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Sunday 1 September 2013

मुक्तक लिखने का प्रयास......

कुछ ख्वाब देखे थे अधूरे रह गये 
अरमान भी दिल के अश्क से बह गये 
न मिला कोई मनचाहा साथी हमें 
सो दर्द दिल का हंसकर ही सह गये !!


दिल में अगर हो चाह कुछ पाने की 
परवाह न कर फिर ठोकर खाने की 
यूँ ही मंजिलें मिलती नहीं ऐ दोस्त
जरुरत पड़ती है फना हो जाने की !!


न करो गुरुर इतना कि वो चूर चूर हो जाये 
हद में रहो उतना जितना बर्दास्त हो जाये 
वक्त बदलने में देर नहीं लगती ऐ दोस्तो
जाने कब इन्सान राजा से रंक हो जाये !!


मासूमों पर निरा हो रहा अत्याचार है 
देश पर अब हावी हो रहा भ्रस्टाचार है
हर तरफ फैले हैं घोटाले ही घोटाले 
देश आज दुनिया में हो रहा शर्मसार है !!


प्रवीन मलिक..............


9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार -02/09/2013 को
    मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra




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  2. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [02.09.2013]
    चर्चामंच 1356 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  3. वाह बहुत सुंदर ,

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  4. दिल में अगर हो चाह कुछ पाने की
    परवाह न कर फिर ठोकर खाने की
    यूँ ही मंजिलें मिलती नहीं ऐ दोस्त
    जरुरत पड़ती है फना हो जाने की ..

    वाह ... लाजवाब मुक्तक है ... सच अहि की मंजिल आसानी से नहीं मिलती ...

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  5. बहुत ही सुंदर कविता... एकदम लाजवाब.....

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पधारने के लिए धन्यवाद