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Tuesday, 5 March 2013

खता की हमने ..........


खता की जो तुजसे नज़रे न मिला पाए ,
हमें क्या पता था यूँ रुसवा होके निकलोगे !
                   
खता की जो तुझपे विस्वास कर गए ,
हमें क्या पता था तुम्ही दगा दिल से  करोगे !



खता की जो तुमको अपना दिल सुपुर्द किया ,
हमें क्या पता था तुम्ही बेवफा सनम निकलोगे !

खता की जो तुम्हारा यूँ  रस्ता तकते रहे ,
हमें क्या पता था तुम्ही  सजा ए इन्तजार  दोगे !


खता की जो तुझको अपनी जान सुपुर्द की ,
हमें क्या पता  था  तुम्ही कातिले ए जान निकलोगे !

*** प्रवीन मलिक ***







3 comments:

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in/

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  2. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    शब्दों की मुस्कुराहट पर …..दिन में फैली ख़ामोशी

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पधारने के लिए धन्यवाद