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Friday 29 August 2014

भूख ...

श्वेता जो की अमीर बाप की बेटी है जिसने घर में किसी चीज़ की कभी कोई कमी नहीं देखी ! उसका जन्मदिन था और उसने अपने सभी फ्रेंड्स को पार्टी के लिए घर पर बुलाया और घर की बावर्चिन को खाने का मेनू पकड़ाते हुए कहा की आज ये सब खाने में बनना चाहिए और खाना बहुत ही स्वादिष्ट होना चाहिए किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं होनी चाहिए मेरे  सब फ्रेंड्स आ रहे हैं तो कोई तमाशा नहीं होना चाहिए !
कमला (बावर्चिन का नाम ) श्वेता के स्वभाव से परिचित थी की श्वेता तो हर बात में नुक्स निकालती है उसको खुश करना टेढ़ी खीर है लेकिन अब जब उसने आर्डर दे ही दिया है तो कमला को तो सब तैयारी करनी ही थी ! कमला ने जी तोड़ मेहनत करके  खाना तैयार किया ! शाम हो चुकी थी कमला की धड़कने बढ़ रही थी पता नहीं मेमसाहब को खाना पसंद आयेगा भी या नहीं या फिर आज मेरा नौकरी का अंतिम दिन होगा ! अगर ऐसा हुआ कि मुझे नौकरी छोड़ कर जाना पड़ा तो मेरा और मेरे बच्चों का गुजारा कैसे होगा ! मुश्किल से ये नौकरी करके कमला अपना और अपने तीन बच्चों का पेट पाल रही थी !
पार्टी शुरू हो गयी ! कमला भी अपने बच्चों को साथ लायी थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी कि उनको अन्दर आने को कहती इसीलिए उसने उनको घर के पिछवाड़े के आँगन में बैठा दिया ! केक काटने के बाद खाना लगाने को कहा … कमला ने डरते हुए खाना लगाया ! श्वेता ने पहला ही कौर मुह में लिया और थूक दिया ये क्या वाहियात खाना बनाया है …. इसमें नमक है ही नहीं और मिर्ची इतनी की मुंह में छले पड़ जाये ! हटाओ इस बकवास खाने को और ऐसा कहकर श्वेता ने प्लेट फेंक दी ! श्वेता की मम्मी ने कमला को डांटते हुए कहा की बेबी का मूड ख़राब कर दिया आज उसका जन्मदिन है !
बेबी यानि श्वेता जो की बीस साल की हो गयी थी आज ! गुस्से में अपने फ्रेंड्स को लेकर चल पड़ी की चलो कहीं अच्छी जगह जाकर खाना खायेंगे ! जाते जाते श्वेता आर्डर दे गयी की इस खाने को फेंक देना ! कमला ने खाना चखा लेकिन खाना तो बहुत अच्छा बना था पर कमला पलटकर जवाब थोडा दे सकती थी ! उसने खाना उठाया और बांधकर चल पड़ी बच्चों को लेकर बस्ती की तरफ उदास मन से की जिसको खाने की भूख ही न हो उसको खाने का स्वाद कैसे पता चलेगा ! उसने खाना अपनी बस्ती के सारे बच्चों में बांटा ! सारे बच्चे खाने को देखकर टूट पड़े क्यूंकि उनको ऐसे लज़ीज़ पकवान कभी नसीब कहाँ हुए थे वो तो आज श्वेता के ज्यादा नखरे के कारन मिल गया ! सब बच्चे खाना खाकर इतना खुश थे अब कमला भी थोड़ी अपने को हल्का महसूस कर रही थी की चलो किसी का तो पेट भरा !
दोस्तों ये बात सही है कि जब भूख ही न हो तो खाना कैसा भी हो बेस्वाद ही लगेगा और भूख में तो कुछ भी हो खाने को वो बहुत स्वाद लगेगा ! भूख भूख होती है गरीब या अमीर की नहीं होती ! अमीर लोग अपने पैसे के बल पर खाना वेस्ट करते हैं ! जब भूख की मार पड़ती है तो इंसान कुछ भी खाने को मजबूर हो जाता है ! ये भूख ही है जो इंसान को इंसान का दुश्मन बना बैठी है ! ये भूख ही है जो सरेआम लड़कियों के साथ दुष्कर्म हो जाते हैं ! ये भूख ही जिसके लिए लोगो ने अपना ईमान तक बेच दिया है ! ये भूख ही है जिसके लिए इंसान इतना निचे गिर जाते हैं ! भूख का कोई चेहरा नहीं होता कोई रूप नहीं होता ! भूख अमीर गरीब को नहीं पहचानती !

Thursday 7 August 2014

राखी पर लें प्रण .....

" यही प्रण लेना और देना ,
राखी का मान-सम्मान बढ़ाना"

प्रेम के धागे
शायद कच्चे हो गये
या फिर अपना
महत्व खोने लगे हैं
एक डोरी में बंधा
प्रेम-विश्वास, दुआयें और सम्मान
कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है
वरना हर दिन यूँ
बहने डर डरके न जीती
एक तरफ श्रीकृष्ण ने
द्रौपदी की लाज बचायी
एक कच्चे धागे से ही
खत्म न होने वाला चीर बनाया
तब तो दुशासन एक था
आज हर गली हर नुक्कड़ पर
दुशासनों का डेरा है
और कोई कृष्णा भी तो नहीं
अब बहनों को भाई से
खुद की रक्षा की नहीं बल्कि
संपूर्ण नारी-जाति के
सम्मान की रक्षा का प्रण लेना होगा
वचन लेना होगा कि
कभी किसी पर कुदृष्टि न डालें
वरना बेइज्जत वो पीडित नहीं
बल्कि मेरी राखी और मेरा विस्वास होगा !!

प्रवीन मलिक ••••••@•••••

Monday 4 August 2014

दो आंसू ...

सुनीता बहुत खुश थी आखिर 2 साल बाद उसको अपनी सहेली संजना से मिलने का मौका मिला है ! कितना कुछ है जो उसको संजना से पूछना है उसको बताना है ! आखिर उसकी सबसे अच्छी सहेली जो है संजना ! सुनीता के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं ... खुशी के मारे वो छीलने के लिए मटर ससुर जी को पकड़ा रही है तो अखबार सासू जी को ... उफ्फ इतनी खुशी ... वो अपने दिल में नहीं समा पा रही है !
खुशी हो भी क्यूँ न .. रमेश ने पहली बार उसे कहीं जाने की इजाजत जो दी है ! वो भी कितनी मिन्नतों के बाद कि संजना की शादी हो जाएगी फिर क्या पता कभी मिल पायें या नहीं .. कितनी बार कहने पर रमेश ने कहा था कि ठीक है लेकिन सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना .. यूँ तो सुनीता एक दिन पहले जाना चाहती थी एक आखिरी रात संजना के साथ बिताना चाहती थी क्यूँकि शादी वाले दिन उन दोनों को कहाँ कुछ टाइम मिलेगा अपनी कहने सुनने का ... पर रमेश से वो बहस नहीं करना चाहती थी जितनी इजाजत मिली है उतने में ही खुद को खुश कर लिया है !
सारे काम वो फटाफट निपटा रही है कि कल जल्दी उठना है ! तभी अचानक उनकी सास के कमरे से चीखने की आवाज आती है ! सुनीता दौड़कर कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी सास पेट पकड़े जमीन पर बैठी है और रो रही है . . दर्द ज्यादा होने के कारण तुरंत हॉस्पीटल लेकर गये रमेश और सुनीता माँ जी को ... ससुर जी घर पर ही यश के साथ रुके ..  दर्द के मारे माँ जी की हालत बहुत खराब थी लेकिन हॉस्पीटल जाकर डॉक्टर के चैकअप के बाद पता चला कि गैस की वजह से दर्द था ! कुछ ही देर में दवाई के बाद उनको आराम हो गया और डॉक्टर ने घर जाने की आज्ञा दे दी ! इसी बीच रात के बारह बज गये ! माँ जी ने घर जाकर कहा कि सुनीता बेटा मैं अब बिलकुल ठीक हूँ तुम जाकर सो जाओ .... कल तुम्हें अपनी सहेली की शादी में जाना है !
तभी रमेश ने तुनक कर कहा ... माँ इसकी सहेली की शादी कोई जरुरी नहीं है ! सुनीता कल कहीं नहीं जा रही है फिर से आपकी तबियत अगर खराब हुयी तो ....
माँ जी ने कहा- नहीं बेटा मैं बिलकुल ठीक हूँ और डॉक्टर ने कहा ना कि मामूली गैस थी अब सब ठीक है .. सुनीता जा आयेगी उसका बहुत मन है अपनी सहेली से मिलने का ...
रमेश- माँ ... क्या आप बच्चों सी बात कर रही हैं ! ये नहीं गई तो क्या इसकी सहेली की शादी नहीं होगी ! वैसे भी औरतों की क्या दोस्ती यारी .. आज कहाँ है कल पता नहीं कहाँ होंगीं ! सुनीता का संजना  की शादी में जाना इतना जरुरी नहीं जितना आपकी सेहत है .... तभी मोबाइल बजा और रमेश फोन पर बात करने लगा ... फोन की बातचीत से पता चला कि रमेश का दोस्त अमन बहुत दिन बाद विदेश से आया है और कल सब दोस्तों ने मिलने का प्लान किया है ... और रमेश हँसते हुये कहता है - हाँ यार कल मिलते हैं मैं बिलकुल फ्री हूँ ....
सुनीता मन ही मन सोचती है क्या मुझे अपनी सहेली से मिलने का हक नहीं क्यूँकि मैं एक औरत हूँ ... अगर रमेश चाहते तो मैं मिल सकती थी संजना से ... पर नहीं ..... मैं तो रमेश के हाथों की शायद कठपुतली हूँ जो वो चाहेगें वही मुझे करना है ... मैं खुद से कोई फैसला नहीं ले सकती हूँ ..... यही सोचते हुये दो आँसू  उसकी आँखों के कोर से छलकते हैं और सुनीता मुँह फेरकर छुपा लेती है और दिल के दर्द को छुपाकर अपनी दिनचर्या में लग जाती है .....

Sunday 3 August 2014

ये रिश्ता ....(दोस्ती का)

यूँ तो सब रिश्ते
खुदा की देन हैं
एक दोस्त ही हम
अपने अनुरुप चुनते हैं
जो हमारे जैसा हो ,
जिसके विचार और सोच
 हमसे मिलती हो
तभी दोस्ती का काँरवा
आगे बढ़ता है
विस्वास के धागे का
इसमें विशेष महत्व है
ये धागा जितना मजबूत
तो रिश्ता भी उतना ही
दृढ़ , मजबूत होता है
न इसमें हिसाब रखा
जाता लेन-देन का
जो दिया दिल से दिया
कोई अहसान नहीं किया
उपकार या अहसान
जैसे शब्द तो इसमें
कदापि नहीं आते
एक दूसरे की समझ
इसे और ज्यादा
मजबूती देती है
इसमें सारे गम अपने
सारी खुशियाँ तुम्हारी
न वक़्त का कोई पहरा
न ही मजबूरियों का
कोई बंधन
जैसे हो वैसे ही मंजूर
न कोई बदलाव की चाह
आइने की तरह साफ
छल कपट और बैर से
कोसों दूर होता है
ऐसा ही होता है ये रिश्ता ........(प्रवीन मलिक)

Saturday 2 August 2014

सुनो ना ... क्यूँ हो इतनी कठोर ??

यूँ तो तुम बहुत अच्छी हो
मन की सुन्दर हो
व्यवहार की भी बहुत अच्छी हो
सबसे मिलनसार हो
बस मुझसे ही बेरुखी पाली है तुमने
जाने क्यूँ इतनी सरहदें
बनाकर रखी हैं तुमने तेरे-मेरे दरमियान
न तुम खुद उस पार आती हो
न ही मुझे इस पार आने देती हो
नदी के दो किनारों सा रखना है तुमने
हमारे इस रिश्ते को जो कभी नहीं मिलते
बस साथ साथ चलते हैं अनंत तक
पर बीच में हमारे ये जो स्नेह का
मीठे जज्बातों का दरिया बहता है
तुम इसमें भीगना भी नहीं चाहती हो
लेकिन ये कभी-कभी बहुत ज्यादा
तेज़ बहाव से बहने लगता है
तोडना चाहता है किनारों को
आना चाहता है उस पार तुम्हारे करीब
पर तुम रोक देती हो आखिर क्यूँ
मैं चाहता हूँ तेरे मेरे दरमियाँ एक पुल
जिसे पार कर आ सकूँ तुमसे मिलने
पर तुम्हारी ये रोक-टोक बहुत खटकती है
बहुत रुला देती है मुझे
खुद पर ही शक होने लगता है कि
शायद मैं तुम्हारा भरोसा ही नहीं जीत पाया
क्यूँ भरोसा नहीं कर पाती हो आखिर
आजमाकर तो देखो हमें एकबार
जो विस्वास दिखाया है उसे कभी टूटने नहीं देंगे
भले ही उसके लिए हमें खुद टूट जाना पड़े
इतनी भोली और मासूम सूरत है तुम्हारी
फिर दिल क्यूँ इतना कठोर बनाया हुआ है
चट्टान के माफिक ...
कभी तो अपने दिल की भी सुन लिया करो
क्यूँ रखती हो हर वक़्त उसे बेड़ियों में जकड़कर
उसको भी कभी तो जीने दो जैसे वो चाहता है जीना
उसको भी करने दो अपनी कुछ ख्वाहिशें पूरी
थोडा तो रहम करो उसपर आखिर है तो एक दिल ही न
मुझ से तो नाइंसाफी करती ही हो
अपने दिल से तो कभी इन्साफ कर लो
सुनो ना ... बताओ तो आखिर तुम्हे
क्या डर है , क्यूँ तुम अपने दिल की नहीं सुनती हो
मेरा दर्द तो खैर तुम कहाँ समझोगी
तुमने तो अपने दिल को ही कैद में रखा है !!......................( प्रवीन मलिक )

पधारने के लिए धन्यवाद