ये चंचल मन
बिन पंखों के
ख्वाबों की दुनिया में
विचरता रहता है
हकीकत से दूर
ख्वाहिशों की
ट्रेन पकड़कर
जाने कहाँ-कहाँ
भटकता रहता
इसके लिए कोई
बंधन मायने नहीं रखता
ये हर बॉर्डर को
क्षण भर में ही
बेखौफ पार कर जाता
नामुमकिन जैसे शब्द
शायद इसने कभी
पढ़े नहीं तो , नहीं है कुछ भी
नामुमकिन इसके लिए
ये तो अपनी ही
खूबसूरत रंग-बिरंगीं
दुनिया का बेताज बादशाह है !!
प्रवीन मलिक
मन तो एक मन मौजी पंछी है ,विजली की गति से चलती है .इन्द्रदानुष के रंग लिए घूमता है |
ReplyDeleteउम्मीदों की डोली !
बेहतरीन अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteमन जहां चाहे जा सकता है ... जो चाहे कर सकता है ...
ReplyDeleteइसलिए ही कहा गया कि सबसे गति मन की होती है
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
आप सभी का हृदयतल से आभार ... सादर धन्यवाद !!
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