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Sunday, 24 February 2013

ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है.......



ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है

गम के संग आंसू भी देती है

आंसुओं संग दर्द भी देती है

दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है



तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……

फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी

हर पल हर किसी को जीवन की ही प्यास होगी

हसीन सपनो और खवाबो की ही बारात होगी

नित नयी उमंगों और आशाओं की बरसात होगी



लेकिन होगा वही जो ज़िन्दगी की बिसात होगी ……….

फिर मौत आएगी हमें गले लगाएगी

हर दुःख से साथ छुटाएगी

जीवन के बंधनों से मुक्त कराएगी

जीवन का अंतिम सफ़र कराएगी



फिर भी हमारी दुश्मन कहलाएगी ………

6 comments:


  1. ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है

    गम के संग आंसू भी देती है

    आंसुओं संग दर्द भी देती है

    दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती हैati sundr bhaav prveen ji ,badhai

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  2. शानदार अभिव्यक्ति प्रवीन जी लाजवाब पंक्तियाँ.

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  3. ये जिंदगी ऐसे ही खेल खेलती है ...
    बहुत प्रभावी लिखा है ...

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  4. बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

    शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा मुझे भीड़ चलने लगी.

    अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..


    जिस समय जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ

    एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए....



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  5. बिलकुल सत्य बात

    बहुत सुंदर, आभार

    यहाँ भी पधारे
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html

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पधारने के लिए धन्यवाद