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Thursday 26 June 2014

मन ... "बेताज बादशाह"

ये चंचल मन 
बिन पंखों के 
ख्वाबों की दुनिया में 
विचरता रहता है 
हकीकत से दूर 
ख्वाहिशों की 
ट्रेन पकड़कर
जाने कहाँ-कहाँ 
भटकता रहता 
इसके लिए कोई 
बंधन मायने नहीं रखता 
ये हर बॉर्डर को 
क्षण भर में ही 
बेखौफ पार कर जाता 
नामुमकिन जैसे शब्द 
शायद इसने कभी 
पढ़े नहीं तो , नहीं है कुछ भी 
नामुमकिन इसके लिए 
ये तो अपनी ही 
खूबसूरत रंग-बिरंगीं 
दुनिया का बेताज बादशाह है !!


प्रवीन मलिक 

5 comments:

  1. मन तो एक मन मौजी पंछी है ,विजली की गति से चलती है .इन्द्रदानुष के रंग लिए घूमता है |
    उम्मीदों की डोली !

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति !!

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  3. मन जहां चाहे जा सकता है ... जो चाहे कर सकता है ...

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  4. इसलिए ही कहा गया कि सबसे गति मन की होती है
    बढ़िया प्रस्तुति

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  5. आप सभी का हृदयतल से आभार ... सादर धन्यवाद !!

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