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Tuesday 21 May 2013

तेरी यादों का महल





तेरी यादों का एक महल बनाया

उसकी हर दीवार पर तुम्हे ही सजाया

उसमे तेरे दिए हल पल को पाया

उसी को फिर मैंने अपना जहाँ बनाया

जिससे कभी न फिर मैं निकल पाया  

महल की हर दिवार हर कोने  पर

तेरे दिए हसीन जख्मो को ही पाया

बहुत चाहा निकाल बाहर फेंकू तुम्हे

पर हर बार खुद को मजबूर पाया

जाने क्या जादू था तेरी उन बातों में

बिना किसी डोर के खिंचा चला आया

मुलाकातों के उन पलों में खुशिये से

ग़मों का प्रतिशत ही ज्यादा पाया

भुलाना चाहा हर उस पल को

जो था कभी तेरे संग बिताया

पर शायद मेरी किस्मत को भी

तुझसे दूर जाना रास न आया

जब भी कोशिश की दूर जाने की

तेरी यादों का काफिला संग आया

लोग बहुत हैं जिंदगी में चाहने वाले

पर मेरे दिल को सिर्फ तेरा ही साथ भाया

किस्मत के लिखे को कोई मिटा न पाया 

इसीलिए दुनिया में दर्दे-ऐ-दिल है समाया 



***** प्रवीन मलिक *****


10 comments:

  1. लोग बहुत हैं जिंदगी में चाहने वाले,

    पर मेरे दिल को सिर्फ तेरा ही साथ भाया ...
    वाह !!! अनुपम भाव

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  2. waaaah waaaaah hot khb bhot khub....behtrin hai waaaaaah

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  3. बहुत ही सुन्दर अहसास,वाकई उत्कृष्ट.

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  4. जो दिल मिएँ रहता है वो दिल से बाहर कहां जा पाता है ...
    लौट के आता रहता है ...
    प्रेम का एहसास लिए ...

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  5. यादें कहाँ जा पाती हैं जेहन से. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  6. दिल के सुंदर एहसास
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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पधारने के लिए धन्यवाद