दुनिया की इस भीड़ में ना जाने हर इंसान अकेला क्यूँ है ,
दोस्त हैं बहुत सारे फिर भी ना जाने इतना तन्हा क्यूँ है !
दोस्त हैं बहुत सारे फिर भी ना जाने इतना तन्हा क्यूँ है !
दिल में है कुछ और पर ना जाने करते कुछ और क्यूँ हैं ,
हर इंसान के दिल में ना जाने इतना दोहरापन क्यूँ है !!
हर इंसान के दिल में ना जाने इतना दोहरापन क्यूँ है !!
भगवान ने तो इंसान को एक सुंदर सा दिल दिया था ,
फिर इंसान का दिल ना जाने इतना पत्थर क्यूँ है !!
फिर इंसान का दिल ना जाने इतना पत्थर क्यूँ है !!
भगवान ने तो सिर्फ और सिर्फ इंसान बनाया ,
हिन्दू , मुस्लिम , सिख और ईसाई का ये रोना क्यूँ है !!
हिन्दू , मुस्लिम , सिख और ईसाई का ये रोना क्यूँ है !!
साथ ना लेकर जायेगा कोई कुछ भी,खाली हाथ ही जाना है,
फिर भी ये तेरा, ये मेरा का ना जाने इतना झगडा क्यूँ है !!
फिर भी ये तेरा, ये मेरा का ना जाने इतना झगडा क्यूँ है !!
हर जगह मैं ही मैं का रोना है , न जाने इतना इतना स्वार्थ क्यूँ है ,
सब कुछ होते हुए भी , ना जाने इतना वीरानापन क्यूँ है …!!!
सब कुछ होते हुए भी , ना जाने इतना वीरानापन क्यूँ है …!!!
प्यार , मोहब्बत के लिए ये जिंदगी है बहुत छोटी ,
फिर भी इंसान ही इंसान का ना जाने दुश्मन क्यूँ है !!
फिर भी इंसान ही इंसान का ना जाने दुश्मन क्यूँ है !!
जानता है हर कोई जिंदगी के इस सच को ,
फिर भी ना जाने हर इंसान इतना नादान क्यूँ है !!
फिर भी ना जाने हर इंसान इतना नादान क्यूँ है !!
********************************** प्रवीन मलिक
yahi to samajh nahin aata....
ReplyDeleteहां जी जो समझ गया वो पार हो गया ...
Deleteधन्यवाद...
सचमुच न जाने क्यों..शायद उसे नादानी में ही लुत्फ़ आता है...
ReplyDeleteये भी हो सकता है ...
Deleteधन्यवाद...
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
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