आज इंसान भी क्या से क्या हो गए हैं ,
इंसानों को छोड़ पत्थरों को खुश करने में लगे हैं !
कहीं भूख से तडपते हैं बच्चे ,
कहीं अनाजों के ढेर सड़ रहे हैं !
कहीं लगे हैं खुशियों के मेले ,
कहीं पर इंसान रो रहे अकेले !
कहीं भगवान् के भजन हो रहे हैं ,
कहीं मातम के रुदन हो रहे हैं !
सब्र के सब बाँध टूट रहे हैं ,
क्रोध से आतंक सजग हो रहे हैं !
पाखंडियो की हो रही सेवा ,
घरों से बूढ़े बेघर हो रहे हैं !
इंसान सब इंसानियत छोड़ कर ,
जंगली-जानवरों से हैवान हो रहे हैं !
आज इंसान भी क्या से क्या हो रहे हैं !!
********* प्रवीन मलिक *******
बहुत ही भावपूर्ण दिल की आवाज.
ReplyDeleteसुंदर भावनायें और.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
ReplyDeleteमुझे उस मंदिर से नफरत हो जाती है जहाँ छोटे बच्चे भीख मांगते है
ReplyDeleteऔर लोग जो भग्त बने फिरते है उस पत्थर पर जिसे न भूख है न प्यास है
करोड़ों का प्रसाद चढ़ा कर खुश हो जाते हैं।
truly brilliant..
ReplyDeletekeep writing.......all the best malik ji