ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है
गम के संग आंसू भी देती है
आंसुओं संग दर्द भी देती है
दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है
तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……
फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी
हर पल हर किसी को जीवन की ही प्यास होगी
हसीन सपनो और खवाबो की ही बारात होगी
नित नयी उमंगों और आशाओं की बरसात होगी
लेकिन होगा वही जो ज़िन्दगी की बिसात होगी ……….
फिर मौत आएगी हमें गले लगाएगी
हर दुःख से साथ छुटाएगी
जीवन के बंधनों से मुक्त कराएगी
जीवन का अंतिम सफ़र कराएगी
फिर भी हमारी दुश्मन कहलाएगी ………
ReplyDeleteज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है
गम के संग आंसू भी देती है
आंसुओं संग दर्द भी देती है
दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती हैati sundr bhaav prveen ji ,badhai
शानदार अभिव्यक्ति प्रवीन जी लाजवाब पंक्तियाँ.
ReplyDeleteये जिंदगी ऐसे ही खेल खेलती है ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी लिखा है ...
बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteशाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..
जिस समय जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए....
are waaaah waaah bhot hi umda
ReplyDeleteबिलकुल सत्य बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर, आभार
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html