कभी न किसी का दिल दुखाना
भले हीउसके लिए तुम खुद टूट जाना
हर रिश्ते को दिल से निभाना
फिर चाहे दिल पर कितनी भी चोट खाना
हर किसी का मान रखना
पर कभी न अपना आत्मसम्मान गवाना
दुखों में भी तुम मुस्कुराना
ग़मों का न तुम बाज़ार-ऐ-दिल सजाना
कभी न किसी के दिल से उतरना
हर किसी के दिल में तुम उतर जाना
******प्रवीन मलिक ******
Kya Baat, Kya Baat, Kya Baat !!!
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार , दिनांक ४ अगस्त को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की जा रही है .. कृपया पधारें
ReplyDeleteसाभार सूचनार्थ
वाह , बहुत सुंदर
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
गजल
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_4.html
सुंदर.... माँ की हर सीख जीवन को सार्थक करती है.....
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteमाँ सच ही कहती है जो कहती है ... जीवन का सार होता है उन सभी बातों में ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteजीवन के पाठ पढ़ाए हैं माँ ने !
ReplyDeleteमां की सच्ची सीख ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद अरुन जी ...
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