मैं ( आम महिला ) कौन हूँ आपकी नज़र में ???
एक माँ , एक पत्नी , एक बेटी , एक बहू , एक बहन , एक भाभी , एक प्रेमिका , एक दोस्त ............
इनमे से भले ही मेरा आपसे कोई रिश्ता नहीं फिर भी मैं एक महिला हूँ ! वो महिला जो नींव है आपके समाज , की आपके परिवार की, आपके देश की, आपके घर की, आपके रिश्तों की नींव हूँ ......
बिना नींव के कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता , कोई परिवार फल-फूल नहीं सकता , कोई रिश्ता कायम नहीं रह सकता !
जब आपको पता है कि मेरे बिना आपका कोई अस्तित्व ही नहीं है फिर .......
क्यूँ मुझे सहेज के नहीं रख सकते ?
क्यूँ मेरा सम्मान नहीं कर सकते ?
क्यूँ मेरी रक्षा नहीं कर सकते ?
क्यूँ मुझे गर्भ में ही मार देते ??
क्यूँ मुझे जिन्दा जला देते ???
क्यूँ मेरी आबरू संग सरेआम खिलवाड़ करते ??
क्यूँ मुझे बेड़ियों में जकड़ते???
क्यूँ मुझे खुलकर जीने का अधिकार नहीं ??
क्यूँ मेरे सपनो का कोई वजूद नहीं ???
क्यूँ मुझे इस्तेमाल करके फेंक देते ??
क्यूँ मेरी भावनाओं की कद्र नहीं ???
क्यूँ मेरे प्यार का नाजायज फायदा उठाते ??
क्यूँ मेरे दिल को यूँ तार-तार करते ???
क्यूँ घर से निकलते ही चील की तरह मुझ पर झपट पड़ते ??
क्यूँ जानवरों सा बर्ताव करते ????
क्यूँ ज़रा सी बात पर यूँ जान ले लेते ???
क्यूँ नहीं समझते मेरा भी एक दिल है जिसको दुःख होता है तकलीफ होती है जो महसूस करता है जो नफ़रत को झेलता है क्यूँ मुझे पत्थर समझते हो ?? क्यूँ मुझसे ही सहने की अपेक्षा रखते हो ?? और सहूँ भी तो कितना कोई तो सीमा होती है सहने की भी .....
इतने सारे क्यूँ मैं सिर्फ पुरुष समाज से नहीं कर रही हूँ बल्कि समाज का हिस्सा महिलाओं से भी कर रही हूँ ..
क्या कारन है कि आप महिलाओं को ये सब सवाल करने पड़ते हैं ?? क्या आप कमजोर हैं या फिर बस सहन करना ही पड़ेगा की सोच बना के चली हुयी हैं ! खुद में हिम्मत जगाएं , खुद के अन्दर की समझ को जगाएं और खुद को यूँ न इस्तेमाल की वस्तु बनायें .....
पाश्चात्य सभ्यता की इतनी आदी न हों ! भारतीय नारी बने ! आप नारी हो नारी की भी कुछ सीमायें होती हैं सीमाओं का मतलब अब फिर से खुद को बेड़ियों में जकड़ने से नहीं है ... बल्कि आप अपनी सीमायें खुद बनायें जिनको कोई भी दरिंदा पार ना कर पाए और आपकी इज्ज़त से खिलवाड़ ना कर पाए ! अपने पहनावे का खास ख्याल रखे जो भी आजकल फैशन का दौर चल रहा है उससे परहेज करे ... याद रखे की औरत की खूबसूरती उसके साज श्रृगार से नहीं बल्कि उसकी सादगी में होती है ! बदन दिखाऊ पहनावा आपकी सुन्दरता को कुछ लोगों की नज़र में भले ही बढ़ा रहा हो लेकिन असल में वो आपकी इज्ज़त को उछाल रहा है ! दुल्हन हमेशा घूँघट में इसीलिए होती है की उसकी सुन्दरता को किसी की बुरी नज़र न लगे ! अब घूँघट का मतलब ये मत समझ लेना की खुद को नकाब में रखना है लेकिन जितना हो सके मर्यादित रहें ....
खुद की सुरक्षा खुद भी काफी हद तक सतर्क रहके की जा सकती है ! कब तक अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषों या कानून पर निर्भर रहोगी और रहोगी तो फिर आपको कोई अधिकार नहीं ये कहने का कि हम भी पुरुषों समान हैं ! सोच को उन्नत करना जरुरी है ! मर्यादाओं में रहकर भी एक सफल महिला बना जा सकता है ! बस महिला दिवस पर मैं सिर्फ और सिर्फ महिलाओं से ये कहना चाहती हूँ की हमारे देश में महिला दिवस मनाया जाता है पुरुष दिवस नहीं तो फिर आप इसको सार्थक भी करके दिखाए .....
एक माँ , एक पत्नी , एक बेटी , एक बहू , एक बहन , एक भाभी , एक प्रेमिका , एक दोस्त ............
इनमे से भले ही मेरा आपसे कोई रिश्ता नहीं फिर भी मैं एक महिला हूँ ! वो महिला जो नींव है आपके समाज , की आपके परिवार की, आपके देश की, आपके घर की, आपके रिश्तों की नींव हूँ ......
बिना नींव के कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता , कोई परिवार फल-फूल नहीं सकता , कोई रिश्ता कायम नहीं रह सकता !
जब आपको पता है कि मेरे बिना आपका कोई अस्तित्व ही नहीं है फिर .......
क्यूँ मुझे सहेज के नहीं रख सकते ?
क्यूँ मेरा सम्मान नहीं कर सकते ?
क्यूँ मेरी रक्षा नहीं कर सकते ?
क्यूँ मुझे गर्भ में ही मार देते ??
क्यूँ मुझे जिन्दा जला देते ???
क्यूँ मेरी आबरू संग सरेआम खिलवाड़ करते ??
क्यूँ मुझे बेड़ियों में जकड़ते???
क्यूँ मुझे खुलकर जीने का अधिकार नहीं ??
क्यूँ मेरे सपनो का कोई वजूद नहीं ???
क्यूँ मुझे इस्तेमाल करके फेंक देते ??
क्यूँ मेरी भावनाओं की कद्र नहीं ???
क्यूँ मेरे प्यार का नाजायज फायदा उठाते ??
क्यूँ मेरे दिल को यूँ तार-तार करते ???
क्यूँ घर से निकलते ही चील की तरह मुझ पर झपट पड़ते ??
क्यूँ जानवरों सा बर्ताव करते ????
क्यूँ ज़रा सी बात पर यूँ जान ले लेते ???
क्यूँ नहीं समझते मेरा भी एक दिल है जिसको दुःख होता है तकलीफ होती है जो महसूस करता है जो नफ़रत को झेलता है क्यूँ मुझे पत्थर समझते हो ?? क्यूँ मुझसे ही सहने की अपेक्षा रखते हो ?? और सहूँ भी तो कितना कोई तो सीमा होती है सहने की भी .....
इतने सारे क्यूँ मैं सिर्फ पुरुष समाज से नहीं कर रही हूँ बल्कि समाज का हिस्सा महिलाओं से भी कर रही हूँ ..
क्या कारन है कि आप महिलाओं को ये सब सवाल करने पड़ते हैं ?? क्या आप कमजोर हैं या फिर बस सहन करना ही पड़ेगा की सोच बना के चली हुयी हैं ! खुद में हिम्मत जगाएं , खुद के अन्दर की समझ को जगाएं और खुद को यूँ न इस्तेमाल की वस्तु बनायें .....
पाश्चात्य सभ्यता की इतनी आदी न हों ! भारतीय नारी बने ! आप नारी हो नारी की भी कुछ सीमायें होती हैं सीमाओं का मतलब अब फिर से खुद को बेड़ियों में जकड़ने से नहीं है ... बल्कि आप अपनी सीमायें खुद बनायें जिनको कोई भी दरिंदा पार ना कर पाए और आपकी इज्ज़त से खिलवाड़ ना कर पाए ! अपने पहनावे का खास ख्याल रखे जो भी आजकल फैशन का दौर चल रहा है उससे परहेज करे ... याद रखे की औरत की खूबसूरती उसके साज श्रृगार से नहीं बल्कि उसकी सादगी में होती है ! बदन दिखाऊ पहनावा आपकी सुन्दरता को कुछ लोगों की नज़र में भले ही बढ़ा रहा हो लेकिन असल में वो आपकी इज्ज़त को उछाल रहा है ! दुल्हन हमेशा घूँघट में इसीलिए होती है की उसकी सुन्दरता को किसी की बुरी नज़र न लगे ! अब घूँघट का मतलब ये मत समझ लेना की खुद को नकाब में रखना है लेकिन जितना हो सके मर्यादित रहें ....
खुद की सुरक्षा खुद भी काफी हद तक सतर्क रहके की जा सकती है ! कब तक अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषों या कानून पर निर्भर रहोगी और रहोगी तो फिर आपको कोई अधिकार नहीं ये कहने का कि हम भी पुरुषों समान हैं ! सोच को उन्नत करना जरुरी है ! मर्यादाओं में रहकर भी एक सफल महिला बना जा सकता है ! बस महिला दिवस पर मैं सिर्फ और सिर्फ महिलाओं से ये कहना चाहती हूँ की हमारे देश में महिला दिवस मनाया जाता है पुरुष दिवस नहीं तो फिर आप इसको सार्थक भी करके दिखाए .....
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