जब दिल में दर्द ही दर्द ठहरा हो ,
दरिया आँखों से बह रहा हो
होंठों पर चुप्पी का पहरा हो
तब न तुम आवाज़ देना मुझे
क्यूंकि तब मैं कुछ न कह पाऊँगी
कुछ समझाओगे तो न मैं समझ पाऊँगी !
जब से तुम संग दिल जोड़ लिया ,
साथ तेरे ही जीना मरना तब से ही ये प्रण लिया !
तेरे प्यार ने ऐसा दिल में घर किया,
कुछ और न देखा न समझा जाने ये क्यों किया !
तुम्हारे अलावा कुछ और दिखा नहीं ,
दिखता भी कैसे, आँखे जो बंद की फिर खोली नहीं !
चलते गए साथ तेरे पीछे मुड़कर देखा नहीं ,
जब देखा तो फिर कोई , और अपना दिखा नहीं !
आज रंज है की तू भी अब अपना लगता नहीं ,
साथ तो तू मेरे है , पर साथ दिखता नहीं !
तुम भी वही हो , और मैं भी वही हूँ ,
फिर पहले जैसा कुछ क्यूँ लगता नहीं !
समय बदल जाता है ये तो हमें पता था ,
पर इंसान भी बदल जाते हैं ये भी अब जान लिया !
मैं जो एक बार खो गयी फिर न मुझे ढूंड पाओगे ,
हर पल रोओगे , याद करोगे और फिर पछताओगे !
अभी समय है एक आवाज़ लगा देना ,
दौड़ कर जो वापस ना आई तो फिर भुला देना !
प्रेम की अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण सहजता से कही गयी गहरी बात
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
होली की शुभकामनायें
aagrah hai mere blog main bhi padharen
aabhar
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ......
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
मन के उद्गार धीरे धीरे कविता का रूप ले रहे हैं ...
ReplyDeleteबहुत कविता...
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!
बस आप के लिए मेरा ये शेर-
ReplyDeleteउस डगर पर चलो तो हमें भी पूछ लेना
हम रस्ते के पत्थर है कभी चोट नहीं खाते.
मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
पधारिये : किसान और सियासत
गहन अनुभूति
ReplyDeleteजीवंत रचना
सुंदर अहसास
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
मुझे ख़ुशी होगी
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने
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