तुमसे मिले और खुद से पराये हो गये
तुम्हारे अलावा बाकी सब कुछ भूल गये !!
आइने में भी अक्स तेरा ही देखने लगे
जागती आँखों से हसीन ख्वाब बुनने लगे !!
सबके बीच रहकर भी सबसे बेखबर हो गये
तेरी यादों और दिलकश बातों में खोकर रह गये !!
कभी बहुत बकबक किया करते थे बेवजह ही
अब अचानक ही जाने क्यूँ गुमसुम से हो गये !!
तुम्हारे बिना सतरंगी रंग फीके से लगने लगे
महफिलों से हम अपनी नजरें बचाकर चलने लगे !!
नींद , चैन , भूख , प्यास से बेखबर होकर
तेरे ही मीठे ख्वाबों में दिन-रात हम रहने लगे !!
प्रवीन मलिक
सबके बीच रहकर भी सबसे बेखबर हो गये
ReplyDeleteतेरी यादों और दिलकश बातों में खोकर रह गये !!... बहुत खूब!
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल रविवार, दिनांक 29 सितम्बर 2013, को ब्लॉग प्रसारण पर भी लिंक की गई है , कृपया पधारें , औरों को भी पढ़ें और सराहें,
साभार सूचनार्थ
शुक्रिया शालिनी जी ...
Deleteबहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी रचना पसंद करने के लिए...
Deleteबहुत सुंदर रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
धन्यवाद प्रदीप साहनी जी ...
Deleteसबके बीच रहकर भी सबसे बेखबर हो गये
ReplyDeleteतेरी यादों और दिलकश बातों में खोकर रह गये !
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।
सादर धन्यवाद राजेन्द्र जी ...
Deleteसादर धन्यवाद राजेन्द्र जी ...
Deleteशुक्रिया प्रदीप साहनी जी ... जरुर फोलो करेंगें !
ReplyDeleteशुक्रिया प्रदीप साहनी जी ... जरुर फोलो करेंगें !
ReplyDeletebehtareen, dil ko chhoo gayee ......
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 दिसंबर 2015 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
सचमुच ! दिल की आवाज़ बेहद सार्थक नाम है आपके ब्लॉग का ! सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletebahut khoob. bahut achchha likha hai.
ReplyDeletebahut khoob. bahut achchha likha hai.
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