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Wednesday, 2 July 2014

हकीकत हो या सपना ... पीड़ा वही होती है !!

मन अति व्याकुल ... विचारों का गहन मंथन हो रहा अंतर्मन में ... सारे अच्छे बुरे पल चलचित्र की भाँति घूम रहे दिमाग में ... नैन अश्रुपूर्ण और हृदय में अजीब सी पीड़ा ... बाहर से सब सामान्य दिख रहा पर अंतर्मन में भयंकर तुफान ... तभी दूर धुयें से बनती एक परछाई पास और पास और पास आती दिखाई दे रही .. अब इतनी पास कि शक्ल साफ दिख रही है .... ये तो माँ है ... माँ ....माँ .... चिल्लाती उस दिशा में दौड़ती पर माँ जैसे पहले समीप आ रही थी अब उसी तरह धीरे-२ वापस दूर जा रही है ... पकड़ने में असमर्थ पीछे दौड़ती हुई  .. हृदय की पीड़ा कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है और एक तेज चीख निकलती है .. माँ ... रुको ना...... तभी आँख खुल जाती है !
उफ्फ सपना था ये ..... पर हकीकत के कितने करीब लग रहा था... दिल में वही उथल-पुथल.. वही अश्रुपूरित नैन .. हृदय में वही तीक्ष्ण पीड़ा .... वही खोने का अहसास .....

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