रिश्ता जोड़ा हमने दिल की सांसों से ,
तुम खेलते रहे मेरे मधुर अहसासों से !
तुम करते रहे फरेब पाक ज़ज्बातों से ,
हम डूबते चले गए मन की गहराइयों से !
तुम्हारी तो ये आदत है खेल खेलने की ,
हम टूट कर बिखर गए कांच के आइनों से !
कभी सुबह-शाम की अजान से रहे तुम ,
अब अता होते हो तो मातमी अल्फाजों से !
दिल सजाए बैठा है ख्वाब जाने कितने ,
तुम गुजरते चले गए वक़्त के हाशियों से !
निकल पड़े हो ढूँढने कोई और खिलौना ,
दिल भरा नहीं अभी क्या मेरी बर्बादियों से !
************प्रवीन मलिक****************
No comments:
Post a Comment