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Sunday, 3 August 2014

ये रिश्ता ....(दोस्ती का)

यूँ तो सब रिश्ते
खुदा की देन हैं
एक दोस्त ही हम
अपने अनुरुप चुनते हैं
जो हमारे जैसा हो ,
जिसके विचार और सोच
 हमसे मिलती हो
तभी दोस्ती का काँरवा
आगे बढ़ता है
विस्वास के धागे का
इसमें विशेष महत्व है
ये धागा जितना मजबूत
तो रिश्ता भी उतना ही
दृढ़ , मजबूत होता है
न इसमें हिसाब रखा
जाता लेन-देन का
जो दिया दिल से दिया
कोई अहसान नहीं किया
उपकार या अहसान
जैसे शब्द तो इसमें
कदापि नहीं आते
एक दूसरे की समझ
इसे और ज्यादा
मजबूती देती है
इसमें सारे गम अपने
सारी खुशियाँ तुम्हारी
न वक़्त का कोई पहरा
न ही मजबूरियों का
कोई बंधन
जैसे हो वैसे ही मंजूर
न कोई बदलाव की चाह
आइने की तरह साफ
छल कपट और बैर से
कोसों दूर होता है
ऐसा ही होता है ये रिश्ता ........(प्रवीन मलिक)

9 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 4 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !

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    1. आशीष जी सादर आभार मेरी रचना को इस योग्य समझने हेतु

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  2. ऐसा ही होता है ये रिश्‍ता .... जो दूर रहकर भी दिल के बेहद करीब होता है

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  3. दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना...प्रवीन जी

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  4. बहुत बढ़िया ..पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ ...अच्छा लगा

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  5. ये रिश्ता है ही अनमोल ...

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  6. आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया

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  7. मित्रता का रिश्ता होता ही ऐसा है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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पधारने के लिए धन्यवाद