भी शिकार हैं बेटियाँ 

@@@@@ प्रवीन मलिक @@@@@


Wednesday, 17 July 2013

माँ तुम यूँ न आकर जाया करो ........

जीवन के वो पल जब तुम साथ थी याद करते करते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला और निंदिया ने घेर लिया ... उस नींद के बाद तुम आ गयी सपनो के रथ पर सवार होकर और सब कितना अच्छा लग रहा था ... तुम खाना बना रही थी वहीँ हम सब आसपास बैठकर खा रहे थे ... हंसी मजाक हो रहा था फिर अचानक एक काला सा सींगो वाला शख्श आता है और तुमको कहता है चलो इतनी ही इज़ाज़त दी थी अगर लेट करोगी तो आगे से फिर न आने दूंगा .... जी चाहता था की उस दुष्ट को धक्का देकर गेट बंद कर दूँ लेकिन तभी तुम कहने लगी ठीक है मैं इनसे मिल ली इनको खाना खिला दिया अब मैं चल रही हूँ तुम्हारे साथ .... और तुम चल पड़ी उसके साथ भरी हुयी आँखें लेकर और हम तुमको रोक भी न पाए .... क्यूँ जाना जरुरी था ये कुछ कुछ अहसास था की फिर से लौटकर आने को जा रही थी तुम .... हम चाहते थे की तुम सदा के लिए रुक जाती पर ये भी तो संभव न था ... अचानक आँख खुली और देखा आँखों से सच में आंसू बह रहे थे और एक खवाब टूट गया था ... उस वक्त जो बेचैनी थी उसको ब्यान कर पाना बहुत मुश्किल है .... माँ तुम यूँ न आकर जाया करो ........

प्रवीन मालिक .........

Sunday, 14 July 2013

जिन्दगी..........

जिन्दगी .......
खुशियों से नाराज सी जिन्दगी
गम की खान सी ये जिन्दगी
अपनों की भीड़ होते हुये भी
प्यार की मोहताज सी जिन्दगी 
दर्द की किताब सी जिन्दगी
पल-पल इम्तिहान लेती जिन्दगी
कभी पास तो कभी फेल
आगे बढ़ती हुयी जिन्दगी
हम जीते रहे इसके हिसाब से
हर मोड़ पर नयी चुनौती सी जिन्दगी 
थक कर बैठ सकते नहीं दो पल 
क्यूँकि रुकती नहीं कभी जिन्दगी
जी लो कुछ पल अपने लिए भी
क्यूँकि दोबारा मिलती नहीं ये जिन्दगी !

प्रवीन मलिक ........

Saturday, 8 June 2013

जिन्दगी की किताब के पन्ने......






एक दिन यूँही हम अपनी

जिंदगी की किताब के पन्ने

पलटने लगे और देखने लगे

क्या देखा हमने पुराने पन्ने

कुछ तो आज तक महक रहे थे

लेकिन कुछ पन्ने जिंदगी की किताब के

मटमैले से थे कुछ सील से गए थे

जो पन्ने महक रहे थे वो तो

उस समय बड़े कष्ट से लिखे थे

शायद इसीलिए आज तक महक रहे थे

तब उन पन्नो को लिखते समय

अपार कष्ट और दुःख से गुजरे थे हम

लेकिन जो पन्ने ख़ुशी से और अरमानो से

लिखे थे आज वही सीले से क्यूँ हैं

क्यूंकि जो पन्ने कष्ट से लिखे थे

वो दुःख के पल थे जो आज महक दे रहे हैं

और जो पन्ने हमने ख़ुशी से लिखे थे

वो आज सीलन से इसीलिए भरे हैं

क्यूंकि उनको लिखते समय हमने

सिर्फ ख़ुशी का अहसास किया

और ख़ुशी का अहसास इतना हल्का

की बस बीत गयी सो बात गयी

लेकिन गम का अहसास इतना भारी

की आज भी वो दिन

अपनी अहमियत जताता है ……

आज उन पन्नो से खुशबु आ रही है

कल जब हम अपनी किताब के पन्ने

फिर से पलटेंगे तो आज जो पन्ने

हम ग़मगीन होकर लिख रहे हैं

वो महकते हुए ही नज़र आएंगे …

क्यूंकि बीता हुआ कल हमेशा

सुखद ही लगता है चाहे कैसा भी गुजरा हो ….



***************** प्रवीन मलिक *****
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Sunday, 2 June 2013

ये कैसा देश में बदलाव हुआ........

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देश हमारा था सबसे न्यारा 
न्यारी थी संस्कृति यहाँ की 
प्रेम भाई-चारा भी था न्यारा 
न्यारी थी वेश भूषा यहाँ की 
वेदों का उच्चारण था गूंजता 
महकता फिजा में हवन का धुंआ 
अब देश हुआ नकलची हमारा 
पश्चिमी सभ्यता का मारा 
गिटपिट-गिटपिट अंग्रेजी बोले
मातृभाषा का यूँ अपमान हुआ 
प्रेम भाई-चारा भी रहा नहीं 
भाई-भाई का  दुश्मन हुआ 
चोर-लुटेरे देश के नेता हुए 
आम आदमी  बेचारा हुआ
नोट-वोट का खेल खेलते 
झूटे वादों से  फरेब हुआ
हर मोड़ पर भेड़िये बैठे
नारी का आचँल तारतार हुआ
इमानदारी कहीं रही नहीं
भ्रस्टाचार का बोल-बाला हुआ 
देश हो गया है अब खोखला 
बूढों के लिए घर में जगह नहीं 
वृधा-आश्रम वृद्धों  का सहारा हुआ
वीर भगत सिंह , आज़ाद जैसे 
आदर्शवादी अब आदर्श नहीं 
फिल्म अभिनेता और क्रिकेटर 
युवाओं के अब आदर्श हुए 
रक्षक ही अब भक्षक हो गए 
पैसों से सस्ता अब ईमान हुआ 
इंसान ही इंसान का खरीददार हुआ 
बेचकर अपना ही ईमान-धर्म 
इंसान आज सबसे धनवान हुआ 


प्रवीन मलिक............

Tuesday, 28 May 2013

काश वो पल फिर से लौट आयें .........


जब जब मई आता फिर से दर्द जगाता है
बहुत तड़पाता है , बहुत रुलाता है
भीड़ में भी जाने क्यूँ तन्हा कर जाता है
फिर से उस दर्द को हवा दे जाता है
जिससे भूलने के लिए बरसों थे लगे
लेकिन फिर से  अहसास कराता है
उस पल का जिसमें मुझसे मेरे वो
सबसे अजीज हमेशा के लिए जुदा हुए
और वो सब अपने साथ ले गए
जिससे मेरा वजूद था जुड़ा.........!
जहाँ कभी अपना बचपन बिताया था
जहां से वो हसीं यादें जुडी थी जो
अब एक सपना ही बन कर रह गयी
वो तो गए ही साथ में मेरा सब ले गए
और दिल में एक दर्द भरा घाव दे गए
आज तक भी वो घाव भर नहीं पाता ....!
आँखे कुछ ढूँढती हैं दिल चुपके से रो जाता है
वो यादों का तूफ़ान रह रह कर उठता है
और मुझे बहा ले जाता है उस सुनहरे पल में
जहाँ तुम दोनों संग मिलकर जाने कितने
रंगीन और हसीं खवाब बुने थे जाने कितने
वो पल थे जिनमे हम लोगों की खट्टी मीठी
इन्द्रधनुष सी सतरंगी यादें थी  जो अब कहीं
काले बादलों में जा छुपी हैं फिर से न
लौटकर आने के लिए , लेकिन वही यादें
रह रहकर क्यूँ दर्द दे जाती हैं .........!
काश वो समय लौट आये फिर से
चाहे पल दो पल के लिए ही सही
मैं फिर से जीना चाहती हूँ उस पल को
उन यादों को जिनमे तुम थे हम थे और
और हमारा वो प्यारा सा घर था जहाँ
कभी तुम्हारी डांट सुनती थी तो कभी
तुम दोनों के प्यार का सागर हिलोरे लेता था ....!

Friday, 24 May 2013

कहीं खो गया है वो भारत महान ............


पीते हैं शराब करते है झगडा  
कैसा है ये लोगो का लफड़ा
रोते-बिलखते बच्चे भूख से
फटे-पुराने वस्त्र पहने बीवी
दिखता बदन झाँक-झाँक के
गन्दी नज़रें करें ताक-झाँक
मजबूर औरत तन छुपाती
फटे-पुराने छनकते पल्लू से
करती दिन भर धुप में मजदूरी
दो वक़्त की रोटी जुटाने को
शाम को जब लौटे काम से
पैसे छीन लेता शराबी अकड़ से
नहीं चिंता उसको भूखे बच्चो की
नहीं बीवी के झलकते बदन की
लौटेगा फिर लड़खड़ाते कदमो से
बोलेगा अपशब्द करेगा अपमान
क्या यही है एक मजबूर बीवी की
मैली कुचैली सी दीन-हीन पहचान
और हम फिर लिखते हैं लेखो में
नर और नारी दोनों हैं एक समान
नारी की दुर्दशा आज भी है इस
हिन्दुस्तान की घिनौनी पहचान
लेकिन हम ख़ुशी से गाते हैं
मेरा भारत  दुनिया में महान
नन्ही कली से होता दुर्व्यवहार
सजा मिलती नहीं कसूरवार को
खुला घूमता रहता है वो दानव
फिर से ढूँढने  नए शिकार को
पैसा फेंको तमाशा देखो यहाँ
मानवता हो रही है यूँ  नीलाम 
ऐसा हो गया है ये हिन्दुस्तान
कैसे गर्व करे हम हो रहे शर्मसार
कहीं खो गया है वो भारत महान

***** प्रवीन मलिक *****

Tuesday, 21 May 2013

तेरी यादों का महल





तेरी यादों का एक महल बनाया

उसकी हर दीवार पर तुम्हे ही सजाया

उसमे तेरे दिए हल पल को पाया

उसी को फिर मैंने अपना जहाँ बनाया

जिससे कभी न फिर मैं निकल पाया  

महल की हर दिवार हर कोने  पर

तेरे दिए हसीन जख्मो को ही पाया

बहुत चाहा निकाल बाहर फेंकू तुम्हे

पर हर बार खुद को मजबूर पाया

जाने क्या जादू था तेरी उन बातों में

बिना किसी डोर के खिंचा चला आया

मुलाकातों के उन पलों में खुशिये से

ग़मों का प्रतिशत ही ज्यादा पाया

भुलाना चाहा हर उस पल को

जो था कभी तेरे संग बिताया

पर शायद मेरी किस्मत को भी

तुझसे दूर जाना रास न आया

जब भी कोशिश की दूर जाने की

तेरी यादों का काफिला संग आया

लोग बहुत हैं जिंदगी में चाहने वाले

पर मेरे दिल को सिर्फ तेरा ही साथ भाया

किस्मत के लिखे को कोई मिटा न पाया 

इसीलिए दुनिया में दर्दे-ऐ-दिल है समाया 



***** प्रवीन मलिक *****


पधारने के लिए धन्यवाद