खता की जो तुजसे नज़रे न मिला पाए ,
हमें क्या पता था यूँ रुसवा होके निकलोगे !
खता की जो तुझपे विस्वास कर गए ,
हमें क्या पता था तुम्ही दगा दिल से करोगे !
हमें क्या पता था तुम्ही दगा दिल से करोगे !
खता की जो तुमको अपना दिल सुपुर्द किया ,
हमें क्या पता था तुम्ही बेवफा सनम निकलोगे !
खता की जो तुम्हारा यूँ रस्ता तकते रहे ,
हमें क्या पता था तुम्ही सजा ए इन्तजार दोगे !
हमें क्या पता था तुम्ही सजा ए इन्तजार दोगे !
खता की जो तुझको अपनी जान सुपुर्द की ,
हमें क्या पता था तुम्ही कातिले ए जान निकलोगे !
*** प्रवीन मलिक ***
vah kya khoob, behatareen andaz
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.in/
प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर …..दिन में फैली ख़ामोशी