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Saturday 10 May 2014

माँ ही नहीं है पर यादें तो हैं !!

माँ की परछाई 



माँ शब्द को परिभाषित करना मतलब सारी भावनाओं को , सारे अहसासों को , सारी संवेदनाओं को , सारी दुआओं को , सारे त्याग को , अनंत प्रेम को विस्तार में कहना ! माँ के लिए लिखने पर शब्द खत्म हो सकते हैं पर माँ का प्यार अनंत बाहें फैलाकर शब्दों  में समाना ही नहीं चाहता ! माँ तो वो है जो हमारे जन्म से पहले से ही हमारे लिए त्याग करना शुरु कर देती है , हमारी सेहत के लिए अपने पसंद के भोजन तक को बदल देती है , अपनी सारी रातें हमारे नाम कर देती है , अपने सपने सब हमपर कुर्बान कर देती है , खुद की जान पर खेलकर हमें इस दुनिया में लाती है , हमारी पहली गुरु बन कर हमारी शिक्षा की नींव रखती है , गलत सही के बीच भेद बतलाती है , अच्छे बुरे का फर्क समझाती है , हमारी छोटी- छोटी खुशियों में ही वो खिलखिलाकर मुस्काती है , दर्द हमें हो तो आँसू वो बहाती है , हमारी हर बात को बिन कहे समझ जाती है .... माँ के लिए जितना कहा जाये कम ही पड़ता है !
कुछ कभी जब भी माँ की याद आये तो शब्दों में ढ़ालना चाहा ...

जिंदगी की राह में जाने कितने मोड़ आते हैं
कुछ अजनबी मिल जाते तो कुछ अपने छूट जाते हैं
सफर ये रुकता नहीं है किसी के छूट जाने से भी लेकिन
हाँ वक्त वक्त पर छूटे हुये  अपनेे याद बहुत आते हैं .....

माँ के हाथ के खाने में जाने क्या स्वाद था ,
रुखी-सूखी खाकर भी दिल तृप्त हो जाता था !
खुद के बनाये लजीज खाने में भी अब ,
न वो स्वाद है और ना  ही दिल को तृप्ति होती है !!......

माँ का आँचल कितना भी झीना क्यूँ न हो
औलाद को हर अल्ली-झल्ली से बचा लेता है !!....

माँ की दुआएँ ढ़ाल बन जाती हैं
जब भी मेरी जिंदगीं में मुश्किलात आती हैं !!

यूँ तो अपने बहुत हैं कहने को माँ ,
पर तुमसा अपनापन किसी में नहीं है !!

तुम्हारी डांट में भी कितना प्यार छुपा था माँ ,
माँ बनकर ही तेरा वो प्यार अब समझ आया !!

बात बात पर रूठ जाया करते और तुम पल में मना लिया करती ,
वो रुठना मनाना आज फिर से  बहुत याद आया माँ !!

सारे भाव अलग अलग परिस्थितियों में माँ की अहमियत का अहसास कराते हैं और माँ की यादों को अनमोल बनाते हैं !
माँ जैसी ही बनना है मुझे पर उसके जितनी ममता कहाँ से लाऊँ .....

Tuesday 6 May 2014

हाइकु-- मासूम चंचल बेटियाँ

कुछ हाइकु मासूम चंचल बेटियों के लिए ...

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सुन नादान
ईश्वर वरदान
बेटी संतान

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छू लें आसमाँ
करें नाम रौशन
दें, जो हौसला

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एक ही चाह
नापे धरा गगन
बेटी शगुन

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नाजों से पली
चढ़ी दहेज बलि
मासूम कलि

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नाजुक कंधें
ढ़ेर जिम्मेदारियाँ
ढ़ोती बेटियाँ

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प्रवीन मलिक
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Thursday 1 May 2014

सम्मान के हकदार श्रमिक

हर कोई अपने स्तर पर श्रमिक है और पसीना बहाना श्रमिक की पहचान है पर हर स्तर पर श्रमिक को सम्मान नहीं मिलता यदि आप अपने उच्च अधिकारी से सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो आपका भी फर्ज है अपने निम्न स्तर के श्रमिकों को उचित सम्मान देना .... आखिर खून पसीना बहाते हैं भले ही अपने पेट के लिए पर उनका सहयोग हर स्तर पर मायने रखता है और विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है !
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कर्कश वाणी
सहना मजबूरी
सब हैं जाणी
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पेट की आग
जलाए हरपल
कैसे अभाग
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सूखा शरीर
श्रम है मजबूरी
न हो अधीर
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थोड़ा सम्मान
श्रमिक हकदार
जरा ले जान
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नन्हें श्रमिक
खो रहे बचपन
सुनो धनिक
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रद्दी बीनता
वो बाल मजदूर
पेट की चिन्ता
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प्रवीन मलिक 

पधारने के लिए धन्यवाद