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Saturday 28 September 2013

खुद से पराये हो गये .....








तुमसे मिले और खुद से पराये हो गये
तुम्हारे अलावा बाकी सब कुछ भूल गये !!

आइने में भी अक्स तेरा ही देखने लगे
जागती आँखों से हसीन ख्वाब बुनने लगे !!

सबके बीच रहकर भी सबसे बेखबर हो गये
तेरी यादों और दिलकश बातों में खोकर रह गये !!

कभी बहुत बकबक किया करते थे बेवजह ही
अब अचानक ही जाने क्यूँ गुमसुम से हो गये !!

तुम्हारे बिना सतरंगी रंग फीके से लगने  लगे
महफिलों से हम अपनी नजरें बचाकर चलने लगे !!

नींद , चैन , भूख , प्यास से बेखबर होकर
तेरे ही मीठे ख्वाबों में दिन-रात हम रहने लगे !!

                    प्रवीन मलिक

Monday 23 September 2013

सपना... सुखद अहसास

सीमा चली जा रही थी खोई खोई सी ! अचानक उसका ध्यान भंग हुआ तो देखा ... अरे ये तो मैं अपने स्कूल आ गयी हूँ ! पर स्कूल में कोई नहीं है क्यूँकि छुट्टी हो गयी है ! सीमा चुपचाप बरामदे में चली जा रही है इस स्कूल में सिर्फ पाँच कमरे थे ! ये माध्यमिक स्कूल था ! स्कूल के तीन साल यहाँ बिताये थे ! आज फिर खुद को अनायास यहाँ पाकर उसके दिल को कितनी राहत मिल रही थी ! कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था लेकिन अहसास बहुत खास था ! हालांकि अब स्कूल बढिया बन गया है वह स्कूल को ठहर कर चारों तरफ नजर घुमाकर देखती है ! लेकिन वो पुराने पाँच कमरे सिर्फ मरम्मत करके छोड़े हैं ! वो कोने का आखिरी कमरा वहीं तो मेरी कक्षा होती थी याद आते ही कदम अनायास ही बढ़ने लगे ! खिड़की के पास से गुजर ही रही थी कि उसके कान में सीमा चली जा रही थी खोई खोई सी ! अचानक उसका ध्यान भंग हुआ तो देखा ... अरे ये तो मैं अपने स्कूल आ गयी हूँ ! पर स्कूल में कोई नहीं है क्यूँकि छुट्टी हो गयी है ! सीमा चुपचाप बरामदे में चली जा रही है इस स्कूल में सिर्फ पाँच कमरे थे ! ये माध्यमिक स्कूल था ! स्कूल के तीन साल यहाँ बिताये थे ! आज फिर खुद को अनायास यहाँ पाकर उसके दिल को कितनी राहत मिल रही थी ! कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था लेकिन अहसास बहुत खास था ! हालांकि अब स्कूल बढिया बन गया है वह स्कूल को ठहर कर चारों तरफ नजर घुमाकर देखती है ! लेकिन वो पुराने पाँच कमरे सिर्फ मरम्मत करके छोड़े हैं ! वो कोने का आखिरी कमरा वहीं तो मेरी कक्षा होती थी याद आते ही कदम अनायास ही बढ़ने लगे ! खिड़की के पास से गुजर ही रही थी कि उसके कान में आवाज पड़ी " गुड ईवनिंग मैडम" ... आवाज कुछ जानी पहचानी थी ... वापस थोड़ा पिछे लौटी और खिड़की से अन्दर झांका तो देखकर हैरान हो गयी ... उसकी खुशी का ठिकाना न था ! ओह माई गोड .... रवि सर आप ! स्कूल की तो छुट्टी हो गयी है आप यहाँ कैसे ? ... और आपने मुझे मैडम कहा ..... रवि सर उसे देखकर मुस्करा रहे थे ! सीमा हैरान अत्यन्त खुशी महसूस कर रही थी ! रवि सर कोई उसके खास नहीं थे पर दिल में अजीब सा सुकून था मिलकर ..... 

रवि सर ने चुप्पी तोड़ी ... हाँ सीमा मैं ! एक्सट्रा क्लास लेने की आदत गयी नहीं मेरी अभी तक ! घर जाकर भी क्या करूँ यहाँ इन बच्चों के साथ समय बिताना ही अच्छा लगता है और इन्हें भी पढाई में मदद मिल जाती है ! तुम तो ऐसी गयी कभी वापस आने का नाम नहीं लिया ! (रवि सर सीमा के सर अवश्य थे पर उम्र में कोई ज्यादा बड़े नहीं थे और न ही सीमा के माध्यमिक स्कूल के सर थे बल्कि वो तो सीमा को कॉलेज टाईम में कम्प्यूटर पढाते थे .... सीमा और रवि सर की अच्छी दोस्ती थी ! कितनी बार रवि ने कहा था कि ये तुम सर लगाकर मुझे बहुत बड़ा बना देती हो ... कम से कम कक्षा के बाहर तो रवि सर न कहकर रवि बुलाया करो ... पर सीमा कहती कि मुझे रवि सर कहना ही अच्छा लगता है .... बहुत अच्छा लगता है ! .... लेकिन रवि सर यहाँ माध्यमिक स्कूल में क्या कर रहे हैं ? बतायेगें पर बाद में ... )
सीमा जितनी खुश थी रवि से मिलकर उससे कहीं ज्यादा खुश रवि लग रहा था ! .... सीमा तुम यहाँ कैसे ? ..... सीमा चौंकी ... अरे हाँ मैं यहाँ कैसे पता नहीं कैसे ... बस चलती चली आयी और कब यहाँ पहुँच गयी पता नहीं ! .... 
रवि ने कहा ... क्या करती हो आजकल ? बहुत अच्छी थी तुम पढाई में ... मुझे हमेशा लगता था तुम कुछ न कुछ जरुर करोगी ! पर यहाँ लोग जाने क्या क्या बोलते हैं तुम्हारे बारे में .... मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई तुम्हारे बारे में कुछ उल्टा सीधा बोलता है तो ! 
सीमा ... सर मैंनें कुछ गलत नहीं किया ... उस मासूम लड़की की मदद की जिसे सबने दुत्कार दिया था ... सब उसे दोष देते जबकि वो बिल्कुल दोषी नहीं ... उसने तो प्यार किया था सच्चे दिल से बस गल्ती की तो इतनी की उस लड़के पर खुद से ज्यादा विश्वास कर लिया और वो उसे बीच राह में छोड़कर चला गया ! प्यार करना कोई जुर्म तो नहीं है फिर क्यूँ उसके माँ-बाप तक ने उसे इस हालत में घर से बाहर निकाल दिया ... माँ बनने वाली है वो ... कहाँ जाती ... मुझसे नहीं देखा गया और उसको मैंनें पनाह दी उसकी थोड़ी मदद की और दुनिया ने मुझे कसूरवार ठहरा दिया ... क्या स्वेदंनशील होना गुनाह है ! और मेरे घरवाले भी मुझे दोषी समझते हैं कि उसे घर में क्यूँ रखा है ! 
रवि .... तुमने कुछ गलत नहीं किया ... जितनी हो सके किसी असहाय की मदद करनी चाहिए ...
दुनिया क्या कहती है .. कहने दो ! वही करो जिससे तुम्हारे दिल को तसल्ली मिले ! 
पर मैं उसकी मदद करके भी खुश नहीं हूँ ... अपनों की बेरुखी दिल पर बोझ बन गयी है ! आपसे मिलकर मुझे आज बहुत ही अद्भुत खुशी हो रही है ... कैसे बताऊँ ... कितना सुखद लग रहा है ! बस ये पल ये समय काश यहीं रुक जाये ... 
सीमा समय तो नहीं रुका चलता चला गया पर रवि जरुर तुम्हारा इन्तजार करते हुये वहीं का वहीं रुका हुआ है आज भी .... कभी वापस पलटकर आती तो देखती ... पर तुम तो ..... कहकर रवि चुप हो गया ! 
सीमा अवाक सी देखती रही .... सोचने लगी कि इतना प्रेम था तो कहा क्यूँ नहीं ... मैं भी कभी कहीं और शादी नहीं करती .... पर सर अब मेरी दुनिया बहुत अलग है .. मेरा एक हँसता खेलता संसार है .... और आप उसमें कहीं नहीं है ! 
रवि ... अहसास में भी नहीं ... तुम खुश रहो बस मैं इतना ही चाहता हूँ .... ऐसा कहकर रवि आगे बढ़ गया ... सीमा रोकना चाहती थी पर तभी अलार्म बज पड़ा और वह उठी ... उफ्फ सपना था ...
सपना था तभी रविसर को माध्यमिक स्कूल में पाया ... बहुत मन है कि रविसर से बात करुँ पर कैसे ..... मेरे पास कोई माध्यम नहीं उनसे बात करने का .... 
कभी कभी सपने कहाँ कहाँ की सैर करा देते हैं किस किस से मिला देते हैं कितना खुशी का अहसास करा देते हैं .... सपनों की भी अपनी एक अलग ही दुनिया रंगबिरंगी सी ...   पड़ी " गुड ईवनिंग मैडम" ... आवाज कुछ जानी पहचानी थी ... वापस थोड़ा पिछे लौटी और खिड़की से अन्दर झांका तो देखकर हैरान हो गयी ... उसकी खुशी का ठिकाना न था ! ओह माई गोड .... रवि सर आप ! स्कूल की तो छुट्टी हो गयी है आप यहाँ कैसे ? ... और आपने मुझे मैडम कहा ..... रवि सर उसे देखकर मुस्करा रहे थे ! सीमा हैरान अत्यन्त खुशी महसूस कर रही थी ! रवि सर कोई उसके खास नहीं थे पर दिल में अजीब सा सुकून था मिलकर ..... 

रवि सर ने चुप्पी तोड़ी ... हाँ सीमा मैं ! एक्सट्रा क्लास लेने की आदत गयी नहीं मेरी अभी तक ! घर जाकर भी क्या करूँ यहाँ इन बच्चों के साथ समय बिताना ही अच्छा लगता है और इन्हें भी पढाई में मदद मिल जाती है ! तुम तो ऐसी गयी कभी वापस आने का नाम नहीं लिया ! (रवि सर सीमा के सर अवश्य थे पर उम्र में कोई ज्यादा बड़े नहीं थे और न ही सीमा के माध्यमिक स्कूल के सर थे बल्कि वो तो सीमा को कॉलेज टाईम में कम्प्यूटर पढाते थे .... सीमा और रवि सर की अच्छी दोस्ती थी ! कितनी बार रवि ने कहा था कि ये तुम सर लगाकर मुझे बहुत बड़ा बना देती हो ... कम से कम कक्षा के बाहर तो रवि सर न कहकर रवि बुलाया करो ... पर सीमा कहती कि मुझे रवि सर कहना ही अच्छा लगता है .... बहुत अच्छा लगता है ! .... लेकिन रवि सर यहाँ माध्यमिक स्कूल में क्या कर रहे हैं ? बतायेगें पर बाद में ... )
सीमा जितनी खुश थी रवि से मिलकर उससे कहीं ज्यादा खुश रवि लग रहा था ! .... सीमा तुम यहाँ कैसे ? ..... सीमा चौंकी ... अरे हाँ मैं यहाँ कैसे पता नहीं कैसे ... बस चलती चली आयी और कब यहाँ पहुँच गयी पता नहीं ! .... 
रवि ने कहा ... क्या करती हो आजकल ? बहुत अच्छी थी तुम पढाई में ... मुझे हमेशा लगता था तुम कुछ न कुछ जरुर करोगी ! पर यहाँ लोग जाने क्या क्या बोलते हैं तुम्हारे बारे में .... मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई तुम्हारे बारे में कुछ उल्टा सीधा बोलता है तो ! 
सीमा ... सर मैंनें कुछ गलत नहीं किया ... उस मासूम लड़की की मदद की जिसे सबने दुत्कार दिया था ... सब उसे दोष देते जबकि वो बिल्कुल दोषी नहीं ... उसने तो प्यार किया था सच्चे दिल से बस गल्ती की तो इतनी की उस लड़के पर खुद से ज्यादा विश्वास कर लिया और वो उसे बीच राह में छोड़कर चला गया ! प्यार करना कोई जुर्म तो नहीं है फिर क्यूँ उसके माँ-बाप तक ने उसे इस हालत में घर से बाहर निकाल दिया ... माँ बनने वाली है वो ... कहाँ जाती ... मुझसे नहीं देखा गया और उसको मैंनें पनाह दी उसकी थोड़ी मदद की और दुनिया ने मुझे कसूरवार ठहरा दिया ... क्या स्वेदंनशील होना गुनाह है ! और मेरे घरवाले भी मुझे दोषी समझते हैं कि उसे घर में क्यूँ रखा है ! 
रवि .... तुमने कुछ गलत नहीं किया ... जितनी हो सके किसी असहाय की मदद करनी चाहिए ...
दुनिया क्या कहती है .. कहने दो ! वही करो जिससे तुम्हारे दिल को तसल्ली मिले ! 
पर मैं उसकी मदद करके भी खुश नहीं हूँ ... अपनों की बेरुखी दिल पर बोझ बन गयी है ! आपसे मिलकर मुझे आज बहुत ही अद्भुत खुशी हो रही है ... कैसे बताऊँ ... कितना सुखद लग रहा है ! बस ये पल ये समय काश यहीं रुक जाये ... 
सीमा समय तो नहीं रुका चलता चला गया पर रवि जरुर तुम्हारा इन्तजार करते हुये वहीं का वहीं रुका हुआ है आज भी .... कभी वापस पलटकर आती तो देखती ... पर तुम तो ..... कहकर रवि चुप हो गया ! 
सीमा अवाक सी देखती रही .... सोचने लगी कि इतना प्रेम था तो कहा क्यूँ नहीं ... मैं भी कभी कहीं और शादी नहीं करती .... पर सर अब मेरी दुनिया बहुत अलग है .. मेरा एक हँसता खेलता संसार है .... और आप उसमें कहीं नहीं है ! 
रवि ... अहसास में भी नहीं ... तुम खुश रहो बस मैं इतना ही चाहता हूँ .... ऐसा कहकर रवि आगे बढ़ गया ... सीमा रोकना चाहती थी पर तभी अलार्म बज पड़ा और वह उठी ... उफ्फ सपना था ...
सपना था तभी रविसर को माध्यमिक स्कूल में पाया ... बहुत मन है कि रविसर से बात करुँ पर कैसे ..... मेरे पास कोई माध्यम नहीं उनसे बात करने का .... 
कभी कभी सपने कहाँ कहाँ की सैर करा देते हैं किस किस से मिला देते हैं कितना खुशी का अहसास करा देते हैं .... सपनों की भी अपनी एक अलग ही दुनिया रंगबिरंगी सी ...  

Friday 20 September 2013

कौन खेवैया ..... हाइकु

गिरा रुपैया
बढती मँहगाई
कौन खेवैया  !..........१

भ्रष्ट समाज
कलुषित सी सोच
बेमानी आज. !..........२

शिशु मुस्कान
खिले अन्तकरण
फूल समान  !.............३

अक्स तुम्हारा
चमकता चन्द्रमा
सबका प्यारा  !............४

भगवा वस्त्र
ठगी है मानवता
उठाओ शस्त्र  ! ...........५

विषाक्त मन
निकालो समाधान
व्याकुल हम  !.............६

सोचो तो जरा
सुरक्षित कहाँ धी
बेमौत मरा   ! ..............७



प्रवीन मलिक................

Tuesday 17 September 2013

बेबसी.....

रमा आज बहुत खुश थी हो भी क्यूँ न .... आज उसके पोते का जन्मदिन और उसकी सालगिरह है ! उसके पति हर साल इस दिन को धूमधाम से मनाते रहे हैं और इस दिन कुछ दान दक्षिणा भी करते हैं आखिर दादी पोते का जन्मदिन साथ-साथ जो आता है !
पिछले गुजरे सालों में बिताये गये इस दिन को याद करते-करते अचानक उसकी आँखें भर आयी ! कितने अच्छे दिन गुजारे हैं राजन और रमा ने साथ-साथ.......
रमा सुबह ही नहा-धोकर तैयार हो गयी और राजन को भी तैयार होने को कहा कि जल्दी तैयार हो जाओ फिर हम सब मन्दिर जायेंगें !
दोनों तैयार होकर बाहर आये  तो देखा ..... कि बहू बेटा और उसका पोता तैयार खड़े हैं ! बहू बोली ... माँ जी हम धीरज के जन्मदिन को मनाने के लिए बाहर जा रहे हैं .... परसों तक लौट आयेंगें !
रमा अवाक रह गयी सुनकर .... हिम्मत जुटाते हुये बोली ... बहू जन्मदिन तो हम हर साल की तरह घर में ही मनायेंगें ! बाहर क्यूँ ??
बहू गुस्से से झल्लाती हुयी ... नहीं इस बार हम बाहर जा रहें हैं ! कितनी बोरियत से जन्मदिन मनता है ! आस-पड़ौस के लोगों को बुलाकर आप लोग सारा बेझ हम पर डाल देते हैं और ऊपर से आप लोगों की दान-दक्षिणा .... मेरा ते सारा दिन किचन और आप लोगों की आवभगत में निकल जाता है ... और उसके बाद जो घर फैलता है ... बाप रे बाप ... मुझसे नहीं होता ! हम बाहर जा रहे हैं ! आपको जो बनाकर खाना हो खा लिजियेगा ! ऐसा कहकर वो लोग निकल जाते हैं .... धीरज ने आशिर्वाद तक नहीं लिया दादा-दादी से .. ......

रमा राजन मजबूर से देखते रहे .... कुछ कह भी नहीं पाये ! तभी राजन बोला क्यूँ परेशान होती हो चलो मन्दिर चलते हैं .. भगवान के दर्शन करेंगें और धीरज की लम्बी उम्र की प्रार्थना करेंगें ...... राजन ने जेब में हाथ डाला तो सौ रुपये के अलावा कुछ न मिला .....

और फिर राजन को याद आया कि अबकि पैंशन तो उसने बेटे को दे दी थी ये कहकर कि मुझे जरुरत हुयी तो ले लूंगा ... अब मन्दिर में दान-दक्षिणा कैसे होगी ....
रमा ने कहा कि चलिये .. और राजन बिना रमा को कुछ कहे चल पड़े .... मन्दिर जाकर उसने भगवान को प्रसाद चढ़ाकर अपने ब्टे बहू और पोते के लिए दुआ मांगी ...
तभी कुछ बच्चे आये और रमा को जन्मदिन की बधाई देने लगे ! रमा सिर्फ उन्हे आशिर्वाद देकर चल पड़ी ... तभी एक मासूम बच्चा .. दादी जी क्या आज आप लोग हमें कुछ उपहार नहीं देंगें .... रमा उसकी बात सुनकर थोड़ा ठिठकी और बोली अब तो हम सिर्फ आशिर्वाद देने के काबिल ही रह गये हैं बच्चे ...
राजन और रमा पहली बार कुछ दान दक्षिणा न कर पाये ... बहुत शर्म और बेबस सा महसूस कर रहे थे ! वापिस घर आकर रमा बोली बताइये क्या खायेंगें बना देती हूँ .... पर राजन कुछ न बोले और कमरे में जाकर लेट गये ...
रमा जानती थी कि राजन से बिना पूछे कभी कुछ नहीं होता था घर में ... लेकिन आज उसकी औकात क्या रह गयी है ... बात राजन के दिल को छू गयी थी कि कल तक जो घर का मालिक हुआ करता आज वो कितना बेबस है ...... पहली बार आज रमा को कुछ उपहार न दे सका ... पहली बार गरीब बच्चों का खाना न खिला सका ... पहला बार आज वो खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था ...
रमा सब समझ गयी थी जो राजन के मन में चल रहा था ... पास आकर बोली नियति का नियम है ये .... और क्या हुआ जो जन्मदिन मनाने वो लोग बाहर चले गये ... वैसे भी इस उम्र में किसको जन्मदिन मनाना होता है वो तो धीरज की वजह से सब कर लेते  थे ...
दोनों गुमसुम थे ... 

Monday 16 September 2013

सोचो जरा .....

दहेज प्रथा

सामाजिक पतन

कैसी ये व्यथा !!



भ्रूण संहार

अंसतुलित हम

गिरता स्तर !!



घना कोहरा

छायी उदासीनता

न हो सवेरा !!




उम्र नादान

विलक्षण प्रतिभा

छू आसमान !!



कड़वा सच

गिरती नैतिकता

देख दर्पण !!



प्रवीन मलिक .......

Friday 13 September 2013

मेरी नजर से हाइकु....



भाव दिल के
क्रमबद्ध सजाये
बनी कविता !!

***********

तुकान्त लय
समान मात्रा गणना
बने मुुक्तक !!

***********

तीन पंक्तियां
पंच सप्तम पंच
हाइकु शैली !!

************

विस्तृत भाव
भूमिकाबद्ध व्याख्या
बने कहानी !!

************

कम शब्दों में
दे सार्थक सन्देश
लघु कहानी !!

*************



                             प्रवीन मलिक ......
                     

Tuesday 10 September 2013

जिम्मेदार कौन (हाइकु)......

जल-प्रलय
कुदरती कहर
नष्ट जीवन  !!

कटते वन
प्रदूषित नदियाँ
विनाशलीला  !!

लालची जन
प्राकृतिक आपदा
दोषी है कौन  !!


दंगा-फसाद
मजहबी दीवार
यही है धर्म  !!

कौम से प्यार
मानवता समाप्त
खून सवार  !!

कुर्सी का खेल
देशभक्ति विलुप्त
दोषी को बेल   !!

प्रवीन मलिक ......

Sunday 8 September 2013

मैंनें देखा है इक सपना......

देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

दुख का न कोई साया हो
अपनों में न कोई पराया हो
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

मँहगांई की न कहीं मार हो
देश मेरा मुक्त भ्रस्टाचार हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

बेटियों का सदैव सम्मान हो
बेइज्जत न कोई सरेआम हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

निरक्षरता का न कहीं साया हो
भूख-गरीबी की न कहीं छाया हो 
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

देश पहले सा स्वर्णिम हो
खुशहाली महकती चँहुओर हो
देखो मैंनें देखा है इक सपना
आज नहीं तो पूरा हो कल सपना !!

                 (प्रवीन मलिक)

Saturday 7 September 2013

हाइकु प्रयास

अंधेरी रात
सुनसान गलियाँ
कुकुर ध्वनी !

गरीब बच्चा
ज्वर में तड़पता
लाचार है माँ !

चुनावी वादे
तोहफों की बहार
गधा भी बाप !

खिलती कली
अनायास कुचली
घिनौना कर्म !

झूठा संसार
मोहमाया का जाल
अटल सत्य  !

पहली बार लिखा है पता नहीं कोई सही भी है या नहीं 
कृपया बताइये क्या संशोधन की आवश्यकता है ताकि कुछ सीखने में मदद मिले ... धन्यवाद !

प्रवीन मलिक .....


Wednesday 4 September 2013

. बस इतना ही तो चाहा था !.......

ऐसा तो कुछ न माँगा था जो देना मुश्किल था
एक सुनहरी शाम बालकनी में हम दोंनों कॉफी पीते हुयेऔर दूर पहाड़ियों की तरफ ढलते सूरज को अलविदा कहते हुये साथ साथ वो सुनहरी शाम ही तो मांगी थी .....
तुम्हारे साथ रहकर कुछ पल साथ होने का अहसास ही तो चाहा था ! अपने दिल का दर्द छुपाकर कुछ खुशी ही तो बाँटनी चाही थी ! जिन्दगी की हर कशमश को भूलकर तेरे आगोश में दो पल का चैन ही तो चाहा था .....
दिल में उठते दर्द के सैलाब को रोकना ही तो चाहा था ! पूरी जिन्दगी के बदले एक रूमानी सी शाम ही तो चाही थी पर तुमसे इतना भी न बन पड़ा ! क्या इतना ज्यादा माँगा था ?? इतनी बेइन्तहा मोहब्बत के बाद इतना ज्यादा तो न चाहा था ! .......
हम तुम्हारे लिए कुछ मायने न रखते हों पर हमने तुम्हारे अलावा जिन्दगी से कुछ और न चाहा था ! जो कभी न किसी के सामने झुका वो तेरे सामने यूँ गिड़गिड़ाया था सिर्फ और सिर्फ तेरे दो पल के साथ को ......
फिर भी दिल से यही दुआ निकलती है खुशी हो तुम्हारी हर राह में , दिल न कभी उदास हो , किसी न बुराई का सामना हो, तरक्की की राह हो , खिलखिलाती तेरी सुबह शाम हो , गम न कोई बादल आये .........
बस इतना ही चाहा .........

प्रवीन मलिक.....

Sunday 1 September 2013

मुक्तक लिखने का प्रयास......

कुछ ख्वाब देखे थे अधूरे रह गये 
अरमान भी दिल के अश्क से बह गये 
न मिला कोई मनचाहा साथी हमें 
सो दर्द दिल का हंसकर ही सह गये !!


दिल में अगर हो चाह कुछ पाने की 
परवाह न कर फिर ठोकर खाने की 
यूँ ही मंजिलें मिलती नहीं ऐ दोस्त
जरुरत पड़ती है फना हो जाने की !!


न करो गुरुर इतना कि वो चूर चूर हो जाये 
हद में रहो उतना जितना बर्दास्त हो जाये 
वक्त बदलने में देर नहीं लगती ऐ दोस्तो
जाने कब इन्सान राजा से रंक हो जाये !!


मासूमों पर निरा हो रहा अत्याचार है 
देश पर अब हावी हो रहा भ्रस्टाचार है
हर तरफ फैले हैं घोटाले ही घोटाले 
देश आज दुनिया में हो रहा शर्मसार है !!


प्रवीन मलिक..............


पधारने के लिए धन्यवाद