जन्म दिया लड़की को
उस पर अहसान किया
प्यार दिया लड़की को
फिर से एक अहसान किया
छोड़ दिया गर घर में अकेला
तो ये बड़ा गुनाह किया
दरिन्दे ने नोचा निरीह को
मासूम का शिकार किया
सुनके रूह भी कांप जाये
इतना बद्तर सलूक किया
देख हालत उस मासूम की
हर लड़की ने सवाल किया
जब मिटानी थी भूख तो
फिर क्यूँ नवरात्री में
देवी- सा सम्मान दिया
जब दिल में था इतना चोर
फिर क्यूँ मंदिरों में भजन किया
कब तक युहीं जुल्म करोगे
कोई तो आखिर सीमा होगी
कहीं तो आखिर हैवानियत
की भी कोई हद होगी
क्यूँ नहीं तुमको चीखे सुनती
क्या मर गयी तुम्हारी आत्मा है
क्या इंसानियत भी रूठ गयी
हैवानियत का खेल है रचा
सुनके हर माँ की कोख डर गयी
इसीलिए हे बेटी !
तुझको दुनिया में लाने से डरती हूँ
देख दुनिया की हैवानियत से
एक पाप में अपने सर लेती हूँ
हे बेटी !
जिसने इस दुनिया को बसाया
हर घर को उपवन सा खिलाया
उसी को मौका देख हैवान ने
अपनी हवस का शिकार बनाया
हर माँ के दिल में अब ये डर समाया
आज नहीं तो कल कहीं उसकी
अपनी बेटी का नंबर तो नहीं आया
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21-04-2013) के चर्चा मंच 1220 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुण जी सादर धन्यवाद मेरी रचना को अपनी चर्चा में शामिल करने के लिए ....
Deletewaaah bilkul shi kha
ReplyDeletebahut khoob behatareen prastuti
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति ......आभार
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ReplyDeleteमौजूदा परिस्थिति में माँ का डर स्वाभाविक है
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मार्मिक ... गहरा क्षोभ लिए ...
ReplyDeleteओर ये डर स्वाभाविक है .... पता नहीं कब सुधार आएगा इस समाज में ...
यथार्थ चित्रण - डरना जायज है
ReplyDeleteअब तो हर माँ का ये डर बन गया है ... कल ही मुझे अपनी एक पड़ोसिन सडक पर चिंतित सी टहलती दिखी मेरे पूछने पर उसने कहा "क्या करें दीदी ,बेटी को घर में बंद नहीं कर सकते हैं पर अब जब वो खेल रही है तो उसको अकेले भी नहीं छोड़ सकते ..."
ReplyDeleteyatharth chitran. kuch sarthak aur seeghra upay karne honge tabhi hum bacha payenge betiyon ko vasnamay hathon se.
ReplyDeleteपता नहीं कब सुधार आएगा
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