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Saturday 30 November 2013

फरेबी ज़ज्बात ....

what was my fault

रिश्ता जोड़ा हमने दिल की सांसों से ,
तुम खेलते रहे मेरे मधुर अहसासों से !

तुम करते रहे फरेब पाक ज़ज्बातों से ,
हम डूबते चले गए मन की गहराइयों से !

तुम्हारी तो ये आदत है खेल खेलने की ,
हम टूट कर बिखर गए कांच के आइनों से !

कभी सुबह-शाम की अजान से रहे तुम ,
अब अता होते हो तो मातमी अल्फाजों से !

दिल सजाए बैठा है ख्वाब जाने कितने ,
तुम गुजरते चले गए वक़्त के हाशियों से !

निकल पड़े हो ढूँढने कोई और खिलौना ,
दिल भरा नहीं अभी क्या मेरी बर्बादियों से !






************प्रवीन मलिक****************

Saturday 16 November 2013

इतना क्यूँ तुम मुस्करा रही हो ......



बहुत दिन से कुछ लिख नहीं पायी आज कोशिश की है कुछ लिखने की .... देखिये जरा !!


बेखबर सी तुम जो मुस्करा रही हो ,
जाने इतना तुम क्यूँ शरमा रही हो !
क्या राज छुपा रखा है इन आँखों में ,
जो इस तरह नजरें तुम झुका रही हो !!

किसकी यादों को दिल में छुपा रही हो ,
किसके सपने आँखों मे सजा रही हो !
कौन है वो खुशनसीब सा इस जहाँ में ,
जिसके लिए मंद-मंद मुस्करा रही हो !!


**********प्रवीन मलिक**********

पधारने के लिए धन्यवाद