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Tuesday, 17 September 2013

बेबसी.....

रमा आज बहुत खुश थी हो भी क्यूँ न .... आज उसके पोते का जन्मदिन और उसकी सालगिरह है ! उसके पति हर साल इस दिन को धूमधाम से मनाते रहे हैं और इस दिन कुछ दान दक्षिणा भी करते हैं आखिर दादी पोते का जन्मदिन साथ-साथ जो आता है !
पिछले गुजरे सालों में बिताये गये इस दिन को याद करते-करते अचानक उसकी आँखें भर आयी ! कितने अच्छे दिन गुजारे हैं राजन और रमा ने साथ-साथ.......
रमा सुबह ही नहा-धोकर तैयार हो गयी और राजन को भी तैयार होने को कहा कि जल्दी तैयार हो जाओ फिर हम सब मन्दिर जायेंगें !
दोनों तैयार होकर बाहर आये  तो देखा ..... कि बहू बेटा और उसका पोता तैयार खड़े हैं ! बहू बोली ... माँ जी हम धीरज के जन्मदिन को मनाने के लिए बाहर जा रहे हैं .... परसों तक लौट आयेंगें !
रमा अवाक रह गयी सुनकर .... हिम्मत जुटाते हुये बोली ... बहू जन्मदिन तो हम हर साल की तरह घर में ही मनायेंगें ! बाहर क्यूँ ??
बहू गुस्से से झल्लाती हुयी ... नहीं इस बार हम बाहर जा रहें हैं ! कितनी बोरियत से जन्मदिन मनता है ! आस-पड़ौस के लोगों को बुलाकर आप लोग सारा बेझ हम पर डाल देते हैं और ऊपर से आप लोगों की दान-दक्षिणा .... मेरा ते सारा दिन किचन और आप लोगों की आवभगत में निकल जाता है ... और उसके बाद जो घर फैलता है ... बाप रे बाप ... मुझसे नहीं होता ! हम बाहर जा रहे हैं ! आपको जो बनाकर खाना हो खा लिजियेगा ! ऐसा कहकर वो लोग निकल जाते हैं .... धीरज ने आशिर्वाद तक नहीं लिया दादा-दादी से .. ......

रमा राजन मजबूर से देखते रहे .... कुछ कह भी नहीं पाये ! तभी राजन बोला क्यूँ परेशान होती हो चलो मन्दिर चलते हैं .. भगवान के दर्शन करेंगें और धीरज की लम्बी उम्र की प्रार्थना करेंगें ...... राजन ने जेब में हाथ डाला तो सौ रुपये के अलावा कुछ न मिला .....

और फिर राजन को याद आया कि अबकि पैंशन तो उसने बेटे को दे दी थी ये कहकर कि मुझे जरुरत हुयी तो ले लूंगा ... अब मन्दिर में दान-दक्षिणा कैसे होगी ....
रमा ने कहा कि चलिये .. और राजन बिना रमा को कुछ कहे चल पड़े .... मन्दिर जाकर उसने भगवान को प्रसाद चढ़ाकर अपने ब्टे बहू और पोते के लिए दुआ मांगी ...
तभी कुछ बच्चे आये और रमा को जन्मदिन की बधाई देने लगे ! रमा सिर्फ उन्हे आशिर्वाद देकर चल पड़ी ... तभी एक मासूम बच्चा .. दादी जी क्या आज आप लोग हमें कुछ उपहार नहीं देंगें .... रमा उसकी बात सुनकर थोड़ा ठिठकी और बोली अब तो हम सिर्फ आशिर्वाद देने के काबिल ही रह गये हैं बच्चे ...
राजन और रमा पहली बार कुछ दान दक्षिणा न कर पाये ... बहुत शर्म और बेबस सा महसूस कर रहे थे ! वापिस घर आकर रमा बोली बताइये क्या खायेंगें बना देती हूँ .... पर राजन कुछ न बोले और कमरे में जाकर लेट गये ...
रमा जानती थी कि राजन से बिना पूछे कभी कुछ नहीं होता था घर में ... लेकिन आज उसकी औकात क्या रह गयी है ... बात राजन के दिल को छू गयी थी कि कल तक जो घर का मालिक हुआ करता आज वो कितना बेबस है ...... पहली बार आज रमा को कुछ उपहार न दे सका ... पहली बार गरीब बच्चों का खाना न खिला सका ... पहला बार आज वो खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था ...
रमा सब समझ गयी थी जो राजन के मन में चल रहा था ... पास आकर बोली नियति का नियम है ये .... और क्या हुआ जो जन्मदिन मनाने वो लोग बाहर चले गये ... वैसे भी इस उम्र में किसको जन्मदिन मनाना होता है वो तो धीरज की वजह से सब कर लेते  थे ...
दोनों गुमसुम थे ... 

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