ऐसा तो कुछ न माँगा था जो देना मुश्किल था
एक सुनहरी शाम बालकनी में हम दोंनों कॉफी पीते हुयेऔर दूर पहाड़ियों की तरफ ढलते सूरज को अलविदा कहते हुये साथ साथ वो सुनहरी शाम ही तो मांगी थी .....
एक सुनहरी शाम बालकनी में हम दोंनों कॉफी पीते हुयेऔर दूर पहाड़ियों की तरफ ढलते सूरज को अलविदा कहते हुये साथ साथ वो सुनहरी शाम ही तो मांगी थी .....
तुम्हारे साथ रहकर कुछ पल साथ होने का अहसास ही तो चाहा था ! अपने दिल का दर्द छुपाकर कुछ खुशी ही तो बाँटनी चाही थी ! जिन्दगी की हर कशमश को भूलकर तेरे आगोश में दो पल का चैन ही तो चाहा था .....
दिल में उठते दर्द के सैलाब को रोकना ही तो चाहा था ! पूरी जिन्दगी के बदले एक रूमानी सी शाम ही तो चाही थी पर तुमसे इतना भी न बन पड़ा ! क्या इतना ज्यादा माँगा था ?? इतनी बेइन्तहा मोहब्बत के बाद इतना ज्यादा तो न चाहा था ! .......
हम तुम्हारे लिए कुछ मायने न रखते हों पर हमने तुम्हारे अलावा जिन्दगी से कुछ और न चाहा था ! जो कभी न किसी के सामने झुका वो तेरे सामने यूँ गिड़गिड़ाया था सिर्फ और सिर्फ तेरे दो पल के साथ को ......
फिर भी दिल से यही दुआ निकलती है खुशी हो तुम्हारी हर राह में , दिल न कभी उदास हो , किसी न बुराई का सामना हो, तरक्की की राह हो , खिलखिलाती तेरी सुबह शाम हो , गम न कोई बादल आये .........
बस इतना ही चाहा .........
प्रवीन मलिक.....
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत भावमयी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबस इतना ही चाहा .......मन को छूने वाली प्रस्तुति
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